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रविवार, 31 दिसंबर 2023

“ अस्वतंत्र मानसिकता वाला रट्टू तोता ” कहानी ~ नमः वार्ता

  🔆💥 जय श्री राम 🔆💥

 “ अस्वतंत्र  मानसिकता वाला रट्टू तोता ” कहानी ~ नमः वार्ता


एक बार एक संत ने एक बहेलिया को देखा जो तोतों को जाल में फंसाकर, पकड़कर  बाजार में बेचने के लिए ले जा रहा था। उसे देखकर संत का मन बहुत व्याकुल हुआ। उस संत ने मन में संकल्प किया कि इन पक्षियों को मैं स्वतंत्र रहने के लिये शिक्षित करूंगा। 


संत ने तोतों को शिक्षा देना प्रारंभ किया। तोतों ने संत द्वारा बताए हुए पाठ को शीघ्र ही कंठस्थ कर लिया।


पाठ था-

"बहेलिया आएगा"

"जाल बिछाएगा"

"दाना डालेगा"

"पर हम नहीं खाएंगे"


एक दिन बहेरिया पुनः जंगल में तोते पकड़ने के लिये आ गया और तोतों को ये गाते हुए देखकर उसका मन अति व्याकुल हुआ कि अब तो तोते मेरे जाल में नहीं फंसेंगे।


बहेलिये ने जाल बिछाया, दाने डाले और पक्षियों की प्रतीक्षा के लिए दुखी मन से एक ओर खड़ा हो गया।


कुछ क्षणों उपरांत ही वो हतप्रद हुआ जब देखा कि दाने डालते ही पक्षियों का झुण्ड ने तुरंत ही जाल की ओर आना प्रारंभ कर दिया और सभी जाल में फंस गए। जाल में फंसने के उपरांत भी पक्षी गाए जा रहे थे कि

बहेलिया आएगा

जाल बिछाएगा

दाना डालेगा

पर हम नहीं खाएंगे


बहेलिया ने जाल को उठाया और सभी पक्षियों को जाल में बांधकर चल पड़ा परंतु अब भी पक्षी फिर भी गाए जा रहे थे कि

 

बहेलिया आएगा,जाल बिछाएगा दाना डालेगा, हम नहीं खाएंगे


हम हिंदुओं का भी यही हाल है। पाश्चात्य सभ्यता से आज भी प्रभावित है, हिन्दू होने के नाते ग्लानि से मन भरा हुआ है क्योंकि अस्वतंत्रता की मानसिकता जा ही नही रही। एक ओर तो हम कह रहे हैं हिन्दू जागृत हो गया, गर्व से कहो हम हिन्दू है और दूसरी ओर अंग्रेजी नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई दे रहे हैं।


जिस प्रकार तोते ने बस पाठ रट लिया किंतु जैसे ही दाने का कच्चा लालच देखा तो अस्वतंत्र  होने की मानसिकता प्रबल हो गयी। उसी प्रकार हम भी जानबूझकर सोच समझकर वही व्यवहार कर रहे हैं जबकि हैरानी है कि ये अंग्रेजों का नव वर्ष भी नही है। 


सोचिए क्या आपके व्यापार में वर्ष बदला❓

क्या आपके विद्यालयों में वर्ष बदला❓❓

जब दिवाली होली जैसे त्योहार विकमी संवत के पंचांग के अनुसार मनाए तो अब अपनी संस्कृति और संस्कार को आपने क्यों बदला। 

ध्यान दीजिए-

सप्त से-सेप्टेम्बर

अष्ट से-अक्टूबर

नवम से-नवम्बर

दशम से-दिसम्बर यानी (X मास रोमन में) ये उनके वर्ष का भी दसवां महीना है। अंग्रेजों के राजाओं ने अपने नाम पर जुलाई/अगस्त में 1-1 दिन बढ़वा कर ये महीने 31 दिन के कर दिये और वर्ष के अंत मे 12वे महीने फरवरी को 28 दिन का करना पड़ा।


प्रेषक-

#दिनेश बरेजा

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