🔆💥 जय श्री राम 🔆💥
“ अनदेखा आशीष - रिश्तों का महत्व ” कहानी ~ नमः वार्ता
घर की नई नवेली इकलौती बहू एक स्ववित्त बैंक में बड़े पद पर थी । उसकी सास लगभग एक वर्ष पहले ही स्वर्गवासी हो चुकी थी । घर में बुज़ुर्ग ससुर औऱ उसके पति के अलावा कोई न था । पति का अपना कारोबार था ।
पिछले कुछ दिनों से बहू के साथ एक विचित्र बात होती ।बहू जब यथाशीघ्र घर का काम निपटा कर कार्यालय के लिए निकलती ठीक उसी समय ससुर उसे आवाज़ देते औऱ कहते बहू ,मेरा चश्मा साफ कर मुझें देती जा। लगातार कार्यालय के लिए निकलते समय बहू के साथ यही होता । काम के दबाव औऱ देर होने के कारण क़भी कभी बहू मन ही मन झल्ला जाती लेकिन फ़िरभी अपने ससुर को कुछ बोल नहीं पाती ।
जब बहू अपने ससुर के इस कार्य से पूर्ण रुपसे ऊब गई तो उसने पूरे प्रकरण को अपने पति के साथ साझा किया ।पति को भी अपने पिता के इस व्यवहार पर आश्चर्य हुआ लेकिन उसने अपने
पिता से कुछ नहीं कहा। पति ने अपनी पत्नी को सुझाव दिया कि तुम सुबह उठते के साथ ही पिताजी का चश्मा साफ करके उनके कमरे में रख दिया करो ,फिर ये झमेला समाप्त हो जाएगा ।अगले दिन बहू ने ऐसा ही किया औऱ अपने ससुर के चश्मे को सुबह ही अच्छी तरह साफ करके उनके कमरे में रख आई।लेकिन फ़िरभी उस दिन वही घटना पुनः हुई औऱ कार्यालय के लिए निकलने से ठीक पहले ससुर ने अपनी बहू को बुलाकर उसे चश्मा साफ़ करने के लिए कहा। बहू क्रोध में लाल हो गई लेकिन उसके पास कोई चारा नहीं था। बहू के लाख उपायों के बावजूद ससुर ने उसे सुबह कार्यालय जाते समय स्वर देना नहीं छोड़ा ।
धीरे धीरे समय बीतता गया औऱ ऐसे ही कुछ वर्ष निकल गए। अब बहू पहले से सब कुछ परिवर्तित चुकी थी। धीरे धीरे उसने अपने ससुर की बातों को अनसुना करना शुरू कर दिया और फ़िर ऐसा भी समय चला आया जब बहू अपने ससुर को बिलकुल अनसुना करने लगी । ससुर के कुछ बोलने पर वह कोई प्रतिक्रिया नहीं देती औऱ बिलकुल शांतिपूर्वक से अपने काम में मस्त रहती। बिताते समय के साथ ही एक दिन बेचारे बुज़ुर्ग ससुर भी बीत गए।
समय का पहिया कहाँ रुकने वाला था,वो घूमता रहा घूमता रहा। छुट्टी का एक दिन था। अचानक बहू के मन में घर की स्वच्छता, सफाई का विचार आया। वो अपने घर की सफ़ाई में जुट गई। तभी सफाई के दौरान मृत ससुर की डायरी उसके हाथ लग गई।बहू ने जब अपने ससुर की डायरी को पलटना शुरू किया तो उसके एक पन्ने पर लिखा था-"दिनांक 21-07-2020.... आज के इस भागदौड़ औऱ बेहद तनाव व संघर्ष भरे जीवन में, घर से निकलते समय, बच्चे अक्सर बड़ों का आशीर्वाद लेना भूल जाते हैं जबकि बुजुर्गों का यही आशीर्वाद संघर्ष समय में उनके लिए ढाल का काम करता है। बस इसीलिए, जब तुम चश्मा साफ कर मुझे देने के लिए झुकती थी तो मैं मन ही मन, अपना हाथ तुम्हारे सिर पर रख देता था क्योंकि मरने से पहले तुम्हारी सास ने मुझें कहा था कि बहू को अपनी बेटी की तरह प्यार से रखना औऱ उसे ये कभी भी मत अनुभव होने देना कि वो अपने ससुराल में है औऱ हम उसके माँ बाप नहीं हैं। उसकी छोटी मोटी गलतियों को उसका भोलापन समझकर क्षमा कर देना । वैसे मेरा आशीष सदा तुम्हारे साथ है बेटा!! डायरी पढ़कर बहू फूटफूटकर रोने लगी। आज उसके ससुर को स्वर्गवासी हुए ठीक 2 साल से ज़्यादा समय बीत चुके हैं लेकिन फ़िर भी वो प्रतिदिन घर से बाहर निकलते समय अपने ससुर का चश्मा साफ़ कर, उनके टेबल पर रख दिया करती है, उनके अनदेखे हाथ से मिले आशीष की लालसा में।```
जीवन में हम रिश्तों का महत्व अनुभव नहीं करते हैं, चाहे वो किसी से भी हो, कैसे भी हो और जब तक अनुभव करते हैं तब तक वह हमसे बहुत दूर जा चुके होते हैं। रिश्तों के महत्व को समझें और उनको सहेज कर रखें।
प्रेषक-
#दिनेश बरेजा
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