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रविवार, 26 जून 2022

“ राणा सांगा द्वितीय अंक ” अतीत ~ नमः वार्ता

 

🔆💥 जय श्री राम 🔆💥

“ राणा सांगा द्वितीय अंक ” अतीत ~ नमः वार्ता


 राणा संग्राम सिंह ने उत्तर भारत के समस्त मुस्लिम शासकों को हराकर सिंध, गुथोड़ात, मध्य प्रदेश, हरियाणा में हिंदू राज की स्थापना की थी...


4 मई 1509 को कुंवर संग्राम सिंह ने चित्तौड़गढ़ की गद्दी संभाल ली थी... सबसे छोटे होने के उपरांत भी राणा संग्राम सिंह को गद्दी इसलिए मिली क्योंकि उनके दो बड़े भाइयों की दुर्भाग्यवश राजपूतों की आपसी दुश्मनी में ही हत्या हो गई थी ।

गुरुवार, 7 अप्रैल 2022

बलिदानी विपिन रावत जी का एक ह्रदयस्पर्शी कथा ~ नमः वार्ता

🔆🔆🔆 जय श्री राम🔆🔆🔆
 बलिदानी विपिन रावत जी का एक ह्रदयस्पर्शी कथा 


हमारे सुरक्षा बलों, विद्रोहियों से लड़ने वाले हमारे जजों को यह बात उजागर करनी चाहिए !!

समुद्र तट पर चलते चलते एक वामपंथी लिबरल पत्रकार भारत के सबसे बड़े सैन्य अधिकारी का साक्षात्कार कर रहा था। 

पत्रकार ने विपिन रावत जी से पूछा, "जब आप आतंकवादी के खिलाफ कार्रवाई करते हैं तो कुछ नागरिक भी मारे जाते हैं। यह प्राकृतिक न्याय नहीं है।"

जनरल ने उससे कहा, "मैं तुम्हें यह स्पष्ट कर दूंगा कि यह तुम्हारा ही न्याय है।" 

पत्रकार ने उससे पूछा, "आप कैसे कह सकते हैं कि यह हमारे ही प्रकार का न्याय है?" 

जनरल ने बातचीत में उसे समुद्र तट पर

गुरुवार, 31 मार्च 2022

भारत को सोने की चिड़िया बनाने वाला असली राजा कौन था ? ~ नमः वार्ता


🔆💥 जय श्री राम 🔆💥

भारत को सोने की चिड़िया बनाने वाला असली राजा कौन था ? 


कौन था वह राजा जिसके राजगद्दी पर बैठने के उपरांत उनके श्रीमुख से देववाणी ही निकलती थी और देववाणी से ही न्याय होता था? 
 कौन था वह राजा जिसके राज्य में अधर्म का संपूर्ण नाश हो गया था। 

 महाराज विक्रमादित्य 

 बड़े ही दुख की बात है कि महाराज विक्रमादित्य के बारे में देश को लगभग शून्य बराबर ज्ञान है। जिन्होंने भारत को सोने की चिड़िया बनाया था और स्वर्णिम काल लाया था। 
 उज्जैन के राजा थे गन्धर्वसैन , जिनके तीन संताने थी , सबसे बड़ी लड़की थी मैनावती , उससे छोटा लड़का भृतहरि और सबसे छोटा वीर विक्रमादित्य...बहन मैनावती की शादी धारानगरी के राजा पदमसैन के साथ कर दी , जिनके एक लड़का हुआ गोपीचन्द , आगे चलकर गोपीचन्द ने श्री ज्वालेन्दर नाथ जी से योग दीक्षा ले ली और तपस्या करने जंगलों में चले गए, पुनः मैनावती ने भी श्री गुरू गोरक्ष नाथ जी से योग दीक्षा ले ली। 
 आज ये देश और यहाँ की संस्कृति केवल विक्रमादित्य के कारण अस्तित्व में है। 
 अशोक मौर्य ने बोद्ध धर्म

सोमवार, 28 मार्च 2022

समाज ने क्या भूला, क्या स्मरण रखा ~ नमः वार्ता

💐💐जय श्री राम💐💐
समाज ने क्या भूला, क्या स्मरण रखा

 हमारे पास तो  पहले से ही अमृत से भरे कलश थे...! 
 पुनः हम वह अमृत फेंक कर उनमें कीचड़ भरने का काम क्यों कर रहे हैं...?
 थोड़ा इन पर विचार करें..

० यदि  मातृनवमी  थी,
तो Mother’s day क्यों लाया गया?
० यदि  कौमुदी महोत्सव  था,
तो Valentine day क्यों लाया गया?
० यदि  गुरुपूर्णिमा  थी,
तो Teacher’s day क्यों लाया गया?
० यदि  धन्वन्तरि जयन्ती  थी,
तो Doctor’s day क्यों लाया गया?
० यदि  विश्वकर्मा जयंती  थी,
तो Technology day क्यों लाया गया?
० यदि  सन्तान सप्तमी  थी,
तो Children’s day क्यों लाया गया?
० यदि  नवरात्रि  और  कन्या भोज  था,
तो Daughter’s day क्यों लाया गया?
०  रक्षाबंधन  है तो Sister’s day क्यों ?
०  भाईदूज  है तो Brother’s day क्यों ?
०  आंवला नवमी, तुलसी विवाह  मनाने वाले हिंदुओं को Environment day की क्या आवश्यकता ?
० केवल इतना ही नहीं,  नारद जयन्ती  ब्रह्माण्डीय पत्रकारिता दिवस है...
०  पितृपक्ष  ७ पीढ़ियों तक के पूर्वजों का पितृपर्व है...
०  नवरात्रि  को स्त्री के नवरूपों के दिवस के रूप में स्मरण कीजिये...
 सनातन पर्वों को गर्व से मनाईये... 
 पश्चिमी अंधानुकरण मत अपनाइये 
ध्यान रखे... 
" सूर्य जब भी पश्चिम में गया है तब अस्त ही हुआ है "

अपनी  संस्कारी जड़ों की ओर लौटिए। अपने सनातन मूल की ओर लौटिए। व्रत, पर्व, त्यौहारों को मनाइए।  अपनी संस्कृति और सभ्यता को जीवंत कीजिये...  
           



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गुरुवार, 30 दिसंबर 2021

हमारे विचार राष्ट्र, धर्म व जाति.....

“किसी दोस्त ने कहा कि "राजपूतों" में गर्व बहुत है... मैंने कहा कि गर्व क्यों ना, परिवार के परिवार, पीढ़ियों दर पीढ़ियों खप गई, देश और हिंदुत्व के रक्षा के लिए !! 1000 सालों से ज्यादा की संघर्ष गाथा है, गर्व होना लाजमी है।।” ~गौरव गोयल


गौरव गोयल जी ने राजपूतों के संदर्भ में अपने मित्र को ट्वीटर के माध्यम से उक्त शब्दो में राजपूतों के लिए अपने विचार प्रस्तुत किए ।किंतु उनके जिस मित्र ने उनसे कहा है कि ‘राजपूतों में गर्व बहुत है’ उनतक यदि हमारी बात पहुंचे तो उनसे पूछना चाहूंगा कि किसी भी व्यक्ति जिसके पूर्वजों ने राष्ट्र के लिए प्राण तक बलिदान किए है उसे अपने जाति धर्म व राष्ट्र पर गर्व क्यों न हो?

यदि वामपंथी राष्ट्रद्रोहियों की विचारधारा से प्रभावित होकर उनका उत्तर है कि जाति कुछ नही होती जाति पर गर्व नही करना चाहिए तो उनके लिए आज लिख रहा हूं कि हमारी सनातन संस्कृति में ब्राम्हण, क्षत्रीय, वैश्य, शुद्र  चार वर्ण में विभाजित समाज जिसमे हमारे विचार अनुसार गर्व सबको होना चाहिए अपनी अपनी जाति धर्म व राष्ट्र पर, प्राचीन विश्व गुरु भारत बनाने में भी सभी का सहयोग से था। 

