गन्दी सोच व्यक्तित्व में दोष ...
महिला दिवस के नाम पर, मोहल्ले मे महिला सभा का आयोजन किया गया था।...
सभा स्थल पर महिलाओं की संख्या अधिक और पुरुषों की कम थी.....
मंच पर तरकीबन पच्चीस वर्षीय खुबसूरत युवती, आधुनिक वस्त्रों से सज्जित........ माइक हाथ में लेकर दोष दे रही थी, पुरुष समाज को।....
वही पुराना आलाप.... कम और छोटे कपड़ो को समाज स्वीकृति, और कुछ भी पहनने की स्वतंत्रता का बचाव करते हुए... पुरुषों की गन्दी सोच और व्यक्तित्व का दोष बतला रही थी।....
तभी अचानक सभा स्थल से..... तीस बत्तीस वर्षीय सभ्य, शांत और आकर्षक से दिखते नवयुवक ने खड़े होकर अपने विचार व्यक्त करने की अनुमति मांगी। ......
स्वीकार कर अनुरोध माइक उसके हाथों मे दे दी गयी....
हाथो मे आते ही माइक बोलना उसने शुरू किया....माताओं बहनो और भाइयो मै आपको नही जानता और आप मुझको नही जानते की मै कैसा व्यक्ति हूं.... लेकिन भेषभूषा (पहनावे )और रूप व व्यक्त्तिव से मै आपको कैसा लगता हू असभ्य या फिर सभ्य ....?
सभास्थल से आवाजे गूंज उठी... पहनावे और बातचीत से तो आप सभ्य लग रहे हो... सभ्य लग रहे हो... सभ्य लग रहे हो....
ये सुनकर... अचानक ही उसने अचंभित करने वाला कार्य कर डाला ... सारे कपड़े सिर्फ हाफ पैंट टाइप की अंडरवियर छोड़ मंच पर ही उतार दिये....
देख कर ये कर्म उसका.... पूरा सभा स्थल गूंज उठा आक्रोश के शोर से.... मारो मारो गुंडा है, असभ्य है, अश्लील है, मर्यादा, लाज नाम की चीज नही है इसमे.... मां बहन का सम्मान नही है इसको नीच व्यक्ति है ये छोड़ना मत इसको....
सुनकर ये आक्रोशित शोर.... अचानक वो माइक पर गरज उठा... रुको... पहले मेरी बात सुन लो... फिर मार भी लेना चाहे तो जीवित जला भी देना मुझको...
अभी अभी तो....
ये बहन जी कम कपड़े , तंग और शरीर दिखाऊं छोटे छोटे कपड़ो की पक्ष के साथ साथ स्वतंत्रता की दुहाई देकर गुहार लगाकर .... नियत और सोच मे व्यक्तित्व में दोष बतला रही थी....तब तो आप सभी तालियाँ बजाकर सहमति जतला रहे थे।....
फिर मैने क्या किया है.... सिर्फ कपड़ो की स्वतंत्रता ही तो दिखलायी है।... नियत और सोच में दोष तो नही..... और फिर मैने तो, आप लोगो को,... मां बहन और भाई कहकर ही संबोधित क्या था।...
फिर मेरे अर्द्ध नग्न होते ही.... आप मे से किसी को भी मुझमे भाई और बेटा क्यो नही नजर आया।.... मेरी व्यक्तित्व मे आप लोगो को दोष कैसे दिख गया...... मुझमे केवल अश्लील पुरुष ही आपको क्यो नजर आया...भाई, बेटा, दोस्त क्यो नही नजर आया....
आप मे से तो किसी की सोच और व्यक्तित्व में भी दोष नही था फिर ऐसा क्यो.....?
सच तो यहीं है की..... झूठ बोलते है लोग की वेशभूषा और पहनावे से कोई अंतर नही पड़ता।.. वास्तविकता तो यही है मानवीय स्वभाव की.... की किसी को सरेआम बिना आवरण के देखे ले तो घीन सी जागती है मन मे और.... सम्पूर्ण आवरण से उत्सुकता तथा.... अर्द्ध नग्नता से उतेजना......ऐसे ही ये लोग तो निकल जाती है.... अर्द्ध नग्न होकर कामी राक्षस रूपी पुरुषों की वासना को जगाकर.... और शिकार हो जाती है उनके कुकर्मों की... कमजोर औरतें और मासूम बच्चीयां...
(मित्रो नवीनतम कहानियां अपनी ईमेल पर पाने के लिए होम पेज में ऊपर दिए गए सदस्य बने ऑप्शन में आप ईमेल भरकर प्राप्त कर सकते है।)
@#ॐ_नमः_वार्ताः!
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें