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रविवार, 31 दिसंबर 2023

“ अस्वतंत्र मानसिकता वाला रट्टू तोता ” कहानी ~ नमः वार्ता

  🔆💥 जय श्री राम 🔆💥

 “ अस्वतंत्र  मानसिकता वाला रट्टू तोता ” कहानी ~ नमः वार्ता


एक बार एक संत ने एक बहेलिया को देखा जो तोतों को जाल में फंसाकर, पकड़कर  बाजार में बेचने के लिए ले जा रहा था। उसे देखकर संत का मन बहुत व्याकुल हुआ। उस संत ने मन में संकल्प किया कि इन पक्षियों को मैं स्वतंत्र रहने के लिये शिक्षित करूंगा। 


संत ने तोतों को शिक्षा देना प्रारंभ किया। तोतों ने संत द्वारा बताए हुए पाठ को शीघ्र ही कंठस्थ कर लिया।


पाठ था-

"बहेलिया आएगा"

"जाल बिछाएगा"

"दाना डालेगा"

"पर हम नहीं खाएंगे"


एक दिन बहेरिया पुनः जंगल में तोते पकड़ने के लिये आ गया और तोतों को ये गाते हुए देखकर उसका मन अति व्याकुल हुआ कि अब तो तोते मेरे जाल में नहीं फंसेंगे।


बहेलिये ने जाल बिछाया, दाने डाले और पक्षियों की प्रतीक्षा के लिए दुखी मन से एक ओर खड़ा हो गया।


कुछ क्षणों उपरांत ही वो हतप्रद हुआ जब देखा कि दाने डालते ही पक्षियों का झुण्ड ने तुरंत ही जाल की ओर आना प्रारंभ कर दिया और सभी जाल में फंस गए। जाल में फंसने के उपरांत भी पक्षी गाए जा रहे थे कि

बहेलिया आएगा

जाल बिछाएगा

दाना डालेगा

पर हम नहीं खाएंगे


बहेलिया ने जाल को उठाया और सभी पक्षियों को जाल में बांधकर चल पड़ा परंतु अब भी पक्षी फिर भी गाए जा रहे थे कि

 

बहेलिया आएगा,जाल बिछाएगा दाना डालेगा, हम नहीं खाएंगे


हम हिंदुओं का भी यही हाल है। पाश्चात्य सभ्यता से आज भी प्रभावित है, हिन्दू होने के नाते ग्लानि से मन भरा हुआ है क्योंकि अस्वतंत्रता की मानसिकता जा ही नही रही। एक ओर तो हम कह रहे हैं हिन्दू जागृत हो गया, गर्व से कहो हम हिन्दू है और दूसरी ओर अंग्रेजी नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई दे रहे हैं।


जिस प्रकार तोते ने बस पाठ रट लिया किंतु जैसे ही दाने का कच्चा लालच देखा तो अस्वतंत्र  होने की मानसिकता प्रबल हो गयी। उसी प्रकार हम भी जानबूझकर सोच समझकर वही व्यवहार कर रहे हैं जबकि हैरानी है कि ये अंग्रेजों का नव वर्ष भी नही है। 


सोचिए क्या आपके व्यापार में वर्ष बदला❓

क्या आपके विद्यालयों में वर्ष बदला❓❓

जब दिवाली होली जैसे त्योहार विकमी संवत के पंचांग के अनुसार मनाए तो अब अपनी संस्कृति और संस्कार को आपने क्यों बदला। 

ध्यान दीजिए-

सप्त से-सेप्टेम्बर

अष्ट से-अक्टूबर

नवम से-नवम्बर

दशम से-दिसम्बर यानी (X मास रोमन में) ये उनके वर्ष का भी दसवां महीना है। अंग्रेजों के राजाओं ने अपने नाम पर जुलाई/अगस्त में 1-1 दिन बढ़वा कर ये महीने 31 दिन के कर दिये और वर्ष के अंत मे 12वे महीने फरवरी को 28 दिन का करना पड़ा।


प्रेषक-

#दिनेश बरेजा

शनिवार, 23 दिसंबर 2023

“महाबालिदान- शौर्य तथा शोक का सप्ताह” कहानी ~ नमः वार्ता

  🔆💥 जय श्री राम 🔆💥

 “महाबालिदान- शौर्य तथा शोक का सप्ताह” कहानी ~ नमः वार्ता


पूस का 13वां दिन…. 

 वजीर खां ने फिर पूछा- "बोलो इस्लाम स्वीकार करते हो"? 


6 साल के छोटे साहिबजादे फ़तेह सिंह ने वजीर खां से पुछा-

"अगर मुसलमान हो गए तो फिर कभी नहीं मरेंगे न ?"


वजीर खां अवाक रह गया।

उसके मुँह से उत्तर न फूटा तो साहिबजादे ने उत्तर दिया कि "जब मुसलमान हो के भी मरना ही है , तो अपने धर्म में ही अपने धर्म की लिए क्यों न मरें ?"


दोनों साहिबजादों को जीवित दीवार में चुनवाने का आदेश हुआ। दीवार चिनी जाने लगी । 

जब दीवार 6 वर्षीय फ़तेह सिंह की गर्दन तक आ गयी तो 8 वर्षीय जोरावर सिंह रोने लगा।

फ़तेह ने पूछा, "जोरावर रोता क्यों है ?"


जोरावर बोला-"रो इसलिए रहा हूँ कि आया मैं पहले था पर धर्म के लिए बलिदान तू पहले हो रहा है"

रविवार, 11 जून 2023

“ स्वतंत्रता संग्राम के आधार-भारतीय मातृ शक्ति ” कहानी ~ नमः वार्ता

 🔆💥 जय श्री राम 🔆💥

 “ स्वतंत्रता संग्राम के आधार-भारतीय मातृ शक्ति ” कहानी ~ नमः वार्ता 


फाँसी से एक दिन पूर्व फाँसी पाने वाले व्यक्ति को उसके सगे सम्बन्धियों से भेंट का अवसर मिलता है। ठाकुर मुरलीधर ठकुराइन को साथ ना लाये थे कि माँ बहुत रोयेगी।


दल की ओर से शिव वर्मा भी सम्बन्धी बनकर राम प्रसाद बिस्मिल “ राम प्रसाद तोमर” से मिल लेना चाहते थे। उन्होंने मुरलीधर जी से बात की पर उन्होंने झिड़क दिया। इधर माँ अपने से ही गोरखपुर पहुँच गई और जेल के फाटक पर पहले से मौजूद थीं। शिव वर्मा ने माता से अनुनय की तो वे बोलीं, तुम राम प्रसाद बिस्मिल “ राम प्रसाद तोमर” के संगी हो और मेरे बेटे जैसे हो। मैं तुम्हें साथ ले चलूँगी कोई पूछे तो कह देना मेरे भतीजे हो, शेष मैं देख लूँगी।


नवम्बर १९२८ के चाँद पत्रिका के फाँसी अंक में राम प्रसाद बिस्मिल “ राम प्रसाद तोमर” व उनकी माताजी की अन्तिम भेंट का जो मार्मिक विवरण प्रकाशित

सोमवार, 20 मार्च 2023

“ आस्था ” कहानी ~ नमः वार्ता

  🔆💥 जय श्री राम 🔆💥

 “ आस्था ” कहानी ~ नमः वार्ता 


पुरुषोत्तम जी घोर नास्तिक हैँ। ईश्वर मेँ उनका कतई विश्वास नहीँ है। एक दिन आवश्यक कार्य से उनके घर पहुंचा,तो देखा कि वहां सत्यनारायण जी की कथा हो रही है। पुरुषोत्तम जी अपनी पत्नी के साथ बैठे कथा श्रवण कर रहे हैँ। कथा के उपरांत हवन और आरती मेँ भी उनका समर्पण भाव देखते ही बनता था। 


कथा पूरी होने के बाद मैँने उनसे पूछ लिया-'पुरुषोत्तम जी, आप तो अनीश्वरवादी हैँ?


हां।- उन्होँने उत्तर दिया।


मैँने पूछा-फिर अभी थोड़ी देर पहले जो मैँने देखा,वह क्या था?


पुरुषोत्तम जी ने समझाया-मेरी ईश्वर मेँ आस्था नहीँ है,तो क्या हुआ? अपनी पत्नी मेँ तो आस्था है। उससे प्रेम है। क्या हम अपनोँ की प्रसन्नता के लिए वह नहीँ कर सकते,जो उन्हेँ अच्छा लगे? -देवेन्द्र सुथार



शनिवार, 18 मार्च 2023

“ चार धाम की यात्रा ” कहानी ~ नमः वार्ता

   🔆💥 जय श्री राम 🔆💥

 “ चार धाम की यात्रा ” कहानी ~ नमः वार्ता


        रक्षाबंधन का त्यौहार पास आते  ही मुझे सबसे ज्यादा जमशेदपुर वाली बुआ जी की  राखी के  आने की प्रतीक्षा रहती थी। कितना बड़ा  पार्सल भेजती थी बुआ जी। भिन्न-भिन्न के मिठाई, खिलौने मां  के लिए साड़ी, पापाजी के लिए कोई कपड़े।


इस बार भी बहुत सारा सामान  भेजा था उन्होंने। पटना और  रामगढ़ वाली दोनों बुआ जी ने  भी रंग बिरंगी राखीयों के साथ बहुत सारे उपहार भेजे थे। बस  रोहतास नगर वाली जया बुआ की राखी हर वर्ष की प्रकार एक साधारण से लिफाफे में आयी थी। पांच राखियाँ, कागज के टुकड़े में लपेटे हुए रोली चावल और  पचास का एक नोट।


मां  ने  चारों बुआ जी के पैकेट डायनिंग टेबल पर  रख दिए थे ताकि पापा कार्यालय से लौटकर एक  दृष्टि  अपनी बहनों की भेजी राखियां और उपहार देख ले। पापा प्रतिदिन की प्रकार आते ही  टेबल पर भोजन का

