🔆💥 जय श्री राम 🔆💥
“ आत्मचिंतन-मेरे मन्दिर के पंडित जी ” कहानी ~ नमः वार्ता
```हमारे क्षेत्र में एक मंदिर है , जहाँ के पंडित लगभग २० वर्ष से पंडिताई कर कर रहे हैं । एक बार मंदिर जाने पर मेरे पास आये और बोले ”मेरे बेटे की शुल्क में ३००० रूपये की कमी पड़ रही है , कुछ लोगों से कहा है पर ईश्वर की इच्छा उनके पास भी इस समय नहीं हैं , यदि आप मदद कर सके तो....मैं वापस कर दूँगा , बच्चे का वर्ष क्षतिग्रस्त हो जाएगा , २० वर्ष से मंदिर की सेवा में हूँ , यहीं , मैं आपको वचन दे रहा हूँ ... मैं आप के पैसे अवश्य लौटा दूंगा।
मैंने घर आ कर पैसे निकाल कर उनको दे दिए क्योंकि मुझे उनकी बात में सच्चाई दिखी। मेरे साथ उस समय मेरा मित्र भी था , उसने मुझसे कहा ,” कौन लौटाता है , तू उन पैसों को भूल जा, मुझे भी उस समय यही लगा कि हो सकता है ऐसा हो, फिर भी मुझे ये स्वीकृत था कि वो पैसे बच्चे की शिक्षा में लगे हैं इसलिए शाम को मैंने पत्नी को पूरी घटना बताते हुए कहा, ”मैंने एक बच्चे की शिक्षा के लिए वो पैसे दिए हैं , यदि वो
नहीं लौटाते हैं तो ठीक है वो उनके बच्चे की शिक्षा में लग गए , यदि लौटा देते हैं तो मैं किसी दूसरे बच्चे की शिक्षा में वो पैसे लगा दूंगा"इसके उपरांत कई महीने बीत गए। मैंने उनसे कभी पैसों के बारे में बात नहीं की , वो स्वयं ही कहते रहे कि मैं लौटा दूँगा , लौटा दूँगा और मैं कोई बात नहीं कह कर आगे बढ़ जाता।
लगभग एक वर्ष उपरांत वो मेरे पास आये और पैसे लौटते हुए बोले ,” आज ईश्वर की कृपा से मैं मुक्त हुआ , बहुत विपरीत परिस्थितियाँ आयीं, समय पर नहीं लौटा सका , पर अपना संकल्प का सदा स्मरण रहा , कागज़ में लिख कर रख लिया था।
वो पैसे दे कर चले गए। मैंने वो पैसे किसी और बच्चे की शिक्षा में लगाने के लिए रख लिये लेकिन मैं सोचता रहा कि इतने धनाढ्य क्षेत्र का मंदिर , जहाँ अक्सर आयोजन होते रहते हैं। वहाँ का पंडित मात्र ३००० रुपये जमा कर लौटाने के लिए इतना संघर्ष करता रहा।
वो पंडित जिसकी कार्य सुबह ६ बजे से रात ९ बजे तक चलती है , जो नयी कारों के आगे मन्त्र पढ़ कर नारियल फोड़ने के उपरांत भी स्वयं सायकिल से चलता है।कहाँ है उसके पास पैसा ?
अक्सर पंडितों को भोजन भट्ट , खाऊ , पैसा ऐठने वाले से संबोधित किया जाता है | क्या दुबले -पतले सूखे बीमार पंडित बहुतायत से नहीं हैं ?
कुछ प्रसिद्द बड़े मंदिरों , मठों की बात छोड़ दें तो आप भी ध्यान दीजिये की क्या हमारे घरों में पूजा पाठ करने वाले , विवाह–ब्याह कराने वाले , मुंडन–जनेऊ करने वाले कितने पंडित ऐसे हैं जिनकी अट्टालिकाएं खड़ी हैं , कार से चलते हैं या बैंक लबालब भरे हैं?```
या तो हम कह दे कि हमें मंदिर ही नहीं चाहिए लेकिन यदि हमें मंदिर चाहिए , मदिर में पूजा–पाठ , घंटा ध्वनि , मंत्रोच्चार के लिए एक पंडित चाहिए , तो पंडित को ११ रुपये देते समय हमें क्यों अनुभव नहीं होता है , इससे अधिक तो हम होटल में टिप देते हुए स्वयं को शिष्ट अनुभव करते हैं । क्या पंडित के परिवार नहीं है #दिनेश बरेजा
प्रेषक-
#दिनेश बरेजा
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें