🔆💥 जय श्री राम 🔆💥
“लक्ष्मण का मेघनाद से अन्तिम युद्ध ” कथा `नमः वार्ता
सुबह लक्ष्मण का मेघनाद से अन्तिम युद्ध होने वाला था, वह मेघनाद जो अब तक अविजित था। जिसकी भुजाओं के बल पर रावण युद्ध कर रहा था। अप्रितम योद्धा ! जिसके पास सभी दिव्यास्त्र थे।
सुबह लक्ष्मण जी, युद्ध से पूर्व भगवान राम से आशीर्वाद लेने हेतु गये।
उस समय भगवान राम पूजा कर रहे थे।
हनुमानजी ने कहा कि अभी कुछ समय है! यह तो अभी प्रातःकाल ही है।
भगवान राम ने लक्ष्मण जी से कहा, यह पात्र लो और भिक्षा मांगकर लाओ, जो भी पहला व्यक्ति मिले उसी से कुछ अन्न मांग लेना।
सभी बड़े आश्चर्य में पड़ गये। आशीर्वाद की जगह भिक्षा! लेकिन लक्ष्मण को जाना ही था।
लक्ष्मण जी जब भिक्षा मांगने के लिए निकले तो उन्हें सबसे पहले रावण का ही सैनिक मिल गया, आज्ञानुसार मांगना ही था। यदि भगवान की आज्ञा न होती तो उस सैनिक को लक्ष्मण जी वहीं मार देते, परंतु वे उससे भिक्षा मांगते है।
सैनिक ने अपनी रसद से लक्ष्मण जी को कुछ अन्न दे दिए।
लक्ष्मण जी वह अन्न लेकर आये और भगवान राम को अर्पित कर दिए। तत्पश्चात भगवान राम ने उन्हें आशीर्वाद दिया... "विजयी भव"।
भिक्षा का मर्म किसी के समझ मे कुछ भी नहीं आया, कोई पूछ भी नहीं सकता था... पुनः भी यह प्रश्न तो रह ही गया।
भीषण युद्ध प्रारम्भ हुआ....
अंत मे मेघनाद ने त्रिलोक की अंतिम शक्तियों को लक्ष्मण जी पर चलाया... ब्रह्मास्त्र, पशुपास्त्र, और सुदर्शन चक्र भी! इन अस्त्रों कि कोई काट नही थी।
लक्ष्मण जी ने सिर झुकाकर इन अस्त्रों को प्रणाम किया, सभी अस्त्र उनको आशीर्वाद देकर वापस चले गए।
उसके उपरांत राम का ध्यान करके लक्ष्मण जी ने मेघनाद पर बाण चलाया, मेघनाद अट्टहास करने लगा और उसका सिर कटकर भूमि पर गिर गया, और उसकी मृत्यु हो गई।
उसी दिन सन्ध्याकाल में जिस समय भगवान राम शिव की आराधना कर रहे थे कि हनुमानजी ने पूंछ ही लिया! प्रभु वह भिक्षा का मर्म क्या है?
भगवान प्रसन्नता सेने लगे, बोले मैं लक्ष्मण को जानता हूँ.... वह अत्यंत क्रोधी है, लेकिन युद्ध में विन्रमता की भी आवश्यकता पड़ती है, विजयी तो वही होता है जो विन्रम हो। मैं यह भी जानता था कि मेघनाद ब्रह्मांड की भी चिंता नहीं करेगा और युद्ध जीतने के लिये दिव्यास्त्रों तक का प्रयोग करेगा। इन अमोघ शक्तियों के सामने विन्रमता ही काम कर सकती थी। इसलिये मैंने लक्ष्मण को सुबह झुकना सिखाया। एक वीर और शक्तिशाली व्यक्ति जब भिक्षा मांगेगा तो उसमे विन्रमता स्वयं प्रवाहित होने लगेगी। लक्ष्मण ने मेरे नाम से जो बाण छोड़ा था... यदि मेघनाद भी उस बाण के सामने विन्रमता दिखाता तो मैं भी उसे क्षमा कर देता।
भगवान श्रीरामचन्द्र जी एक महान राजा के साथ ही अद्वितीय सेनापति भी थे। युद्धकाल में विन्रमता शक्ति संचय का भी मार्ग है, उन्होंने ही सिखाया। यही वीर पुरुष को शोभा भी देता है। और इसलिए किसी भी बड़े धर्म-युद्ध में विजय प्राप्ति के लिए विनम्रता और धैर्य का होना अत्यंत आवश्यक है।
रामचरित मानस में गोस्वामी तुलसीदास जी ने लिखा भी है.... धीरज धर्म मित्र अरु नारी, आपद काल परिखिअहिं चारी।।
प्रेषक-
दिनेश बरेजा
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