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सोमवार, 25 मार्च 2024

मानव को भक्त प्रह्लाद की तरह विघ्न बाधाओं के बीच भी भगवदनिष्ठा टिकाए रखकर संसार सागर से पार होने का संदेश देने वाला पर्व 'होली' की हार्दिक शुभकामनाएं !

 होली भारतीय संस्कृति की पहचान का एक पुनीत पर्व है, भेदभाव मिटाकर पारस्परिक प्रेम व सदभाव प्रकट करने का एक अवसर है |अपने दुर्गुणों तथा कुसंस्कारों की आहुति देने का एक यज्ञ है तथा परस्पर छुपे हुए प्रभुत्व को, आनंद को, सहजता को, निरहंकारिता और सरल सहजता के सुख को उभारने का उत्सव है |

 यह रंगोत्सव हमारे पूर्वजों की दूरदर्शिता है जो अनेक विषमताओं के बीच भी समाज में एकत्व का संचार करता है | होली के रंग-बिरंगे रंगों की बौछार जहाँ मन में एक सुखद अनुभूति प्रकट कराती है वहीं यदि सावधानी, संयम तथा विवेक न रख्खा जाये तो ये ही रंग दुखद भी हो जाते हैं | अतः इस पर्व पर कुछ सावधानियाँ रखना भी अत्यंत आवश्यक है | 


वर्त्तमान समय में होली के दिन शराब अथवा भंग पीने की कुप्रथा है | नशे से चूर व्यक्ति विवेकहीन होकर घटिया से घटिया कुकृत्य कर बैठते हैं  अतः नशीले पदार्थ से तथा नशा करने वाले व्यक्तियों से सावधान रहना चाहिये |आजकल सर्वत्र उन्न्मुक्तता का दौर चल पड़ा है | पाश्चात्य जगत के अंधानुकरण में भारतीय समाज अपने भले बुरे का विवेक भी खोता चला जा रहा है | जो साधक है, संस्कृति का आदर करने वाले हैं, ईश्वर व गुरु में श्रद्धा रखते हैं ऐसे लोगो में शिष्टता व संयम विशेषरूप से होना चाहिये | पुरुष सिर्फ पुरुषों से तथा स्त्रियाँ सिर्फ स्त्रियों के संग ही होली मनायें | स्त्रियाँ यदि अपने घर में ही होली मनायें तो अच्छा है ताकि दुष्ट प्रवृत्ति के लोगों कि कुदृष्टि से बच सकें |

 होली मात्र लकड़ी के ढ़ेर जलाने का त्योहार नहीँ है |यह तो चित्त की दुर्बलताओं को दूर करनेका, मन की मलिन वासनाओं को जलाने का पवित्र दिन है | अपने दुर्गुणों, व्यसनों व बुराईओं को जलाने का पर्व है होली .......अच्छाईयाँ ग्रहण करने का पर्व है होली .........समाज में स्नेह का संदेश फैलाने का पर्व है होली..........

आज के दिन से विलासी वासनाओं का त्याग करके परमात्म प्रेम, सदभावना, सहानुभूति, इष्टनिष्ठा, जपनिष्ठा, स्मरणनिष्ठा, सत्संगनिष्ठा, स्वधर्म पालन , करुणा दया आदि दैवी गुणों का अपने जीवन में विकास करना चाहिये | भक्त प्रह्लाद जैसी दृढ़ ईश्वर निष्ठा, प्रभुप्रेम, सहनशीलता, व समता का आह्वान करना चाहिये | सत्य, शान्ति, प्रेम, दृढ़ता की विजय होती है इसका स्मरण दिलाता है आज का दिन | हिरण्यकश्यपु रूपी आसुरी वृत्ति तथा होलिका रूपी कपट की पराजय का दिन है होली, यह पवित्र पर्व परमात्मा में दृढ़ निष्ठावान के आगे प्रकृति द्वारा अपने नियमों को बदल देने की याद दिलाता है | मानव को भक्त प्रह्लाद  की तरह विघ्न बाधाओं के बीच भी भगवदनिष्ठा टिकाए रखकर संसार सागर से पार होने का संदेश देने वाला पर्व  'होली' की हार्दिक शुभकामनाएं !

शनिवार, 11 फ़रवरी 2023

रुद्राभिषेक में शिव निवास का विचार-महाशिवरात्रि पर विशेष--आचार्य रजनेश त्रिवेदी

महाशिवरात्रि पर विशेष👉 रुद्राभिषेक में शिव निवास का विचार 

 🙏ॐ तस्मै श्री गुरुवे नमः🙏

🙏ॐ नमः पार्वतीपते हर हर महादेव 🙏

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किसी कामना, ग्रहशांति आदि के लिए किए जाने वाले रुद्राभिषेक में शिव निवास का विचार करने पर ही अनुष्ठान सफल होता है और   मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।

प्रत्येक मास की तिथियों के अनुसार जब शिव निवास गौरी पार्श्व में, कैलाश पर्वत पर,नंदी की सवारी एवं ज्ञान वेला में होता है तो रुद्राभिषेक करने से सुख-समृद्धि, परिवार में आनंद मंगल और अभीष्ट सिद्धि की प्राप्ति होती है।


