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शनिवार, 11 जून 2022

“प्रदोष का महत्व व समय” - नमः वार्ता

 🙏प्रदोष का महत्व व समय🙏

कल है प्रदोष12/6/2022 

👉प्रदोष काल में रुद्राभिषेक का विशेष महत्व रहता है।

सूर्यास्त के पश्चात रात्रि के आने से पूर्व का समय प्रदोष काल कहलाता है। इस व्रत में महादेव भोले शंकर की पूजा की जाती है। इस व्रत में व्रती को निर्जल रहकर व्रत रखना होता है। प्रात: काल स्नान करके भगवान शिव की बेल पत्र, गंगाजल अक्षत धूप दीप सहित पूजा करें।

हिन्दू धर्म के अनुसार, प्रदोष व्रत  कलियुग में अति मंगलकारी और शिव कृपा प्रदान करनेवाला होता है। माह की त्रयोदशी तिथि में सायं काल को प्रदोष काल कहा जाता है। मान्यता है कि प्रदोष के समय महादेव कैलाश पर्वत के रजत भवन में इस समय नृत्य करते हैं और देवता उनके गुणों का स्तवन करते हैं। जो भी लोग अपना कल्याण चाहते हों यह व्रत रख सकते हैं। प्रदोष व्रत को करने से हर प्रकार का दोष मिट जाता है। 

प्रदोष व्रत विधि के अनुसार दोनों पक्षों की प्रदोषकालीन त्रयोदशी को मनुष्य निराहार रहे। निर्जल तथा निराहार व्रत सर्वोत्तम है परंतु अगर यह संभव न हो तो नक्तव्रत करे। पूरे दिन सामर्थ्यानुसार या तो कुछ न खाये या फल ले। अन्न पूरे दिन नहीं खाना। सूर्यास्त के कम से कम 108 मिनट रुद्राभिषेक शिवाराधना के बाद हविष्यान्न ग्रहण कर सकते हैं। 

प्रेषक:-

आचार्य रजनेश त्रिवेदी एवं आचार्य संदीप त्रिवेदी

रविवार, 1 मई 2022

अक्षय तृतीया विशेष~ आचार्य रजनेश त्रिवेदी


🌹🙏ॐ तस्मै श्रीगुरुवे नमः🙏🌹
🌹🙏ॐ जयतु परशुराम:🙏🌹
🌹🙏अक्षय तृतीया की हार्दिक शुभकामनाएं🙏🌹


अक्षय तृतीया 2022 का यह बहुत ही शुभ,स्वयं सिद्ध और पावन पर्व वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है। अक्षय तृतीया या जिसे बहुत सी जगहों पर अखा तीज भी कहते हैं का यह पर्व हिन्दू धर्म में विश्वास रखने वालों के लिए बेहद ही शुभ और महत्वपूर्ण दिन होता है। अक्षय शब्द का अर्थ होता है ‘जिसका कभी क्षय न हो या जिसका कभी नाश न हो’। ऐसे में मान्यता के अनुसार कहा जाता है कि यदि व्यक्ति दान-पुण्य, स्नान, यज्ञ, जप आदि जैसे शुभ कर्म करे तो इससे मिलने वाले शुभ फलों की कभी भी क्षय नहीं होती है। इसके अलावा अक्षय तृतीया के दिन विशेषतौर पर सोने के गहने खरीदने की भी मान्यता है। कहा जाता है अक्षय तृतीया  के दिन यदि सोना खरीदा जाये तो इससे व्यक्ति के जीवन पर माँ लक्ष्मी का आशीर्वाद, सुख-समृद्धि और वैभव आजीवन बना रहता है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है।
अक्षय तृतीया का मुहूर्त
वैशाख शुक्ल तृतीया(अक्षय तृतीया)03:05:2022 दिन मंगलवार को मनायी जायेगी।

1.  वैशाख मास में शुक्लपक्ष की तृतीया अगर दिन के पूर्वाह्न (प्रथमार्ध) में हो तो उस दिन यह त्यौहार मनाया जाता है।
2.  यदि तृतीया तिथि लगातार दो दिन पूर्वाह्न में रहे तो अगले दिन यह पर्व मनाया जाता है, हालाँकि कुछ ज्योतिषाचार्यो का ऐसा भी मानना है कि यह पर्व अगले दिन तभी मनाया जायेगा जब यह तिथि सूर्योदय से तीन मुहूर्त तक या इससे अधिक समय तक रहे।
3.  तृतीया तिथि में यदि सोमवार या बुधवार के साथ रोहिणी नक्षत्र भी पड़ जाए तो बहुत श्रेष्ठ माना जाता है।
अक्षय तृतीया व्रत व पूजन विधि
1.  इस दिन व्रत करने वाले को चाहिए की वह सुबह स्नानादि से शुद्ध होकर पीले वस्त्र धारण करें।
2.  अपने घर के मंदिर में विष्णु जी को गंगाजल से शुद्ध करके तुलसी, पीले फूलों की माला या पीले पुष्प अर्पित करें।
3.  फिर धूप-अगरबत्ती, ज्योत जलाकर पीले आसन पर बैठकर विष्णु जी से सम्बंधित पाठ (विष्णु सहस्त्रनाम, विष्णु चालीसा) पढ़ने के बाद अंत में विष्णु जी की आरती पढ़ें।
4.  साथ ही इस दिन विष्णु जी के नाम से गरीबों को खिलाना या दान देना अत्यंत पुण्य-फलदायी होता है।

नोट: अगर पूर्ण व्रत रखना संभव न हो तो पीला मीठा हलवा, केला, पीले मीठे चावल बनाकर खा सकते हैं।

पौराणिक कथाओं के अनुसार इस दिन नर-नारायण, परशुराम व हयग्रीव अवतार हुए थे। इसलिए मान्यतानुसार कुछ लोग नर-नारायण, परशुराम व हयग्रीव जी के लिए जौ या गेहूँ का सत्तू, कोमल ककड़ी व भीगी चने की दाल भोग के रूप में अर्पित करते हैं।

अक्षय तृतीया कथा
हिन्दू पुराणों के अनुसार युधिष्ठिर ने भगवान श्री कृष्ण से अक्षय तृतीया का महत्व जानने के लिए अपनी इच्छा व्यक्त की थी। तब भगवान श्री कृष्ण ने उनको बताया कि यह परम पुण्यमयी तिथि है। इस दिन दोपहर से पूर्व स्नान, जप, तप, होम (यज्ञ), स्वाध्याय, पितृ-तर्पण, और दानादि करने वाला व्यक्ति अक्षय पुण्यफल का भागी होता है।

प्राचीन काल में एक गरीब, सदाचारी तथा देवताओं में श्रद्धा रखने वाला वैश्य रहता था। वह गरीब होने के कारण बड़ा व्याकुल रहता था। उसे किसी ने इस व्रत को करने की सलाहo दी। उसने इस पर्व के आने पर गंगा में स्नान कर विधिपूर्वक देवी-देवताओं की पूजा की व दान दिया। यही वैश्य अगले जन्म में कुशावती का राजा बना। अक्षय तृतीया को पूजा व दान के प्रभाव से वह बहुत धनी तथा प्रतापी बना। यह सब अक्षय तृतीया का ही पुण्य प्रभाव था।

अक्षय तृतीया महत्व
1.  अक्षय तृतीया का दिन साल के उन साढ़े तीन मुहूर्त में से एक है जो सबसे शुभ माने जाते हैं। इस दिन अधिकांश शुभ कार्य किए जा सकते हैं।
2.  इस दिन गंगा स्नान करने का भी बड़ा भारी माहात्म्य बताया गया है। जो मनुष्य इस दिन गंगा स्नान करता है, वह निश्चय ही सारे पापों से मुक्त हो जाता है।
3.  इस दिन पितृ श्राद्ध करने का भी विधान है। जौ, गेहूँ, चने, सत्तू, दही-चावल, दूध से बने पदार्थ आदि सामग्री का दान अपने पितरों (पूर्वजों) के नाम से करके किसी ब्राह्मण को भोजन कराना चाहिए।
4.  इस दिन किसी तीर्थ स्थान पर अपने पितरों के नाम से श्राद्ध व तर्पण करना बहुत शुभ होता है।
5.  कुछ लोग यह भी मानते हैं कि सोना ख़रीदना इस दिन शुभ होता है।
6.  इसी तिथि को परशुराम व हयग्रीव अवतार हुए थे।
7.  त्रेतायुग का प्रांरभ भी इसी तिथि को हुआ था।
8.  इस दिन श्री बद्रीनाथ जी के पट खुलते हैं।