शुक्रवार, 17 मार्च 2023

“ बनूंगी सासू माँ सी सासूमाँ ” कहानी ~ नमः वार्ता

 

 🔆💥 जय श्री राम 🔆💥

 “ बनूंगी सासू माँ सी सासूमाँ ” कहानी ~ नमः वार्ता


      सुबह 10 बार स्वर लगाने पर भी ना उठती हो जो कभी वो आज सुबह 6 बजे उठकर चाय बनाने लगी। समाचार पत्र ले आयी, पौधों को जल दे दिया, पापा को भी सुबह टहलने जाने के लिए जगाने आ गयी ! अंतता ये चक्कर क्या है। घर के सभी लोग रानी को बड़ी आश्चर्य मुद्रा में देखे जा रहे थे। 


जब सब के सब्र का बांध टूट गया तो उसने बड़े ही सहज रूप में कहा, "वहाँ ससुराल में थोड़ी कोई होगा मेरे आगे पीछे घूमने के लिये"। विवाह पक्की हुए अभी 3 महीने ही हुए थे और अचानक से रानी की समझ में इतना परिवर्तन और बेटी को बड़ी होते देख सब प्रसन्न भी थे और दुखी भी।


विवाह हुई रानी अपने नए घर आयी। सुबह नींद नही खुलेगी यह सोचकर वह पूरी रात नहीं सोई। शीघ्र नहा धोकर, पूजा कर अपनी पहली रसोई की तैयारी की सोचने लगी। क्या बनाऊ जो सबको अच्छा लगे, बच्चो को भी पसंद आये ! इस सोच विचार में लगी थी कि एक सहज मीठी सी स्वर आयी, रानी  तुम इतना शीघ्र क्यों उठ गई बेटा ?"


जैसे उन स्वरों में आनंद था! रानी ने जैसे ही पीछे मुड़ के देखा तो "सासु माँ" हाथ में विवाह के हिसाब के कुछ पन्ने लिए खड़ी थी। विवाह की दौड़ भाग में कितना परेशान हो गयी होगी, फिर घरवालो का स्मरण भी

गुरुवार, 16 मार्च 2023

“ बुजुर्गों का मन ” कहानी ~ नमः वार्ता

  🔆💥 जय श्री राम 🔆💥

 “ बुजुर्गों का मन ” कहानी ~ नमः वार्ता


   मां जी बहुत तेज वर्षा हो रही है आप खिड़की बंद कर दीजिए वर्षा की बूंदे आपको बीमार कर सकती हैं। प्रिशा अपनी सास मिथलेश जी से बोली।


नहीं बहू !! बूंदे यहां नहीं आ रही। तुम्हारे बाबूजी को बहुत पसंद थी वर्षा। घंटो बैठे रहते थे खिड़की पर हम दोनों। साथ में चलता था पकोड़े और चाय का दौर। सच क्या दिन थे वो भी अब तो ना उनका साथ रहा ना पकोड़े झेलने वाला शरीर! मिथलेश जी ठंडी आह भरकर बोली।


प्रिशा ने पकोडों की बात होने पर मिथलेश जी की आंखों में जो चमक देखी उससे प्रिशा की आंख भर आई। सच में बुढ़ापा ऐसा होता है जब जीभ तो बच्चों की तरह मचलती पर शरीर कुछ भी ऐसा वैसा खाने की अनुमति नहीं देता है। मां जी को शूगर और ब्लड प्रेशर की बीमारी के कारण चिकित्सक ने तला हुआ और मसालेदार खाना मना किया है।


मिथलेश जी अभी दो महीने पहले ही पति के मरने के बाद गांव का घर छोड़ बेटे बहु के पास आई है। यहां बहू प्रिशा बेटा तरुण पोता पोती सब हैं। बेटे बहू ने बाबूजी के ना रहने पर उन्हें अकेले नहीं रहने दिया तो मजबूरी में उन्हें शहर आना पड़ा था हालाकि उनके मन में शंका थी बहू कैसा व्यवहार करेगी पर बहू प्रिशा बहुत ध्यान रखती है सास का। पोते-पोती भी आगे पीछे घूमते रहते तो मिथलेश जी का मन लगा रहता है। पर इस उम्र में जीवनसाथी की कमी कोई पूरी नहीं कर

बुधवार, 15 मार्च 2023

“ अनदेखा आशीष - रिश्तों का महत्व ” कहानी ~ नमः वार्ता

  🔆💥 जय श्री राम 🔆💥

 “ अनदेखा आशीष - रिश्तों का महत्व ” कहानी ~ नमः वार्ता



     घर की नई नवेली इकलौती बहू एक स्ववित्त बैंक में बड़े पद पर थी । उसकी सास लगभग एक वर्ष पहले ही स्वर्गवासी हो चुकी थी । घर में बुज़ुर्ग ससुर औऱ उसके पति के अलावा कोई न था । पति का अपना कारोबार था ।