"परन्तु शिव वास श्मशान, सभा अथवा क्रीड़ा में हो तो उन तिथियों में शिवार्चन करने से महाविपत्ति, संतान कष्ट व पीड़ादायक होता है।"


रुद्राभिषेक करने की तिथियां-

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कृष्णपक्ष की प्रतिपदा, पंचमी, अष्टमी, एकादशी, द्वादशी, अमावस्या, शुक्लपक्ष की द्वितीया, पंचमी, षष्ठी, नवमी, द्वादशी, त्रयोदशी तिथियों में अभिषेक करने से सुख-समृद्धि संतान प्राप्ति एवं ऐश्वर्य प्राप्त होता है।

कालसर्प योग, गृहकलेश, व्यापार में नुकसान, शिक्षा में रुकावट सभी कार्यो की बाधाओं को दूर करने के लिए रुद्राभिषेक आपके अभीष्ट सिद्धि के लिए फलदायक है।


 किसी कामना से किए जाने वाले रुद्राभिषेक में शिव-वास का विचार करने पर अनुष्ठान अवश्य सफल होता है और मनोवांछित फल प्राप्त होता है।

शिव वास कब कहा

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1. प्रत्येक मास के कृष्णपक्ष की प्रतिपदा, अष्टमी, अमावस्या तथा शुक्लपक्ष की द्वितीया व नवमी के दिन भगवान शिव माता गौरी के साथ होते हैं, इस तिथि में रुद्राभिषेक करने से सुख-समृद्धि उपलब्ध होती है।


2. कृष्णपक्ष की चतुर्थी, एकादशी तथा शुक्लपक्ष की पंचमी व द्वादशी तिथियों में भगवान शंकर कैलाश पर्वत पर होते हैं और उनकी अनुकंपा से परिवार में आनंद-मंगल होता है।


3. कृष्णपक्ष की पंचमी, द्वादशी तथा शुक्लपक्ष की षष्ठी व त्रयोदशी तिथियों में महादेव नंदी पर सवार होकर संपूर्ण विश्व में भ्रमण करते है।अत: इन तिथियों में रुद्राभिषेक करने पर अभीष्ट सिद्ध होता है।

शनिवार, 10 सितंबर 2022

“ पितृपक्ष महत्व व विधि” ~ नमः वार्ता (आचार्य रजनेश त्रिवेदी)

🔆💥 जय श्री राम 🔆💥

“ पितृपक्ष महत्व व विधि” ~ नमः वार्ता

 सनातन धर्म में पितरों के लिए पितृपक्ष भाद्र शुक्ल पूर्णिमा से आश्विन कृष्ण अमावस्या तक चलता है।जो इस वर्ष 10 सितम्बर से 25 सितम्बर तक रहेगा।हव्य दान देवताओं के लिए एवं कव्य दान पितरों को प्रसन्न करने के लिए किया जाता है। पितृपक्ष में पितरों के निमित्त पितृ तर्पण बहुत महत्वपूर्ण कर्म माना जाता र्है।पितृ तर्पण समस्त पितरों को तृप्त करने वाला है।

पितृ तर्पण विधि:-

दक्षिण दिशा की ओर मुंह करें जनेऊ को दाहिने कंधे पर रखकर बाएं हाथ के नीचे ले जाएं गमछे को भी दाहिने कंधे पर रखें बाया घुटना जमीन पर लगा कर बैठे अर्घ्य पात्र में काले तिल छोड़ें कुशों को बीच से मोड़कर उनकी जड़ और अग्रभाग को दाहिने हाथ में तर्जनी और अंगूठे के बीच में रखें अंगूठे और तर्जनी के मध्य भाग से तीन तीन अंजलि दें,अंजलि जल देते समय अपने पितरों का नाम स्मरण करते रहें,अंत में ज्ञात अज्ञात पितरों के निमित्त भी जल प्रदान करें।पितृ को तर्पण करते समय पुरुषवर्ग के लिए-तस्मैं स्वधा नमः।स्त्री वर्ग को जल देते समय तस्यै स्वधा नमः।बोले ऐसा करने से निश्चित ही पितृ प्रसन्न होंगे और घर में परिवार में सुख शांति समृद्धि प्राप्त होगी एवं पितृदोष दूर होंगे।

शनिवार, 11 जून 2022

“प्रदोष का महत्व व समय” - नमः वार्ता

 🙏प्रदोष का महत्व व समय🙏

कल है प्रदोष12/6/2022 

👉प्रदोष काल में रुद्राभिषेक का विशेष महत्व रहता है।

सूर्यास्त के पश्चात रात्रि के आने से पूर्व का समय प्रदोष काल कहलाता है। इस व्रत में महादेव भोले शंकर की पूजा की जाती है। इस व्रत में व्रती को निर्जल रहकर व्रत रखना होता है। प्रात: काल स्नान करके भगवान शिव की बेल पत्र, गंगाजल अक्षत धूप दीप सहित पूजा करें।

हिन्दू धर्म के अनुसार, प्रदोष व्रत  कलियुग में अति मंगलकारी और शिव कृपा प्रदान करनेवाला होता है। माह की त्रयोदशी तिथि में सायं काल को प्रदोष काल कहा जाता है। मान्यता है कि प्रदोष के समय महादेव कैलाश पर्वत के रजत भवन में इस समय नृत्य करते हैं और देवता उनके गुणों का स्तवन करते हैं। जो भी लोग अपना कल्याण चाहते हों यह व्रत रख सकते हैं। प्रदोष व्रत को करने से हर प्रकार का दोष मिट जाता है। 

प्रदोष व्रत विधि के अनुसार दोनों पक्षों की प्रदोषकालीन त्रयोदशी को मनुष्य निराहार रहे। निर्जल तथा निराहार व्रत सर्वोत्तम है परंतु अगर यह संभव न हो तो नक्तव्रत करे। पूरे दिन सामर्थ्यानुसार या तो कुछ न खाये या फल ले। अन्न पूरे दिन नहीं खाना। सूर्यास्त के कम से कम 108 मिनट रुद्राभिषेक शिवाराधना के बाद हविष्यान्न ग्रहण कर सकते हैं। 

प्रेषक:-

आचार्य रजनेश त्रिवेदी एवं आचार्य संदीप त्रिवेदी

रविवार, 5 जून 2022

भारत का अद्भुत मूर्तिमंदिर ~ नमः वार्ताः

 🔆💥 जय श्री राम 🔆💥


भारत का अद्भुत मूर्तिमंदिर


कुछ वर्ष पहले आर.टी.डी. केरल राज्य के पुलिस महानिदेशक, श्री अलेक्जेंडर जैकब ने पिछले वर्षों में इस मंदिर में हुई चार डकैतियों की कहानियों को सार्वजनिक किया। मंदिर की मूर्ति की अनुमानित कीमत करीब 1.5 करोड़ रुपए है।


मंदिर के आसपास कोई सुरक्षा नहीं होने के कारण, यह चोरों के लिए एक आसान लक्ष्य था।


मंदिर में पहला तोड़-फोड़ 1979 में हुई थी। चोर मंदिर से मूर्ति ले गए, लेकिन अगले दिन सुबह, मूर्ति को मंदिर से कुछ मीटर की दूरी पर छोड़ दिया गया। पुलिस दोषियों का पता नहीं लगा पाई। विधि-विधान से मूर्ति का पुन: अभिषेक किया गया। अनुष्ठान 41 दिनों तक चलता है और कुछ मंत्रों को 41 लाख बार जपने की आवश्यकता होती है।


कुछ वर्ष बाद कहानी दोहराई गई। लेकिन इस बार पुलिस को मूर्ति नहीं मिली और जांच बिना किसी सुराग के अटकी रही।


मंदिर के अधिकारियों ने एक अष्ट मंगल

रविवार, 1 मई 2022

अक्षय तृतीया विशेष~ आचार्य रजनेश त्रिवेदी


🌹🙏ॐ तस्मै श्रीगुरुवे नमः🙏🌹
🌹🙏ॐ जयतु परशुराम:🙏🌹
🌹🙏अक्षय तृतीया की हार्दिक शुभकामनाएं🙏🌹


अक्षय तृतीया 2022 का यह बहुत ही शुभ,स्वयं सिद्ध और पावन पर्व वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है। अक्षय तृतीया या जिसे बहुत सी जगहों पर अखा तीज भी कहते हैं का यह पर्व हिन्दू धर्म में विश्वास रखने वालों के लिए बेहद ही शुभ और महत्वपूर्ण दिन होता है। अक्षय शब्द का अर्थ होता है ‘जिसका कभी क्षय न हो या जिसका कभी नाश न हो’। ऐसे में मान्यता के अनुसार कहा जाता है कि यदि व्यक्ति दान-पुण्य, स्नान, यज्ञ, जप आदि जैसे शुभ कर्म करे तो इससे मिलने वाले शुभ फलों की कभी भी क्षय नहीं होती है। इसके अलावा अक्षय तृतीया के दिन विशेषतौर पर सोने के गहने खरीदने की भी मान्यता है। कहा जाता है अक्षय तृतीया  के दिन यदि सोना खरीदा जाये तो इससे व्यक्ति के जीवन पर माँ लक्ष्मी का आशीर्वाद, सुख-समृद्धि और वैभव आजीवन बना रहता है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है।
अक्षय तृतीया का मुहूर्त
वैशाख शुक्ल तृतीया(अक्षय तृतीया)03:05:2022 दिन मंगलवार को मनायी जायेगी।

1.  वैशाख मास में शुक्लपक्ष की तृतीया अगर दिन के पूर्वाह्न (प्रथमार्ध) में हो तो उस दिन यह त्यौहार मनाया जाता है।
2.  यदि तृतीया तिथि लगातार दो दिन पूर्वाह्न में रहे तो अगले दिन यह पर्व मनाया जाता है, हालाँकि कुछ ज्योतिषाचार्यो का ऐसा भी मानना है कि यह पर्व अगले दिन तभी मनाया जायेगा जब यह तिथि सूर्योदय से तीन मुहूर्त तक या इससे अधिक समय तक रहे।
3.  तृतीया तिथि में यदि सोमवार या बुधवार के साथ रोहिणी नक्षत्र भी पड़ जाए तो बहुत श्रेष्ठ माना जाता है।
अक्षय तृतीया व्रत व पूजन विधि
1.  इस दिन व्रत करने वाले को चाहिए की वह सुबह स्नानादि से शुद्ध होकर पीले वस्त्र धारण करें।
2.  अपने घर के मंदिर में विष्णु जी को गंगाजल से शुद्ध करके तुलसी, पीले फूलों की माला या पीले पुष्प अर्पित करें।
3.  फिर धूप-अगरबत्ती, ज्योत जलाकर पीले आसन पर बैठकर विष्णु जी से सम्बंधित पाठ (विष्णु सहस्त्रनाम, विष्णु चालीसा) पढ़ने के बाद अंत में विष्णु जी की आरती पढ़ें।
4.  साथ ही इस दिन विष्णु जी के नाम से गरीबों को खिलाना या दान देना अत्यंत पुण्य-फलदायी होता है।

नोट: अगर पूर्ण व्रत रखना संभव न हो तो पीला मीठा हलवा, केला, पीले मीठे चावल बनाकर खा सकते हैं।

पौराणिक कथाओं के अनुसार इस दिन नर-नारायण, परशुराम व हयग्रीव अवतार हुए थे। इसलिए मान्यतानुसार कुछ लोग नर-नारायण, परशुराम व हयग्रीव जी के लिए जौ या गेहूँ का सत्तू, कोमल ककड़ी व भीगी चने की दाल भोग के रूप में अर्पित करते हैं।

अक्षय तृतीया कथा
हिन्दू पुराणों के अनुसार युधिष्ठिर ने भगवान श्री कृष्ण से अक्षय तृतीया का महत्व जानने के लिए अपनी इच्छा व्यक्त की थी। तब भगवान श्री कृष्ण ने उनको बताया कि यह परम पुण्यमयी तिथि है। इस दिन दोपहर से पूर्व स्नान, जप, तप, होम (यज्ञ), स्वाध्याय, पितृ-तर्पण, और दानादि करने वाला व्यक्ति अक्षय पुण्यफल का भागी होता है।

प्राचीन काल में एक गरीब, सदाचारी तथा देवताओं में श्रद्धा रखने वाला वैश्य रहता था। वह गरीब होने के कारण बड़ा व्याकुल रहता था। उसे किसी ने इस व्रत को करने की सलाहo दी। उसने इस पर्व के आने पर गंगा में स्नान कर विधिपूर्वक देवी-देवताओं की पूजा की व दान दिया। यही वैश्य अगले जन्म में कुशावती का राजा बना। अक्षय तृतीया को पूजा व दान के प्रभाव से वह बहुत धनी तथा प्रतापी बना। यह सब अक्षय तृतीया का ही पुण्य प्रभाव था।

अक्षय तृतीया महत्व
1.  अक्षय तृतीया का दिन साल के उन साढ़े तीन मुहूर्त में से एक है जो सबसे शुभ माने जाते हैं। इस दिन अधिकांश शुभ कार्य किए जा सकते हैं।
2.  इस दिन गंगा स्नान करने का भी बड़ा भारी माहात्म्य बताया गया है। जो मनुष्य इस दिन गंगा स्नान करता है, वह निश्चय ही सारे पापों से मुक्त हो जाता है।
3.  इस दिन पितृ श्राद्ध करने का भी विधान है। जौ, गेहूँ, चने, सत्तू, दही-चावल, दूध से बने पदार्थ आदि सामग्री का दान अपने पितरों (पूर्वजों) के नाम से करके किसी ब्राह्मण को भोजन कराना चाहिए।
4.  इस दिन किसी तीर्थ स्थान पर अपने पितरों के नाम से श्राद्ध व तर्पण करना बहुत शुभ होता है।
5.  कुछ लोग यह भी मानते हैं कि सोना ख़रीदना इस दिन शुभ होता है।
6.  इसी तिथि को परशुराम व हयग्रीव अवतार हुए थे।
7.  त्रेतायुग का प्रांरभ भी इसी तिथि को हुआ था।
8.  इस दिन श्री बद्रीनाथ जी के पट खुलते हैं।

इन्हीं सब कारणों से इस त्यौहार को बड़ा पवित्र और महान फल देने वाला बताया गया है। आशा करते हैं कि आप इस लेख के माध्यम से अक्षय तृतीया के त्यौहार का भरपूर आनंद ले पाएँगे।पुनश्चःआप एवं आपके परिवार को अक्षय तृतीया की बहुत-बहुत बधाई एवं हार्दिक शुभकामनाएँ।
प्रेषक:-
आचार्य रजनेश त्रिवेदी
आचार्य संदीप  त्रिवेदी
             श्री अनामिज्योति आश्रम वाटिका उत्तर प्रदेश।

🌱🌱🌾🌾🌾🌿🙏🙏🙏


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सोमवार, 4 अप्रैल 2022

मृत्यु औऱ आत्मा से जुड़े गहरे ओर गुप्त रहस्य जो स्वयं यमराज ने बताये थे नचिकेता को? ~ नमः वार्ता


🔱जय जय शिव शक्ति महादेव🔱
 

मृत्यु औऱ आत्मा से जुड़े गहरे ओर गुप्त रहस्य जो स्वयं यमराज ने बताये थे नचिकेता को?  


किसी भी मनुष्य की मृत्यु के पश्चात उस मनुष्य की आत्मा को यमदूतों दवारा यामलोग ले जाया जाता है जहाँ उस आत्मा को मृत्यु के देव व सूर्य पुत्र यमराज का सामना करना पड़ता है, तथा उसके अच्छे या बुरे कर्मो के अनुसार से वह स्वर्ग अथवा नरक पाता है।
पुराणिक कथाओ में दो ऐसी कथाएँ मिलती है जिसमे बताया गया है की स्वयं मृत्युदेव यमराज को भी साधारण मनुष्य के आगे मजबूर होना पड़ा था।पहली कथा के अनुसार यमराज को पतिव्रता सवित्री के जिद के आगे उसके मृत पति सत्यवान को जीवित करना पड़ा था।तथा दूसरी कथा एक बालक से संबंधित है, जिसमे बालक नचिकेता के हठ के आगे यमराज ने

शनिवार, 2 अप्रैल 2022

“ माता पार्वती का महल ” कथा ~ नमः वार्ता


🔱जय जय शिव शक्ति महादेव🔱
माता पार्वती का महल 

एक बार की बात है, देवी पार्वती का मन खोह और कंदराओं में रहते हुए ऊब गया। दो नन्हें बच्चे और प्रकार प्रकार की असुविधाएँ। उन्होंने भगवान शंकर से अपना कष्ट बताया और अनुरोध किया कि अन्य देवताओं की प्रकार अपने लिये भी एक छोटा सा महल बनवा लेना चाहिये।
शंकर जी को उनकी बात जम गई। ब्रह्मांड के सबसे योग्य वास्तुकार विश्वकर्मा महाराज को बुलाया गया। पहले मानचित्र तैयार हुआ पुनः शुभ मुहूर्त में भूमि पूजन के उपरांत तेज गति से काम शुरू हो गया। महल आखिर शंकर पार्वती का था कोई मामूली तो होना नहीं था। विशालकाय महल जैसे एक पूरी नगरी, जैसे कला की अनुपम कृति, जैसे पृथ्वी पर

शुक्रवार, 1 अप्रैल 2022

अर्धनारीश्वर अवतार की कथा ~ नमः वार्ता

🔱जय जय शिव शक्ति महादेव🔱

 अर्धनारीश्वर अवतार की कथा 

 “शीश गंग अर्धंग पार्वती नंदी भृंगी नृत्य करत है।।” 

शिव स्तुति में आये इस भृंगी नाम को आप सब ने जरुर ही सुना होगा। पौराणिक कथाओं के अनुसार ये एक ऋषि थे जो महादेव के परम भक्त थे किन्तु इनकी भक्ति कुछ ज्स्मरणा ही वज्र प्रकार की थी। वज्र से तात्पर्य है कि ये भगवान शिव की तो आराधना करते थे किन्तु बाकि भक्तो की भांति माता पार्वती को नहीं पूजते थे।
उनकी भक्ति पवित्र और अदम्य थी लेकिन वो माता पार्वती जी को हमेशा ही शिव से अलग समझते थे

बुधवार, 30 मार्च 2022

मंत्र संग्रह ~ नमः वार्ता


🔆💥 जय श्री राम 🔆💥
मंत्र संग्रह

जपाकुसुमसंकासं काश्यपेयं महाद्युतिम्। 
तमोऽरिं सर्व पापघ्नं प्रणतोऽस्मि दिवाकरम्।। 
  ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं स:सूर्याय नम: । 
नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे। 
त्वया हिन्दुभूमे सुखं वर्धितोऽहम्। 
महामङ्गले पुण्यभूमे त्वदर्थे 
पतत्वेष कायो नमस्ते नमस्ते।। 
जयत्वस्वस्माकं महद्राष्ट्रं , जयतु च सनातनवैदिकधर्म:संस्कृतिश्च, जयन्तु हिन्दवः। 
  भगवान् सविता मङ्गलं करोतु, शुभस्स्यात् रविवासरः।


॥ गायत्रीमन्त्राः ॥ 
         सर्व गायत्री
1 सूर्य ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ॥

 2 ॐ आदित्याय विद्महे सहस्रकिरणाय धीमहि तन्नो भानुः प्रचोदयात् ॥

 3 ॐ प्रभाकराय विद्महे दिवाकराय धीमहि तन्नः सूर्यः प्रचोदयात् ॥ 

4 ॐ अश्वध्वजाय विद्महे पाशहस्ताय धीमहि तन्नः सूर्यः प्रचोदयात् ॥ 

सोमवार, 28 मार्च 2022

समाज ने क्या भूला, क्या स्मरण रखा ~ नमः वार्ता

💐💐जय श्री राम💐💐
समाज ने क्या भूला, क्या स्मरण रखा

 हमारे पास तो  पहले से ही अमृत से भरे कलश थे...! 
 पुनः हम वह अमृत फेंक कर उनमें कीचड़ भरने का काम क्यों कर रहे हैं...?
 थोड़ा इन पर विचार करें..

० यदि  मातृनवमी  थी,
तो Mother’s day क्यों लाया गया?
० यदि  कौमुदी महोत्सव  था,
तो Valentine day क्यों लाया गया?
० यदि  गुरुपूर्णिमा  थी,
तो Teacher’s day क्यों लाया गया?
० यदि  धन्वन्तरि जयन्ती  थी,
तो Doctor’s day क्यों लाया गया?
० यदि  विश्वकर्मा जयंती  थी,
तो Technology day क्यों लाया गया?
० यदि  सन्तान सप्तमी  थी,
तो Children’s day क्यों लाया गया?
० यदि  नवरात्रि  और  कन्या भोज  था,
तो Daughter’s day क्यों लाया गया?
०  रक्षाबंधन  है तो Sister’s day क्यों ?
०  भाईदूज  है तो Brother’s day क्यों ?
०  आंवला नवमी, तुलसी विवाह  मनाने वाले हिंदुओं को Environment day की क्या आवश्यकता ?
० केवल इतना ही नहीं,  नारद जयन्ती  ब्रह्माण्डीय पत्रकारिता दिवस है...
०  पितृपक्ष  ७ पीढ़ियों तक के पूर्वजों का पितृपर्व है...
०  नवरात्रि  को स्त्री के नवरूपों के दिवस के रूप में स्मरण कीजिये...
 सनातन पर्वों को गर्व से मनाईये... 
 पश्चिमी अंधानुकरण मत अपनाइये 
ध्यान रखे... 
" सूर्य जब भी पश्चिम में गया है तब अस्त ही हुआ है "

अपनी  संस्कारी जड़ों की ओर लौटिए। अपने सनातन मूल की ओर लौटिए। व्रत, पर्व, त्यौहारों को मनाइए।  अपनी संस्कृति और सभ्यता को जीवंत कीजिये...  
           



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सोमवार, 21 मार्च 2022

“ पंचमुखी हनुमान कथा ” कथा ~ नमः वार्ता

🔆💥 जय श्री राम 🔆💥

 पंचमुखी हनुमान कथा 

लंका में महा बलशाली मेघनाद के साथ बड़ा ही भीषण युद्ध चला अंतत: मेघनाद मारा गया। रावण जो अब तक मद में चूर था राम सेना, मुख्यता लक्ष्मण का पराक्रम सुनकर थोड़ा तनाव में आया।

रावण को कुछ दुःखी देखकर रावण की मां कैकसी ने उसके पाताल में बसे दो भाइयों अहिरावण और महिरावण की स्मरण दिलाई। रावण को स्मरण आया कि यह दोनों तो उसके बचपन के मित्र रहे हैं।

लंका का राजा बनने के उपरांत उनकी सुध ही नहीं रही थी। रावण यह भली प्रकार जानता था कि अहिरावण व महिरावण तंत्र-मंत्र के महा पंडित, जादू टोने के धनी

गुरुवार, 13 जनवरी 2022

मकर संक्रांति विशेष

 🌹🙏मकर संक्रान्ति की हार्दिक शुभकामनाएं 🙏🌹

   मकर संक्रांति को लेकर तैयारियां प्रारम्भ हो गई है।15 जनवरी को मकर संक्रान्ति है,जो हिन्दुओं की आस्था का पर्व है, एवं 13 जनवरी को लोहड़ी है,जो सिक्खों की आस्था का पर्व है।14 जनवरी शुक्रवार को रात 8 बजकर 43 मिनट पर भगवान भास्कर मकर राशि में प्रवेश कर जाएंगे और इसी के साथ सूर्य उत्तरायण भी हो जाएंगे।खरमास समाप्त हो जाएगा।चूंकि रात में संक्रांति लग रही है इसलिए इसका पुण्यकाल अगले दिन 15 जनवरी शनिवार को माना जाएगा और खिचड़ी का प्रसिद्ध पर्व एवं मकर संक्रांति का पवित्र स्नान मध्यान्ह काल तक किया जाएगा।सर्वत्र गंगा

गुरुवार, 30 दिसंबर 2021

हमारे विचार राष्ट्र, धर्म व जाति.....

“किसी दोस्त ने कहा कि "राजपूतों" में गर्व बहुत है... मैंने कहा कि गर्व क्यों ना, परिवार के परिवार, पीढ़ियों दर पीढ़ियों खप गई, देश और हिंदुत्व के रक्षा के लिए !! 1000 सालों से ज्यादा की संघर्ष गाथा है, गर्व होना लाजमी है।।” ~गौरव गोयल


गौरव गोयल जी ने राजपूतों के संदर्भ में अपने मित्र को ट्वीटर के माध्यम से उक्त शब्दो में राजपूतों के लिए अपने विचार प्रस्तुत किए ।किंतु उनके जिस मित्र ने उनसे कहा है कि ‘राजपूतों में गर्व बहुत है’ उनतक यदि हमारी बात पहुंचे तो उनसे पूछना चाहूंगा कि किसी भी व्यक्ति जिसके पूर्वजों ने राष्ट्र के लिए प्राण तक बलिदान किए है उसे अपने जाति धर्म व राष्ट्र पर गर्व क्यों न हो?

यदि वामपंथी राष्ट्रद्रोहियों की विचारधारा से प्रभावित होकर उनका उत्तर है कि जाति कुछ नही होती जाति पर गर्व नही करना चाहिए तो उनके लिए आज लिख रहा हूं कि हमारी सनातन संस्कृति में ब्राम्हण, क्षत्रीय, वैश्य, शुद्र  चार वर्ण में विभाजित समाज जिसमे हमारे विचार अनुसार गर्व सबको होना चाहिए अपनी अपनी जाति धर्म व राष्ट्र पर, प्राचीन विश्व गुरु भारत बनाने में भी सभी का सहयोग से था। 

जहां ब्राम्हण वर्ग ने धर्म, ज्ञानविज्ञान व राष्ट्रनिर्माण प्रगति के लिए धन संपदा,सुविधाएं तक त्याग दी, वही क्षत्रियों ने अद्भुत नेतृत्व क्षमता, वीरता के साथ राष्ट्र व स्वाभिमान की सेवा व रक्षार्थ हेतु अपने व परिवार के प्राणों तक का त्याग करना पड़ा,जिसमे उनके कई वंश तक मिट गए। साथ ही उत्पादक (शुद्र) वर्ग ने अपनी श्रम क्षमता से विभिन्न क्षेत्रों में विभिन्न उपयोगी वस्तुओ का निर्माण किया, जिसे विश्व....स्तर तक पहुंचाकर वैश्य वर्ग अपनी व्यापारिक बुद्धि से विश्व की सर्वोच्च अर्थव्यवस्था अपने भारत की बनाई थी। 


किंतु दुखद है कि आज लोकतांत्रिक नेतृत्व ही एक दूसरे वर्गो को कही पार्टी, जाति, कही आरक्षण विशेषाधिकार, कहीं कुंठा व घृणा भरकर, कही कही आधारहीन तथ्यों का सहारा लेकर एक दूसरे से लड़ा रहा है और लोग भी अपने उत्तरदायित्व कर्तव्यों से विमुख होकर स्वार्थवश लड़ने में व्यस्त है। ~ विनीत प्रताप सिंह सीतूभदौरिया ( @VPSINGHSITU )

शनिवार, 13 नवंबर 2021

ढाई अक्षर प्रेम से पढ़े, सो पंडित होय ~ नमः वार्ता


पोथी पढ़ पढ़ जग मुआ पंडित भया न कोय।

ढाई अक्षर प्रेम से पढ़े, सो पंडित होय॥


अब पता लगा है कि ढाई अक्षर है क्या!

तब से सिर तो चक्कर खा रहा है... पर मन शांत हो गया।


ढाई अक्षर के ब्रह्मा और ढाई अक्षर की सृष्टि

ढाई अक्षर के विष्णु और ढाई अक्षर की लक्ष्मी

ढाई अक्षर के कृष्ण और ढाई अक्षर की कान्ता (राधा रानी का दूसरा नाम)।


ढाई अक्षर की दुर्गा और ढाई अक्षर की शक्ति

ढाई अक्षर की श्रद्धा और ढाई अक्षर की भक्ति

ढाई अक्षर का त्याग और ढाई अक्षर का ध्यान।


ढाई अक्षर की इच्छा और

ढाई अक्षर की तुष्टि 

ढाई अक्षर का धर्म और 

गाय से जुड़ी कुछ रोचक जानकारी ~ नमः वार्ता

 गाय से जुड़ी कुछ रोचक जानकारी 


1. गौ माता जिस जगह खड़ी रहकर आनंदपूर्वक चैन की सांस लेती है । वहां वास्तु दोष समाप्त हो जाते हैं । 

      

2. जिस जगह गौ माता खुशी से रभांने लगे उस जगह देवी देवता पुष्प वर्षा करते हैं । 


3. गौ माता के गले में घंटी जरूर बांधे ; गाय के गले में बंधी घंटी बजने से गौ आरती होती है । 


4. जो व्यक्ति गौ माता की सेवा पूजा करता है उस पर आने वाली सभी प्रकार की विपदाओं को गौ माता हर लेती है । 


5. गौ माता के खुर्र में नागदेवता का वास होता है । जहां गौ माता विचरण करती है उस जगह सांप बिच्छू नहीं आते । 

मंगलवार, 2 नवंबर 2021

दीपावली 2021: शुभ मुहूर्त तथा गणेश लक्ष्मी जी की मूर्ति खरीदते समय इन महत्वपूर्ण बातों का रखें ध्यान, गणेश जी की ऐसी मूर्ति न खरीदें