इन्हीं सब कारणों से इस त्यौहार को बड़ा पवित्र और महान फल देने वाला बताया गया है। आशा करते हैं कि आप इस लेख के माध्यम से अक्षय तृतीया के त्यौहार का भरपूर आनंद ले पाएँगे।पुनश्चःआप एवं आपके परिवार को अक्षय तृतीया की बहुत-बहुत बधाई एवं हार्दिक शुभकामनाएँ।
प्रेषक:-
आचार्य रजनेश त्रिवेदी
आचार्य संदीप  त्रिवेदी
             श्री अनामिज्योति आश्रम वाटिका उत्तर प्रदेश।

🌱🌱🌾🌾🌾🌿🙏🙏🙏


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बुधवार, 30 मार्च 2022

मंत्र संग्रह ~ नमः वार्ता


🔆💥 जय श्री राम 🔆💥
मंत्र संग्रह

जपाकुसुमसंकासं काश्यपेयं महाद्युतिम्। 
तमोऽरिं सर्व पापघ्नं प्रणतोऽस्मि दिवाकरम्।। 
  ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं स:सूर्याय नम: । 
नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे। 
त्वया हिन्दुभूमे सुखं वर्धितोऽहम्। 
महामङ्गले पुण्यभूमे त्वदर्थे 
पतत्वेष कायो नमस्ते नमस्ते।। 
जयत्वस्वस्माकं महद्राष्ट्रं , जयतु च सनातनवैदिकधर्म:संस्कृतिश्च, जयन्तु हिन्दवः। 
  भगवान् सविता मङ्गलं करोतु, शुभस्स्यात् रविवासरः।


॥ गायत्रीमन्त्राः ॥ 
         सर्व गायत्री
1 सूर्य ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ॥

 2 ॐ आदित्याय विद्महे सहस्रकिरणाय धीमहि तन्नो भानुः प्रचोदयात् ॥

 3 ॐ प्रभाकराय विद्महे दिवाकराय धीमहि तन्नः सूर्यः प्रचोदयात् ॥ 

4 ॐ अश्वध्वजाय विद्महे पाशहस्ताय धीमहि तन्नः सूर्यः प्रचोदयात् ॥ 

सोमवार, 28 मार्च 2022

समाज ने क्या भूला, क्या स्मरण रखा ~ नमः वार्ता

💐💐जय श्री राम💐💐
समाज ने क्या भूला, क्या स्मरण रखा

 हमारे पास तो  पहले से ही अमृत से भरे कलश थे...! 
 पुनः हम वह अमृत फेंक कर उनमें कीचड़ भरने का काम क्यों कर रहे हैं...?
 थोड़ा इन पर विचार करें..

० यदि  मातृनवमी  थी,
तो Mother’s day क्यों लाया गया?
० यदि  कौमुदी महोत्सव  था,
तो Valentine day क्यों लाया गया?
० यदि  गुरुपूर्णिमा  थी,
तो Teacher’s day क्यों लाया गया?
० यदि  धन्वन्तरि जयन्ती  थी,
तो Doctor’s day क्यों लाया गया?
० यदि  विश्वकर्मा जयंती  थी,
तो Technology day क्यों लाया गया?
० यदि  सन्तान सप्तमी  थी,
तो Children’s day क्यों लाया गया?
० यदि  नवरात्रि  और  कन्या भोज  था,
तो Daughter’s day क्यों लाया गया?
०  रक्षाबंधन  है तो Sister’s day क्यों ?
०  भाईदूज  है तो Brother’s day क्यों ?
०  आंवला नवमी, तुलसी विवाह  मनाने वाले हिंदुओं को Environment day की क्या आवश्यकता ?
० केवल इतना ही नहीं,  नारद जयन्ती  ब्रह्माण्डीय पत्रकारिता दिवस है...
०  पितृपक्ष  ७ पीढ़ियों तक के पूर्वजों का पितृपर्व है...
०  नवरात्रि  को स्त्री के नवरूपों के दिवस के रूप में स्मरण कीजिये...
 सनातन पर्वों को गर्व से मनाईये... 
 पश्चिमी अंधानुकरण मत अपनाइये 
ध्यान रखे... 
" सूर्य जब भी पश्चिम में गया है तब अस्त ही हुआ है "

अपनी  संस्कारी जड़ों की ओर लौटिए। अपने सनातन मूल की ओर लौटिए। व्रत, पर्व, त्यौहारों को मनाइए।  अपनी संस्कृति और सभ्यता को जीवंत कीजिये...  
           



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गुरुवार, 13 जनवरी 2022

मकर संक्रांति विशेष

 🌹🙏मकर संक्रान्ति की हार्दिक शुभकामनाएं 🙏🌹

   मकर संक्रांति को लेकर तैयारियां प्रारम्भ हो गई है।15 जनवरी को मकर संक्रान्ति है,जो हिन्दुओं की आस्था का पर्व है, एवं 13 जनवरी को लोहड़ी है,जो सिक्खों की आस्था का पर्व है।14 जनवरी शुक्रवार को रात 8 बजकर 43 मिनट पर भगवान भास्कर मकर राशि में प्रवेश कर जाएंगे और इसी के साथ सूर्य उत्तरायण भी हो जाएंगे।खरमास समाप्त हो जाएगा।चूंकि रात में संक्रांति लग रही है इसलिए इसका पुण्यकाल अगले दिन 15 जनवरी शनिवार को माना जाएगा और खिचड़ी का प्रसिद्ध पर्व एवं मकर संक्रांति का पवित्र स्नान मध्यान्ह काल तक किया जाएगा।सर्वत्र गंगा

मंगलवार, 2 नवंबर 2021

दीपावली 2021: शुभ मुहूर्त तथा गणेश लक्ष्मी जी की मूर्ति खरीदते समय इन महत्वपूर्ण बातों का रखें ध्यान, गणेश जी की ऐसी मूर्ति न खरीदें

दीपावली 2021:  शुभ मुहूर्त







गणेश लक्ष्मी जी की मूर्ति खरीदते समय इन महत्वपूर्ण बातों का रखें ध्यान, गणेश जी की ऐसी मूर्ति न खरीदें

 दिवाली का पर्व हिंदू धर्म में विशेष माना गया है. दिवाली पर लक्ष्मी पूजन का विशेष महत्व है. मान्यता है कि दिवाली की रात शुभ मुहूर्त में विधि पूर्वक पूजा करने से लक्ष्मी जी की कृपा प्राप्त होती है. शास्त्रों में लक्ष्मी जी को धन की देवी बताया गया है. कलियुग में लक्ष्मी जी की पूजा वैभव प्रदान करने वाली मानी गई है. दिवाली यानि दिपावली पर लक्ष्मी जी के साथ गणेश जी की भी पूजा की जाती है.


धनतेरस पर यदि गणेश-लक्ष्मी जी की मूर्ति खरीदने जा रहे हैं तो कुछ बातों पर विशेष ध्यान दें. कई बार सही जानकारी न होने के कारण व्यक्ति ऐसी मूर्ति खरीदकर घर ले आते हैं, जिससे वास्तु दोष या अन्य प्रकार की परेशानियां खडी हो जाती हैं. इसलिए दिवाली पूजन पर गणेश लक्ष्मी जी की मूर्ति खरीदते समय इन बातों पर अवश्य ध्यान दें- मूर्ति खरीदते समय हमेशा गणेश जी के हाथ में मोदक होना जरूरी है. ऐसी मूर्ति सुख-समृद्धि का प्रतीक मानी जाती है. यह मोदक बाएं हाथ में होना अति शुभ होता है. यानी गणेश जी की सूंड मोदक या लड्डू की ओर मुड़ी हुई होना बहुत शुभ होता है...l