पिछले कुछ दिनों से बहू के साथ एक विचित्र बात होती ।बहू जब यथाशीघ्र घर का काम निपटा कर कार्यालय के लिए निकलती ठीक उसी समय ससुर उसे आवाज़ देते औऱ कहते बहू ,मेरा चश्मा साफ कर मुझें देती जा। लगातार कार्यालय के लिए निकलते समय बहू के साथ यही होता । काम के दबाव औऱ देर होने के कारण क़भी कभी बहू मन ही मन झल्ला जाती लेकिन फ़िरभी अपने ससुर को कुछ बोल नहीं पाती ।


जब बहू अपने ससुर के इस कार्य से पूर्ण रुपसे ऊब गई तो उसने पूरे प्रकरण को अपने पति के साथ साझा किया ।पति को भी अपने पिता के इस व्यवहार पर आश्चर्य  हुआ लेकिन उसने अपने

मंगलवार, 14 मार्च 2023

“ गृहस्थी में त्याग ” कहानी ~ नमः वार्ता

  🔆💥 जय श्री राम 🔆💥

 “ गृहस्थी में त्याग ” कहानी ~ नमः वार्ता

 

विवाह की वर्षगांठ की पूर्वसंध्या पर पति-पत्नी साथ में बैठे चाय की चुस्कियां ले रहे थे।


संसार की दृष्टि में वो एक आदर्श युगल था। प्रेम भी बहुत था दोनों में लेकिन कुछ समय से ऐसा प्रतीत हो रहा था कि संबंधों पर समय की धूल जम रही है। शिकायतें धीरे-धीरे बढ़ रही थीं।


बातें करते-करते अचानक पत्नी ने एक सुझाव दिया कि मुझे तुमसे बहुत कुछ कहना होता है लेकिन हमारे पास समय ही नहीं होता एक-दूसरे के लिए इसलिए मैं दो डायरियाँ ले आती हूँ और हमारी जो भी शिकायत हो हम पूरा वर्ष अपनी-अपनी डायरी में लिखेंगे।


अगले वर्ष इसी दिन हम एक-दूसरे की डायरी पढ़ेंगे ताकि हमें पता चल सके कि हममें कौन सी कमियां हैं जिससे कि उसका पुनरावर्तन ना हो सके।


पति भी सहमत हो गया कि विचार तो अच्छा है। डायरियाँ आ गईं और देखते ही देखते वर्ष बीत गया। अगले वर्ष फिर विवाह की वर्षगांठ की पूर्वसंध्या पर दोनों साथ बैठे।


एक-दूसरे की डायरियाँ लीं। पहले आप, पहले आप की मनुहार हुई। अंत में महिला प्रथम की परिपाटी के आधार पर पत्नी की लिखी डायरी पति ने पढ़नी शुरू की।


पहला पृष्ठ

दूसरा पृष्ठ

तीसरा पृष्ठ

"आज विवाह की वर्षगांठ पर मुझे ढंग का उपहार नहीं दिया"


"आज होटल में खाना खिलाने का कहकर करके भी नहीं ले गए"


