🔆💥 जय श्री राम 🔆💥
संतुष्टि की 2 रोटी की मूल्य
बहस बहुत जोरो की चल रही थी..विषय था "राजनीति"
दोनों भाई स्वयं को सही स्पष्ट करने पर तुले हुए थे..
खोज खोज कर अपनी पसंदीदा पार्टी के सपोर्ट के लिए उदाहरण लाए जाए रहे थे..
धीरे धीरे बहस का मुद्दा राजनीतिक ना रहकर व्यक्तिगत होने लगा, जैसे कि पार्टी बेईमान ना हो सामने वाला भाई बेईमान हो और उसकी पार्टी और वो स्वयं निष्ठावान...
"राजनीति कभी किसी की नहीं हुई, यदि इस मुद्दे पर कोई किसी के साथ स्वस्थ बहस करने की भी प्रयास करे तो उसी के व्यक्तित्व पर कीचड़ उछलने शुरू हो जाते है "यहां भी ऐसा ही होने लगा था...
तब तक बड़े भाई ने अचानक अपने पिता से पूछा, " पिताजी मान लीजिए कि मै एक भ्रष्ट राजनेता हूं और अमीर हूं और ये छोटा निष्ठावान नेता है और गरीब है, यदि कभी चुनाव का अवसर हो तो आप किसे चुनेंगे"
" जो मुझे दो रोटी संतुष्टि से खिला देगा उसी को चुनुंगा "
संकलित
_समाज में व्याप्त अशांति को बहाल करने की अपील व मृतक के परिजनों को सांत्वना देने के बहाने राजनीतिक दल उस पीड़ित परिवार से मिल, सहानुभूति जता अपनी राजनीतिक रोटी सेंकने की पुनःाक में लग जाते हैं। मैं दिनेश बरेजा ये मानता हूं कि उस समय कच्चे लालच में फंसकर हमारे कुछ स्वार्थी हिन्दू बन्धु मात्र आपना लाभ देखते हैं तथा उस कृत्य से होने वाली समाजिक हानि का भी ध्यान नही रखते। उस समय गरीब व्यक्ति को ज्ञान/समाज से अर्थ नहीं होता,उसे अपनी निजी भूख मिटानी होती है , बच्चो का पेट भरने से अर्थ होता है, उसे जहा लाभ दिखेगा वो वहीं जाएगा। आप उसे लालच दो वो मुस्लिम हो जाएगा और यदि उसे कही और अधिक लाभ होगा वो ईसाई भी हो जाएगा।
प्रेषक -दिनेश बरेजा_
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