आचार्य रजनेश त्रिवेदी
आचार्य संदीप  त्रिवेदी
श्री अनामिज्योति आश्रम वाटिका।

बुधवार, 27 अक्टूबर 2021

कार्तिक मास में तुलसी महारानी की महिमा ~ आचार्य रजनेश त्रिवेदी, श्री अनामिज्योति आश्रम द्वारा

🙏कार्तिक मास में तुलसी महारानी की महिमां🙏 
            ब्रह्मा जी कहे हैं कि कार्तिक मास में जो भक्त प्रातः काल स्नान करके पवित्र हो कोमल तुलसी दल से भगवान् दामोदर की पूजा करते हैं, वह निश्चय ही मोक्ष पाते हैं। पूर्वकाल में भक्त विष्णुदास भक्तिपूर्वक तुलसी पूजन से शीघ्र ही भगवान् के धाम को चला गया और राजा चोल उसकी तुलना में गौण हो गए। तुलसी से भगवान् की पूजा, पाप का नाश और पुण्य की वृद्धि करने वाली है। अपनी लगाई हुई तुलसी जितना ही अपने मूल का विस्तार करती है, उतने ही सहस्रयुगों तक मनुष्य ब्रह्मलोक में प्रतिष्ठित रहता है। यदि कोई तुलसी संयुत जल में स्नान करता है तो वह पापमुक्त हो आनन्द का अनुभव करता है। जिसके घर में तुलसी का पौधा विद्यमान है, उसका घर तीर्थ के समान है, वहाँ यमराज के दूत नहीं जाते। जो मनुष्य तुलसी काष्ठ संयुक्त गंध धारण करता है, क्रियामाण पाप उसके शरीर का स्पर्श नहीं करते। जहाँ तुलसी वन की छाया हो वहीं पर पितरों की तृप्ति के लिए श्राद्ध करना चाहिए। जिसके कान में, मुख में और मस्तक पर तुलसी का पत्ता दिखाई देता है, उसके ऊपर यमराज दृष्टि नहीं डाल सकते। प्राचीन काल में हरिमेधा और सुमेधा नामक दो ब्राह्मण थे। वह जाते-जाते किसी दुर्गम वन में परिश्रम से व्याकुल हो गए, वहाँ उन्होंने एक स्थान पर तुलसी दल देखा। सुमेधा ने तुलसी का महान् वन देखकर उसकी परिक्रमा की और भक्ति पूर्वक प्रणाम किया। यह देख हरिमेधा ने पूछा कि 'तुमने अन्य सभी देवताओं व तीर्थ-व्रतों के रहते तुलसी वन को प्रणाम क्यों किया ?' तो सुमेधा ने बताया कि 'प्राचीन काल में जब दुर्वासा के शाप से इन्द्र का ऐश्वर्य छिन गया तब देवताओं और असुरों ने मिलकर समुद्र मन्थन किया तो धनवंतरि रूप भगवान् श्री हरि और दिव्य औषधियाँ प्रकट हुईं। उन दिव्य औषधियों में मण्डलाकार तुलसी उत्पन्न हुई, जिसे

गुरुवार, 21 अक्टूबर 2021

यजुर्वेद हिन्दी अनुवाद

ऋग्वेद हिन्दी अनुवाद

अथर्ववेद हिन्दी अनुवाद

सामवेद पूर्ण हिन्दी अनुवाद

श्रीमद् भगवत गीता पीडीएफ

शिवपुराण PDF 0 /SHIVA PURAN

शुक्रवार, 8 अक्टूबर 2021

शारदीय नवरात्रि महत्व, पूजा विधि, - आचार्य रजनेश त्रिवेदी, श्री अनामिज्योति आश्रम द्वारा

🌞 श्री गणेशाय नमः🌞 🌞ॐ तस्मै श्री गुरुवे नमः🌞 ॐ ऐं ह्लीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै नवरात्रि को शारदीय नवरात्रि कहा जाता है। इस दौरान किस दिन किस तिथि में किस देवी की पूजा और अनुष्ठान किया जाना है, इसकी विस्तृत जानकारी हम आपको नीचे प्रदान कर रहे हैं। दिन और वार नवरात्रि दिन तिथि पूजा-अनुष्ठान 7 अक्टूबर (गुरुवार) प्रतिपदा माँ शैलपुत्री पूजाघटस्थापना 8 अक्टूबर (शुक्रवार) द्वितीया माँ ब्रह्मचारिणी पूजा 9 अक्टूबर (शनिवार) तृतीया माँ चंद्रघंटा पूजा 9 अक्टूबर (शनिवार) चतुर्थी माँ कुष्मांडा पूजा 10 अक्टूबर (रविवार) पंचमी माँ स्कंदमाता पूजा 11 अक्टूबर (सोमवार) षष्ठी माँ कात्यायनी पूजा 12 अक्टूबर (मंगलवार) सप्तमी माँ कालरात्रि पूजा 13 अक्टूबर (बुधवार) अष्टमी माँ महागौरीदुर्गा महा अष्टमी पूजा 14 अक्टूबर (गुरुवार) नवमी माँ सिद्धिदात्रीदुर्गा महा नवमी पूजा 15 अक्टूबर (शुक्रवार) दशमी नवरात्रि पारणादुर्गा विसर्जनविजय दशमी नवरात्रि की सांस्कृतिक परंपरा और इसका पौराणिक महत्व सबसे पहले बात करते हैं नवरात्रि के दौरान निभाई जाने वाले सांस्कृतिक परंपरा की। दरअसल नवरात्रि के 9 दिनों में मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की विधि पूर्वक पूजा का विधान बताया गया है। नवरात्रि के पहले दिन घरों में कलश स्थापित करके दुर्गा सप्तशती का पाठ शुरू किया जाता है। कलश स्थापित करने के अनुष्ठान को घटस्थापना कहा जाता है। इसके अलावा इस दौरान देश के कई शक्तिपीठों में मेलों का भी आयोजन ... होता है। साथ ही भव्य झाकियाँ आदि भी नवरात्रि के दौरान निकाली जाती है। साथ ही नवरात्रि के दौरान बहुत से लोग अपने घरों में और बहुत से मंदिरों में जागरण भी किया जाता है। पौराणिक मान्यता की बात करें तो, कहा जाता है कि नवरात्रि के ही दौरान देवी शक्ति की कृपा से भगवान राम ने असुर रावण का वध और लोगों को इस बात का सन्देश दिया था कि झूठ और असत्य चाहे कितना भी बलवान क्यों न हो उसे सत्य के सामने हारना ही पड़ता है। शरद नवरात्रि पूजा विधि ता है। साथ ही भव्य झाकियाँ आदि भी नवरात्रि के दौरान निकाली जाती है। साथ ही नवरात्रि के दौरान बहुत से लोग अपने घरों में और बहुत से मंदिरों में जागरण भी किया जाता है। पौराणिक मान्यता की बात करें तो, कहा जाता है कि नवरात्रि के ही दौरान देवी शक्ति की कृपा से भगवान राम ने असुर रावण का वध और लोगों को इस बात का सन्देश दिया था कि झूठ और असत्य चाहे कितना भी बलवान क्यों न हो उसे सत्य के सामने हारना ही पड़ता है। शरद नवरात्रि पूजा विधि नवरात्रि के पहले दिन व्रत का संकल्प लिया जाता है। इस दिन लोग अपने सामर्थ्य अनुसार 2, 3 या पूरे 9 दिन का उपवास रखने का संकल्प लेते हैं। संकल्प लेने के बाद मिट्टी की वेदी में जौ बोया जाता है और इस वेदी को कलश पर स्थापित किया जाता है। बता दें क्योंकि हिन्दू धर्म में किसी भी मांगलिक काम से पहले भगवान गणेश की पूजा का विधान बताया गया है और कलश को भगवान गणेश का रूप माना जाता है इसलिए इस परंपरा का निर्वाह किया जाता है। कलश को गंगाजल से साफ की गई जगह पर रख दें। इसके बाद देवी-देवताओं का आवाहन करें। कलश में सात तरह के अनाज, कुछ सिक्के और मिट्टी भी रखकर कलश को पांच तरह के पत्तों से सजा लें। इस कलश पर कुल देवी की तस्वीर स्थापित करें। दुर्गा सप्तशती का पाठ करें इस दौरान अखंड ज्योति अवश्य प्रज्वलित करें। (अखंड ज्योति जलाने के नियम और सावधानियां जानने के लिए यह लेख अंत तक पढ़ें)

