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शनिवार, 31 दिसंबर 2022

“ स्वयं को पहचाने ” कहानी ~ नमः

🔆💥 जय श्री राम 🔆💥
 “ स्वयं को पहचाने ” कहानी ~ नमः वार्ता

 अकबर ने एक ब्राह्मण को दयनीय हालत में जब भिक्षाटन करते देखा तो बीरबल की ओर व्यंग्य कसकर बोले - 'बीरबल ! ये हैं तुम्हारे ब्राह्मण ! जिन्हें ब्रह्म देवता के रुप में जाना जाता है । ये तो भिखारी हैं ।' 

 बीरबल ने उस समय तो कुछ नहीं कहा । लेकिन जब अकबर महल में चला गया तो बीरबल लौटा आया और ब्राह्मण से पूछा कि वह भिक्षाटन क्यों करता है ? 

 ब्राह्मण ने कहा - 'मेरे पास धन, आभूषण, भूमि कुछ नहीं है और मैं अधिक शिक्षित भी नहीं हूँ ।
इसलिए परिवार के पोषण हेतू भिक्षाटन मेरी विवशता है ।' 

 बीरबल ने पूछा - 'भिक्षाटन से दिन में कितना प्राप्त हो जाता है ?' 

 ब्राह्मण ने उत्तर दिया - 'छह से आठ अशर्फियाँ ।' 

 बीरबल ने कहा - 'आपको यदि कुछ काम मिले तो क्या आप भिक्षा मांगना छोड़ देंगे ?' 

 ब्राह्मण ने पूछा - 'मुझे क्या करना होगा ?' 

 बीरबल ने कहा - 'आपको ब्रह्ममुहूर्त में स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करके प्रतिदिन 101 माला गायत्री मन्त्र का जाप करना होगा और इसके लिए आपको प्रतिदिन भेंटस्वरुप 10 अशर्फियाँ प्राप्त होंगी ।' 

  बीरबल का प्रस्ताव ब्राह्मण ने स्वीकार कर लिया । अगले दिन से ब्राह्मण ने भिक्षाटन करना बन्द कर दिया और बड़ी श्रद्धा भाव से गायत्री मन्त्र जाप करना प्रारम्भ कर दिया और शाम को 10 अशर्फियाँ भेंटस्वरुप लेकर अपने घर लौट आता । ब्राह्मण की सच्ची श्रद्धा व लग्न देखकर कुछ दिनों उपरांत बीरबल ने गायत्री मन्त्र जाप की संख्या और अशर्फियों की संख्या दोनों ही बढ़ा दीं । 

 अब तो गायत्री मन्त्र की शक्ति के प्रभाव से ब्राह्मण को भूख, प्यास व शारीरिक व्याधि की तनिक भी चिन्ता नहीं रही । गायत्री मन्त्र जाप के कारण उसके चेहरे पर तेज झलकने लगा । लोगों का ध्यान ब्राह्मण की ओर आकर्षित होने लगा । दर्शनाभिलाषी उनके दर्शन कर मिठाई, फल, पैसे, कपड़े चढाने लगे । अब तो उसे बीरबल से प्राप्त होने वाली अशर्फियों की भी आवश्यकता नहीं रही । यहाँ तक कि अब तो ब्राह्मण को श्रद्धा पूर्वक चढ़ाई गई वस्तुओं का भी कोई आकर्षण नहीं रहा । बस वह सदैव मन से गायत्री जाप में लीन रहने लगा । 

 ब्राह्मण सन्त के नित्य गायत्री जप की समाचार चारों ओर फैलने लगी । दूरदराज से श्रद्धालु दर्शन करने आने लगे । भक्तों ने ब्राह्मण की तपस्थली में मन्दिर व आश्रम का निर्माण करा दिया । ब्राह्मण के तप की प्रसिद्धि की समाचार अकबर को भी मिली । अकबर ने भी दर्शन हेतू जाने का निर्णय लिया और वह राजसी ठाठबाट में बीरबल के साथ सन्त से मिलने चल पड़े । वहाँ पहुँचकर भेंटे अर्पण कर ब्राह्मण को प्रणाम किया । ऐसे तेजोमय सन्त के दर्शनों से हर्षित हृदय सहित अकबर बीरबल के साथ बाहर आ गए । 
   
 तब बीरबल ने पूछा - 'क्या आप इस सन्त को जानतें हैं ?' 

 अकबर ने कहा - 'नहीं, बीरबल मैं तो इससे आज पहली बार मिला हूँ ।' 

 पुनः बीरबल ने कहा - 'महाराज ! आप इसे अच्छी प्रकार से जानते हो । यह वही भिखारी ब्राह्मण है, जिस पर आपने व्यंग्य कसकर कहा था कि 'ये हैं तुम्हारे ब्राह्मण ! जिन्हें ब्रह्म देवता कहा जाता है ?' 

 आज आप स्वयं उसी ब्राह्मण के पैरों में शीश नवा कर आए हैं । अकबर के आश्चर्य की सीमा नहीं रही । बीरबल से पूछा - 'लेकिन यह इतना बड़ा परिवर्तितके कैसे हुआ ?' 

  बीरबल ने कहा - 'महाराज ! वह मूल रुप में ब्राह्मण ही है । परिस्थितिवश वह अपने धर्म की सच्चाई व शक्तियोंं से दूर था । धर्म के एक गायत्री मन्त्र ने ब्राह्मण को साक्षात् 'ब्रह्म' बना दिया और कैसे अकबर को चरणों में गिरने के लिए विवश कर दिया ।' यही ब्राह्मण आधीन मन्त्रों का प्रभाव है । यह नियम सभी ब्राह्मणों पर सामान रुप से लागू होता है । क्योंकि ब्राह्मण आसन और तप से दूर रहकर जी रहे हैं, इसीलिए पीड़ित हैं । वर्तमान में आवश्यकता है कि सभी ब्राह्मण पुनः अपने कर्म से जुड़ें, अपने संस्कारों को जानें और मानें । मूल ब्रह्मरुप में जो विलीन होने की क्षमता रखता है वही ब्राह्मण है । यदि ब्राह्मण अपने कर्मपथ पर दृढ़ता से चले तो देव शक्तियाँ उसके साथ चल पड़ती हैं । 

 आप सभी सामाजिक मर्स्मरणाओं के कारण अंग्रेजी नव वर्ष की बधाई दे रहे थे। मैंने केवल अपना कलेंडर परिवर्तित किया, Happy New Year बोल कर अपनी लाखों वर्ष पुरानी संस्कृति को नहीं परिवर्तित की! यदि हम सभी अपनी संस्कार संस्कृति की डोर को कस के पकड़ ले और सभी को इस गलती पर टोके तो ही बात बनेगी। हिन्दू हूँ, तो हिन्दू नववर्ष मनाऊंगा, जो प्रकृति भी मनाती है। अंग्रेजों की गुलामी करते हुए, अंग्रेजी नववर्ष मनाकर अपने उन पूर्वजों के बलिदान को अपमानित नही करूँगा, जिन्होंने इनके अत्याचार सहकर भी धर्म नहीं परिवर्तित होा🙏🏻 

 🚩मेरा नववर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को होता है,कैलेंडर" परिवर्तित करना है "धर्म" नहीं । 

प्रेषक-
 दिनेश बरेजा 

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