दीपावली 2021:  शुभ मुहूर्त







गणेश लक्ष्मी जी की मूर्ति खरीदते समय इन महत्वपूर्ण बातों का रखें ध्यान, गणेश जी की ऐसी मूर्ति न खरीदें

 दिवाली का पर्व हिंदू धर्म में विशेष माना गया है. दिवाली पर लक्ष्मी पूजन का विशेष महत्व है. मान्यता है कि दिवाली की रात शुभ मुहूर्त में विधि पूर्वक पूजा करने से लक्ष्मी जी की कृपा प्राप्त होती है. शास्त्रों में लक्ष्मी जी को धन की देवी बताया गया है. कलियुग में लक्ष्मी जी की पूजा वैभव प्रदान करने वाली मानी गई है. दिवाली यानि दिपावली पर लक्ष्मी जी के साथ गणेश जी की भी पूजा की जाती है.


धनतेरस पर यदि गणेश-लक्ष्मी जी की मूर्ति खरीदने जा रहे हैं तो कुछ बातों पर विशेष ध्यान दें. कई बार सही जानकारी न होने के कारण व्यक्ति ऐसी मूर्ति खरीदकर घर ले आते हैं, जिससे वास्तु दोष या अन्य प्रकार की परेशानियां खडी हो जाती हैं. इसलिए दिवाली पूजन पर गणेश लक्ष्मी जी की मूर्ति खरीदते समय इन बातों पर अवश्य ध्यान दें- मूर्ति खरीदते समय हमेशा गणेश जी के हाथ में मोदक होना जरूरी है. ऐसी मूर्ति सुख-समृद्धि का प्रतीक मानी जाती है. यह मोदक बाएं हाथ में होना अति शुभ होता है. यानी गणेश जी की सूंड मोदक या लड्डू की ओर मुड़ी हुई होना बहुत शुभ होता है...l

आचार्य रजनेश त्रिवेदी
आचार्य संदीप  त्रिवेदी
श्री अनामिज्योति आश्रम वाटिका।

बुधवार, 27 अक्टूबर 2021

कार्तिक मास में तुलसी महारानी की महिमा ~ आचार्य रजनेश त्रिवेदी, श्री अनामिज्योति आश्रम द्वारा

🙏कार्तिक मास में तुलसी महारानी की महिमां🙏 
            ब्रह्मा जी कहे हैं कि कार्तिक मास में जो भक्त प्रातः काल स्नान करके पवित्र हो कोमल तुलसी दल से भगवान् दामोदर की पूजा करते हैं, वह निश्चय ही मोक्ष पाते हैं। पूर्वकाल में भक्त विष्णुदास भक्तिपूर्वक तुलसी पूजन से शीघ्र ही भगवान् के धाम को चला गया और राजा चोल उसकी तुलना में गौण हो गए। तुलसी से भगवान् की पूजा, पाप का नाश और पुण्य की वृद्धि करने वाली है। अपनी लगाई हुई तुलसी जितना ही अपने मूल का विस्तार करती है, उतने ही सहस्रयुगों तक मनुष्य ब्रह्मलोक में प्रतिष्ठित रहता है। यदि कोई तुलसी संयुत जल में स्नान करता है तो वह पापमुक्त हो आनन्द का अनुभव करता है। जिसके घर में तुलसी का पौधा विद्यमान है, उसका घर तीर्थ के समान है, वहाँ यमराज के दूत नहीं जाते। जो मनुष्य तुलसी काष्ठ संयुक्त गंध धारण करता है, क्रियामाण पाप उसके शरीर का स्पर्श नहीं करते। जहाँ तुलसी वन की छाया हो वहीं पर पितरों की तृप्ति के लिए श्राद्ध करना चाहिए। जिसके कान में, मुख में और मस्तक पर तुलसी का पत्ता दिखाई देता है, उसके ऊपर यमराज दृष्टि नहीं डाल सकते। प्राचीन काल में हरिमेधा और सुमेधा नामक दो ब्राह्मण थे। वह जाते-जाते किसी दुर्गम वन में परिश्रम से व्याकुल हो गए, वहाँ उन्होंने एक स्थान पर तुलसी दल देखा। सुमेधा ने तुलसी का महान् वन देखकर उसकी परिक्रमा की और भक्ति पूर्वक प्रणाम किया। यह देख हरिमेधा ने पूछा कि 'तुमने अन्य सभी देवताओं व तीर्थ-व्रतों के रहते तुलसी वन को प्रणाम क्यों किया ?' तो सुमेधा ने बताया कि 'प्राचीन काल में जब दुर्वासा के शाप से इन्द्र का ऐश्वर्य छिन गया तब देवताओं और असुरों ने मिलकर समुद्र मन्थन किया तो धनवंतरि रूप भगवान् श्री हरि और दिव्य औषधियाँ प्रकट हुईं। उन दिव्य औषधियों में मण्डलाकार तुलसी उत्पन्न हुई, जिसे