सोमवार, 4 अक्टूबर 2021

अमावस्या सर्वपितृ श्राद्ध - आचार्य रजनेश त्रिवेदी, श्री अनामिज्योति आश्रम द्वारा

 अमावस्या सर्वपितृ श्राद्ध


  ये पितृपक्ष के सोलह दिनोंमें अमावस्या को सर्वपितृ श्राद्ध करने से सात पीढियो के सभी पितरो की पूजा हो जाती है और गोत्र देवताओ सहित सर्व पितृलोक अशिरवाद बरसाता है ।


   ब्रह्मांड बाराह राशीओ से बंधा हुवा है । मेष राशि ब्रह्मांड का प्रवेश द्वार है । मीन राशि का द्वार देवलोक ( सूर्यलोक ) की ओर है । कन्या राशि का द्वार पितृलोक ( चंद्रलोक ) की ओर है। जब किसी की मृत्यु हिती है तब जीव कर्मानुसार इनमे से एक द्वार की ओर गति करता है । सद कर्म , सदाचार ओर पैरोकारी जीव अपने पुण्यबल से सूर्यलोक जाता है । बाकी जीव पितृयान ( चन्त्रलोक ) में गति करते है । चंद्र सूक्ष्म सृष्टि का नियमन करते है । 

     सूर्य जब कन्या राशिमें प्रवेश करते है

शनिवार, 20 मार्च 2021

शनि का प्रभाव ज्योतिष ज्ञान ~ नमः वार्ताः

 शनि का प्रभाव


यदि किसी की जन्म या लग्न कुंडली में शनि ग्रह लग्न , लग्नेश और चन्द्रमा अर्थात तीनों को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित कर रहा हो तो उस व्यक्ति की मनोदशा विचलित मिलेगी , जीवन भ्रम से भरा होगा , किसी ना किसी असाध्य बिमारी का साथ हमेशा लगा रहेगा , व्यक्ति उदासी और अकेलेपन के चंगुल में फंसा रहता है , उसके जीवन में किसी भी स्थिति में परिवर्तन जल्दी से नहीं होता है अर्थात लगभग नीरस जीवन ।


🌹लेकिन यदि शनि द्वादशेश , षष्ठेश या अष्टमेश हुआ तो स्थिति और भी विकट हो जाती है , उस स्थिति में व्यक्ति बहुत चाहकर या प्रयास करके भी कुछ नहीं कर पाता है । लेकिन यदि बृहस्पति का कहीं से कुछ प्रभाव मिल जाता है तो स्थिति में कुछ बदलाव भी हो सकता है । ऐसे में नवमांश कुंडली का बारीकी से अध्ययन बहुत जरूरी हो जाता है क्योंकि अधिकांशतः देखने में आता है कि लग्न कुंडली और नवमांश कुंडली में परिवर्तन होता ही है , और यह मेरा ज्योतिषीय एवं व्यक्तिगत अनुभव भी है । 


🌹अतः यदि आपको लगता है कि शनि के कारण आपको ज्यादा दिक्कत है तो , ऐसे लोगों को मेरा विशेष परामर्श है कि किसी चमत्कार के चक्कर में ना पड़ें और स्वयं किसी निर्णय पर पहुंचने से पहले समय रहते किसी ज्ञानी एवं अनुभवी ज्योतिषी से ही परामर्श जरूर प्राप्त करें , इससे आपके बहुत सारे भ्रम भी दूर हो जायेंगें और जीवन भी निश्चित रूप से सरल हो जाएगा।