🔆💥 जय श्री राम 🔆💥
बेटे की मूल्य
थकी हारी घर में घुसी थी
मां पापा सामने बरामदे में बैठे थे.. देखते ही कहा "आ गई बेटी , आज देर हो गई"
" हां पापा, आज थोड़ा काम अधिक था"
" अच्छा जा फ्रेश हो जा छोटी को बोल दे चाय बना देगी " , मां ने कहा
"जी, ठीक है" वो अंदर चली गई ..तीन बहनें थीं, दो नौकरी कर रही थीं, एक छोटी पढ़ रही थी।
दोनों बहनों ने घर की सारी उत्तरदायित्व अत्यंत अच्छे से संभाले थी,
फ्रेश होकर बाहर आई तब चाय बन के आ चुकी थी, वो मां पापा के पास चली आई, अब तक मंझली बहन भी आ गई थी।
मां ने घर के सामान लाने की स्मरण दिलाई, तब तक पापा ने भी अपनी दवाइयों के समाप्त होने की कही, वो सब सुन रही थी
दोनों ने भरोसा दिलाया कि आप लोग चिंता ना करे सब हो जाएगा..
और वो दोनों जाने के लिए उठी..तब तक पीछे से आवाज आई -
" भगवान एक बेटा दे देता तो .."
-संकलित
_स्त्री और पुरुष के बीच नैसर्गिक भेद होना तो प्रकृति द्वारा ही तय कर दिया है लेकिन उनमें मूलभूत फर्क एक-दूसरे के पूरक के रूप में काम करने के लिए ही रखे गए किंतु मैं दिनेश ये मानता हूं कि समाज में पौरुष बल की प्रधानता के कारण महिलाओं को पुरुषों के समकक्ष ना रखकर उन्हें निचले पायदान पर रखा गया, लेकिन बात यहीं समाप्त नहीं होती, क्योंकि महिलाओं को ना केवल सैद्धांतिक रूप में निचला स्थान दिया गया है बल्कि उन्हें हर समय और हर पड़ाव पर यह आभास भी करवाया जाता है कि परिवार और समाज दोनों ही में उनका महत्व पुरुषों से कम है। यह सिलसिला बेटी के जन्म से प्रारंभ होता है और उम्रभर उसके साथ-साथ चलता है_
प्रेषक-दिनेश बरेजा
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