"आज मेरे पसंदीदा हीरो की पिक्चर दि

सोमवार, 13 मार्च 2023

“ आत्मचिंतन-मेरे मन्दिर के पंडित जी ” कहानी ~ नमः वार्ता

 🔆💥 जय श्री राम 🔆💥

 “ आत्मचिंतन-मेरे मन्दिर के पंडित जी ” कहानी ~ नमः वार्ता 

 ```हमारे क्षेत्र में एक मंदिर है , जहाँ के पंडित लगभग २० वर्ष से पंडिताई कर कर रहे हैं । एक बार मंदिर जाने पर मेरे पास आये और बोले ”मेरे बेटे की शुल्क में ३००० रूपये की कमी पड़ रही है , कुछ लोगों से कहा है पर ईश्वर  की इच्छा उनके पास भी इस समय नहीं हैं , यदि आप मदद कर सके तो....मैं वापस कर दूँगा , बच्चे का वर्ष क्षतिग्रस्त हो जाएगा , २० वर्ष से मंदिर की सेवा में हूँ , यहीं , मैं आपको वचन दे रहा हूँ ... मैं आप के पैसे अवश्य लौटा दूंगा। 


मैंने घर आ कर पैसे निकाल कर उनको दे दिए क्योंकि मुझे उनकी बात में सच्चाई दिखी। मेरे साथ उस समय मेरा मित्र भी था , उसने मुझसे कहा ,” कौन लौटाता है , तू उन पैसों को भूल जा, मुझे भी उस समय यही लगा कि हो सकता है ऐसा हो, फिर भी मुझे ये स्वीकृत था कि वो पैसे बच्चे की शिक्षा में लगे हैं इसलिए शाम को मैंने पत्नी को पूरी घटना बताते हुए कहा, ”मैंने एक बच्चे की शिक्षा के लिए वो पैसे दिए हैं , यदि वो

रविवार, 12 मार्च 2023

“ प्रार्थना में शब्द या भाव का महत्व ” कहानी ~ नमः वार्ता

  🔆💥 जय श्री राम 🔆💥

 “ प्रार्थना में शब्द या भाव का महत्व ” कहानी ~ नमः वार्ता


एक पंडित जी समुद्री जलयान से यात्रा कर रहे थे, रास्ते में एक रात चक्रवात आने से जलयान को एक द्वीप के पास लंगर डालना पडा। सुबह पता चला कि रात आये तुफान में जलयान में कुछ क्षति आ गयी है, जलयान को एक दो दिन वहीं रोक कर उसकी मरम्मत करनी पडेगी।


पंडित जी नें सोचा क्यों ना एक छोटी बोट से द्वीप पर चल कर घूमा जाये, यदि कोई मिल जाये तो उस तक प्रभु का संदेश पहुंचाया जाय और उस प्रभु का मार्ग बता कर प्रभु से मिलाया जाये।


तो वह जलयान के प्रमुख से अनुमति ले कर एक छोटी बोट से द्विप पर गये, वहाँ इधर उधर घूमते हुवे तीन द्वीपवासियों से मिले। जो बरसों से उस सूने द्वीप पर रहते थे। पंडित जी उनके पास जा कर बातचीत करने लगा।


उन्होंने उनसे ईश्वर और उनकी आराधना पर चर्चा की । उन्होंने उनसे पूछा- “क्या आप ईश्वर को मानते हैं ?” 


वे सब बोले- “हाँ..।“


फिर उन्होंने ने पूछा- “आप ईश्वर की आराधना कैसे करते हैं ?"


उन्होंने बताया- ''हम अपने दोनो हाथ ऊपर करके कहते हैं "हे ईश्वर हम आपके हैं,

शनिवार, 11 मार्च 2023

“ पापा का प्यार ” कहानी ~ नमः वार्ता

  🔆💥 जय श्री राम 🔆💥

 “ पापा का प्यार ” कहानी ~ नमः वार्ता


 ```पाँच दिन की छुट्टियां बिता कर जब ससुराल पहुँची तो पति घर के सामने स्वागत में खड़े थे। 

अंदर प्रवेश किया तो छोटे से वाहन कक्ष में चमचमाती गाड़ी खड़ी थी स्विफ्ट डिजायर!


मैंने नेत्रों ही नेत्रों से पति से प्रश्न किया तो उन्होंने गाड़ी की चाबियाँ थमाकर कहा:-"कल से तुम इस गाड़ी में विद्यालय जाओगी प्रधानाचार्य महोदया!"


"ओह प्रभू!!'' 


 प्रसन्नता इतनी थी कि मुँह से और कुछ निकला ही नही। बस जोश और भावावेश में मैंने तहसीलदार महोदय को एक जोरदार झप्पी देदी और अमरबेल की तरह उनसे लिपट गई। उनका उपहार देने का मार्ग भी भिन्न हुआ करता है। 


सब कुछ चुपचाप और अचानक!! 


स्वयं के पास पुरानी इंडिगो है और मेरे लिए और भी महंगी खरीद लाए। 


6 वर्ष के विवाहित जीवन में इस व्यक्ति ने न जाने कितने उपहार दिए। गिनती करती हूँ तो थक जाती हूँ। निष्ठावान है रिश्वत नही लेते । किंतु व्ययी इतने कि उधार के पैसे लाकर उपहार खरीद लाते है।


लम्बी सी झप्पी के उपरांत मैं अलग हुई तो गाडी का निरक्षण करने लगी। मेरा पसंद का रंग था। बहुत सुंदर थी। 


फिर दृष्टि उस स्थान गई जहाँ मेरी स्कूटी खड़ी रहती थी।

हठात! वो स्थान तो रिक्त था। 


"स्कूटी कहाँ है?"

शुक्रवार, 10 मार्च 2023

“ अधूरा स्वप्न ” कहानी ~ नमः वार्ता

  🔆💥 जय श्री राम 🔆💥

 अधूरा स्वप्न

 


 ```"सुनिए जी, हम लोग आजतक कहीं घूमने फिरने नहीं गए। आप कार्यालय में खटते रहते हो और मैं इस घरगृहस्थी में।"


रमाजी आज किंचित आवेश में थीं। सुधाकर जी आश्चर्यचकित होकर उन्हें देख रहे थे। आज शीतल शांत पोखरी में जैसे किसी ने पत्थर फेंक दिया था।


वो वातावरण को शांत करने के प्रयास में चुहलबाजी करने लगे थे, "आज सूरज पश्चिम में कैसे उग गया। हमारी हमेशा की शीतल गगरी में आज ये उबाल कैसे आ गया?"


वो और चिढ़ कर बोली थीं, "बात को घुमाइए मत। दस वर्ष हो गए हमारे विवाह को। हम तो गृहस्थी के जाल में उलझ कर रह गए हैं। सब लोग अल्प समय निकाल कर वर्ष दो वर्ष में कुछ घूमना फिरना तो करते ही हैं।"


वो लम्बी श्वास लेकर कराहते से बोले,"मेरी इतनी कमाई भी नहीं है। माँ की दवाइयों और दोनों बच्चों की आधुनिक पढ़ाई के खर्चे उठाते उठाते कमर टूट सी गई है। इन उत्तरदायित्वों से उबरें तो अपने बारे में अवश्य सोचेंगे।"


वो पति से सहमत होते हुए चुप सी हो गईं पर अश्रुपूरित नेत्रों ने तो बगावत ही कर दी थी। तभी एकाएक दूसरे कमरे से अपना पल्लू संभालते हुए अम्माजी आ गई और सुधाकर को डाँटते हुए बोलीं,"कभी तो रमा की भी सुन लिया करो। जो गलतियां मैंने की, वो तुम लोग मत करो।"


दोनों चौंक कर उन्हें देखने लगे थे। वो उनके सिर पर हाथ फेरते हुए कहने लगी," हम और तुम्हारे बाबूजी भी सदा यही सोचते रह गए कि एक बार जीवन की उत्तरदायित्व पूरी हो जाएँ तो मौज करेंगें...घूमेंगे फिरेंगे पर बाबूजी बीच मँझधार में ही छोड़ गए।"

शनिवार, 31 दिसंबर 2022

“ स्वयं को पहचाने ” कहानी ~ नमः

🔆💥 जय श्री राम 🔆💥
 “ स्वयं को पहचाने ” कहानी ~ नमः वार्ता

 अकबर ने एक ब्राह्मण को दयनीय हालत में जब भिक्षाटन करते देखा तो बीरबल की ओर व्यंग्य कसकर बोले - 'बीरबल ! ये हैं तुम्हारे ब्राह्मण ! जिन्हें ब्रह्म देवता के रुप में जाना जाता है । ये तो भिखारी हैं ।' 

 बीरबल ने उस समय तो कुछ नहीं कहा । लेकिन जब अकबर महल में चला गया तो बीरबल लौटा आया और ब्राह्मण से पूछा कि वह भिक्षाटन क्यों करता है ? 

 ब्राह्मण ने कहा - 'मेरे पास धन, आभूषण, भूमि कुछ नहीं है और मैं अधिक शिक्षित भी नहीं हूँ ।

शुक्रवार, 15 जुलाई 2022

“रिश्तों के टुकड़े सँजोती बहु ” कहानी ~ नमः वार्ता

🔆💥 जय श्री राम 🔆💥

रिश्तों के टुकड़े सँजोती बहु ” कहानी ~ नमः वार्ता


चालीस पार मोहन ने अंत अपने आँफिस की सहकर्मी सुधा से विवाह कर ही ली....सुधा जहां एक अनाथ लडकी थी अपने चाचा चाची के पास पली बडी वही दूसरी ओर मोहन की केवल माताजी है पिताजी का स्वर्गवास उसके छोटी उम्र मे ही हो गया था ....
सुधा ने आते ही घर का सारा काम बहुत अच्छे से संभाल लिया ....वह अपनी बीमार सासूमां का अच्छे से ध्यान रखती..... लेकिन विवाह के बीते एक वर्ष उपरांत उसने एक गुण बना ली थी वो अब अपनी सासूंमां के पास बैठकर कुछ नहीं खाती थी पहले तो दोनों सास-बहू साथ में ही भोजन खाती थी.... सुधा की सास सुषमा जी पहले रसोई के काम में हाथ भी बंटवाती थी इसलिए उनको सब पता होता था कि रसोई में किस डब्बे में क्या रखा है लेकिन अब बीमारी के कारण वो रसोई में भी नही जा पाती थी....

गुरुवार, 7 जुलाई 2022

रुपये का मूल्य

🔆💥 जय श्री राम 🔆💥

 रुपये का मूल्य 


"माला!.इधर सीढ़ियों की रेलिंग थोड़ा रगड़ कर साफ़ कर।" ऊपर के कमरे से उतरती रमीला ने पहली सीढ़ी पर पाँव रखते ही माला को आदेश दी।


"जी दीदी!"


"आजकल तू पोंछा ठीक से नहीं लगाती!.दो बार लगाया कर।"

माला सर झुकाए बिना कोई उत्तर दिए हर एक कोने को चमकाने में लगी रही।


"तुझे मेरा टोकना बुरा तो नहीं लगता ना?"


"नहीं दीदी!"


"बुरा तो लगता ही होगा!.लेकिन केवल इसी सफाई के मैं तुझे हजार रुपए देती हूँ।"


अपने रुपयों की मूल्य समझाती सीढ़ियों से नीचे उतरती रमीला का पाँव अभी-अभी ताजा पोंछा लगे गीले फर्श पर अचानक फिसल गया लेकिन वहीं सीढ़ियों की रेलिंग पोंछती माला ने बिजली की फुर्ती से दौड़ कर रमीला को थाम लिया..

"संभल कर दीदी!"


माला का हाथ थामें रमिला की जान में जान आई। माला ने सहारा देकर रमीला को सोफे पर बैठाते हुए चिंता जताई..

"कहीं कोई चोट तो नहीं आई ना दीदी?"


"नहीं रे!. तूने बचा लिया!.वरना आज तो अस्पताल का मुँह देखना ही पड़ता।"


"कैसी बातें कर रही हैं दीदी!"

रमीला की सलामती की दुआ करती माला पुनः से पोंछा उठा सीढ़ियों की ओर चल पड़ी लेकिन रमीला ने एक बार पुनः से उसे टोका.. "अच्छा सुन!"..


"जी दीदी!"


"सीढ़ियों पर हफ्ते में दो दिन ही पोंछा लगाया कर!.और फर्श को भी अधिक रगड़ने की अवश्यत नहीं!"


 अचानक मिले सिख ने रुपयों की मूल्य समाप्त कर दी थी।  संकलित


 _ध्यान दीजिए समाज का केवल एक वर्ग ही केवल अपनी श्रम शक्ति बेचने में सक्षम हैं (वेतनशुदा मजदूरी)। ये असमानताएं अथवा भौतिकवाद स्तरीकरण विशुद्ध रूप से आर्थिक भिन्नताओं पर आधारित नहीं है, अपितु अन्य स्थ्तियों और शक्ति की असमानताओं पर भी आधारित है। मैं दिनेश बरेजा आह्वान करता हु की आइए इस व्यापक रूप से फैले भौतिक धन इत्स्मरणि पर आधारित सामाजिक वर्गीकरण को दीपावली के शुभ अवसर पर समाप्त करे। सभी अपने हिन्दू श्रमिक साथियों को आदर सहित गले लगाए तथा अनुग्रहित करें_-दिनेश बरेजा प्रेषक-

 दिनेश बरेजा 




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बुधवार, 6 जुलाई 2022

संतुष्टि की 2 रोटी की मूल्य नमः वार्ता

 🔆💥 जय श्री राम 🔆💥


 संतुष्टि की 2 रोटी की मूल्य 


बहस बहुत जोरो की चल रही थी..विषय था "राजनीति"


दोनों भाई स्वयं को सही स्पष्ट करने पर तुले हुए थे..

खोज खोज कर अपनी पसंदीदा पार्टी के सपोर्ट के लिए उदाहरण लाए जाए रहे थे..


धीरे धीरे बहस का मुद्दा राजनीतिक ना रहकर व्यक्तिगत होने लगा, जैसे कि पार्टी बेईमान ना हो सामने वाला भाई बेईमान हो और उसकी पार्टी और वो स्वयं निष्ठावान...


"राजनीति कभी किसी की नहीं हुई, यदि इस मुद्दे पर कोई किसी के साथ स्वस्थ बहस करने की भी प्रयास करे तो उसी के व्यक्तित्व पर कीचड़ उछलने शुरू हो जाते है "यहां भी ऐसा ही होने लगा  था...


तब तक बड़े भाई ने अचानक अपने पिता से पूछा, " पिताजी मान लीजिए कि मै एक भ्रष्ट राजनेता हूं और अमीर हूं और ये छोटा निष्ठावान नेता है और गरीब है, यदि कभी चुनाव का अवसर हो तो आप किसे चुनेंगे"


 " जो मुझे दो रोटी संतुष्टि से खिला देगा उसी को चुनुंगा " 

संकलित

 _समाज में व्याप्त अशांति को बहाल करने की अपील व मृतक के परिजनों को सांत्वना देने के बहाने राजनीतिक दल उस पीड़ित परिवार से मिल, सहानुभूति जता अपनी राजनीतिक रोटी सेंकने की पुनःाक में लग जाते हैं। मैं दिनेश बरेजा ये मानता हूं कि उस समय कच्चे लालच में फंसकर हमारे कुछ स्वार्थी हिन्दू बन्धु मात्र आपना लाभ देखते हैं तथा उस कृत्य से होने वाली समाजिक हानि का भी ध्यान नही रखते। उस समय गरीब व्यक्ति को ज्ञान/समाज से अर्थ नहीं होता,उसे अपनी निजी भूख मिटानी होती है , बच्चो का पेट भरने से अर्थ होता है, उसे जहा लाभ दिखेगा वो वहीं जाएगा। आप उसे लालच दो वो मुस्लिम हो जाएगा और यदि उसे कही और अधिक लाभ होगा वो ईसाई भी हो जाएगा।

प्रेषक -दिनेश बरेजा_ 


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मंगलवार, 5 जुलाई 2022

बेटे की मूल्य नमः वार्ता

 🔆💥 जय श्री राम 🔆💥


 बेटे की मूल्य 


थकी हारी घर में घुसी थी

मां पापा सामने बरामदे में बैठे थे.. देखते ही कहा "आ गई बेटी , आज देर हो गई"


" हां पापा, आज थोड़ा काम अधिक था"


" अच्छा जा फ्रेश हो जा छोटी को बोल दे चाय बना देगी " , मां ने कहा


"जी, ठीक है" वो अंदर चली गई ..तीन बहनें थीं, दो नौकरी कर रही थीं, एक छोटी पढ़ रही थी।


दोनों बहनों ने घर की सारी उत्तरदायित्व अत्यंत अच्छे से संभाले थी,

फ्रेश होकर बाहर आई तब चाय बन के आ चुकी थी, वो मां पापा के पास चली आई, अब तक मंझली बहन भी आ गई थी।


मां ने घर के सामान लाने की स्मरण दिलाई, तब तक पापा ने भी अपनी दवाइयों के समाप्त होने की कही, वो सब सुन रही थी

दोनों ने भरोसा दिलाया कि आप लोग चिंता ना करे सब हो जाएगा..


और वो दोनों जाने के लिए उठी..तब तक पीछे से आवाज आई -

 " भगवान एक बेटा दे देता तो .." 

-संकलित


 _स्त्री और पुरुष के बीच नैसर्गिक भेद होना तो प्रकृति द्वारा ही तय कर दिया है लेकिन उनमें मूलभूत फर्क एक-दूसरे के पूरक के रूप में काम करने के लिए ही रखे गए किंतु मैं दिनेश ये मानता हूं कि समाज में पौरुष बल की प्रधानता के कारण महिलाओं को पुरुषों के समकक्ष ना रखकर उन्हें निचले पायदान पर रखा गया, लेकिन बात यहीं समाप्त नहीं होती, क्योंकि महिलाओं को ना केवल सैद्धांतिक रूप में निचला स्थान दिया गया है बल्कि उन्हें हर समय और हर पड़ाव पर यह आभास भी करवाया जाता है कि परिवार और समाज दोनों ही में उनका महत्व पुरुषों से कम है। यह सिलसिला बेटी के जन्म से प्रारंभ होता है और उम्रभर उसके साथ-साथ चलता है_ 

प्रेषक-दिनेश बरेजा 


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सोमवार, 4 जुलाई 2022

कुत्ते का स्वभाव ~ नमः वार्ता

 🔆💥 जय श्री राम 🔆💥

 कुत्ते का स्वभाव 


एक गरीब साधुबाबा की झोपड़ी पर…रात को जोरों की वर्षा हो रही थी। सज्जन था, छोटी सी झोपड़ी थी स्वयं और उसकी पत्नी, दोनों सोए थे। आधीरात किसी ने द्वार पर दस्तक दी।


उन सज्जन साधुबाबा ने अपनी पत्नी से कहा - थोड़ा उठ! द्वार तो खोल दे। पत्नी द्वार के निकट सो रही थी। पत्नी ने कहा - इस आधी रात में जगह कहाँ है? कोई यदि शरण माँगेगा तो तुम मना न कर सकोगे?


वर्षा जोर की हो रही है। कोई शरण माँगने के लिए

रविवार, 3 जुलाई 2022

अन्नदाता की मूल्य नमः वार्ता

 🔆💥 जय श्री राम 🔆💥

 अन्नदाता की मूल्य 


"गन्ने का रस पी लो काकी!"..


गाँव की हॉट में ठेला लगा गन्ने का रस बेच रहे लाखन ने सर पर सब्जी-भाजी की टोकरी उठाएं चली आ रही काकी को देख आज पुनः आवाज लगा दी।


"पैसे ना है मेरे पास!" उसे दृष्टिअंदाज कर काकी आगे बढ़ने को हुई।

"पैसे कहाँ माँग रहा हूँ काकी!" 

"मुफ्त में पिलाएगा रस?" 

"आप यही समझ लो!" 


गन्ने से रस निकालता लाखन मुस्कुराया लेकिन सर पर उठाया बोझ वहीं पास में रख काकी भुनभुनाई.. 

"बड़ा आया!.मुफ्त में रस पिलाने वाला।".. 


इससे पहले की वह उसे कुछ और सुनाती लाखन ने गिलास भरकर गन्ने का रस काकी की ओर बढ़ा दिया..

"लो काकी!.चख कर बताओ मिठास।" पहला घूंट लेते ही काकी तृप्त हुई..


"ताजे गन्ने के रस में बड़ा मिठास होवे है!"


"लेकिन काकी!.आजकल मिठास उपजाने वालों के घर में अक्सर उपवास होवे है।" वर्षों से अपने खेतों में गन्ना उपजा रहे लाखन का दर्द छलका।


"क्यों?..मंडी में गन्नों के भाव ना मिले?" गन्ने के रस का अंतिम घूंट लेती काकी चिंतामंद हुई।


"सरकार से लड़ रहे झूठे किसान नेताओं की दृष्टि में इस मिठास की कोई मूल्य नहीं, वे तो हमे बढन न दे रहे!सरकारी योजनाओं का लाभ हम तक न पहुंचता"


"यो तो है बेटा!...नूं तो इस मिठास की मूल्य कोई ना चुका सके!.लेकिन मेहनत की मूल्य तो हर हाल में चुकानी ही चाहिए।" काकी ने प्रतिदिन की प्रकार आज भी अपने आंचल के खूंटे में बंधा दस का नोट खोलकर लाखन के हाथ पर रख दिया।

प्रेषक-

 दिनेश बरेजा 

 

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