जहां ब्राम्हण वर्ग ने धर्म, ज्ञानविज्ञान व राष्ट्रनिर्माण प्रगति के लिए धन संपदा,सुविधाएं तक त्याग दी, वही क्षत्रियों ने अद्भुत नेतृत्व क्षमता, वीरता के साथ राष्ट्र व स्वाभिमान की सेवा व रक्षार्थ हेतु अपने व परिवार के प्राणों तक का त्याग करना पड़ा,जिसमे उनके कई वंश तक मिट गए। साथ ही उत्पादक (शुद्र) वर्ग ने अपनी श्रम क्षमता से विभिन्न क्षेत्रों में विभिन्न उपयोगी वस्तुओ का निर्माण किया, जिसे विश्व....स्तर तक पहुंचाकर वैश्य वर्ग अपनी व्यापारिक बुद्धि से विश्व की सर्वोच्च अर्थव्यवस्था अपने भारत की बनाई थी। 


किंतु दुखद है कि आज लोकतांत्रिक नेतृत्व ही एक दूसरे वर्गो को कही पार्टी, जाति, कही आरक्षण विशेषाधिकार, कहीं कुंठा व घृणा भरकर, कही कही आधारहीन तथ्यों का सहारा लेकर एक दूसरे से लड़ा रहा है और लोग भी अपने उत्तरदायित्व कर्तव्यों से विमुख होकर स्वार्थवश लड़ने में व्यस्त है। ~ विनीत प्रताप सिंह सीतूभदौरिया ( @VPSINGHSITU )

शनिवार, 13 नवंबर 2021

अरे जो भारत से हारकर खाली हाथ जाते समय रास्ते मे मर गया वो इतिहास में विश्वविजेता कैसा बन गया- विचार तथा अध्यन अवश्य कीजिये-दिनेश बरेजा

 🔆💥 जय श्री राम 🔆💥

सम्राट पौरस- सिकंदर युद्ध ई0पु0 315 -21


मकदूनिया में स्त्रियों को कतार बद्ध खड़ा कर दिया गया सौंदर्य - कमयिता के इस प्रदर्शन में जो सबसे खूबसूरत होगी उसे यूनान के शासक सिकंदर को दिया जायेगा बाकी सैनिकों को बाँट दिया जायेगा ।


पर्शिया कि इस हार ने एशिया के द्वार खोल दिया भागते पर्शियन शासकों का पीछा करते हुये सिकंदर हिंदुकुश तक पहुँच गया 

चरवाहों , गुप्तचरों ने सूचना दी इसके पार एक महान सभ्यता है ।

धन धान्य से भरपूर सन्यासियों , आचार्यों , गुरूकुलों , योद्धाओं , किसानों से विभूषित सभ्यता जो अभी तक अविजित है । सिकंदर ने जिसके पास अरबी , फ़रिशर्मिंन घोड़ों से सुसज्जित सेना थी ने भारत पर आक्रमण का आदेश दिया , झेलम के तट पर उसने पड़ाव डाल दिया आधीनता का

गुरुवार, 21 अक्टूबर 2021

यजुर्वेद हिन्दी अनुवाद

ऋग्वेद हिन्दी अनुवाद

अथर्ववेद हिन्दी अनुवाद

सामवेद पूर्ण हिन्दी अनुवाद

श्रीमद् भगवत गीता पीडीएफ

बुधवार, 7 अप्रैल 2021

झांसी की रानी कविता

 धन्य धन्य वॊ क्षत्राणी

जिनकॊ वैभव नॆं पाला था

आ पड़ी आन पर जब,

सबनॆं जौहर कर डाला था

कल्मषता का काल-चक्र,

पलक झपकतॆ रॊका था

इतिहास गवाही दॆता है,

श्रृँगार अग्नि मॆं झॊंका था

हल्दीघाटी कॆ कण-कण मॆं,

वीरॊं की शॊणित धार लिखूं 

कविता कॆ रस-प्रॆमी बॊलॊ,

श्रृँगार लिखूं या अंगार लिखूं 

श्रृँगार सजॆ महलॊं मॆं वह,

तड़ित बालिका बिजली थी

श्रृँगार छॊड़ कर महारानी,

रण भूमि मॆं निकली थी

बुंदॆलॆ हरबॊलॊं कॆ मुंह की,

अमिट ज़ुबानी लिखी गई 

खूब लड़ी मर्दानी थी वह

झांसी की रानी लिखी गई

उन चूड़ी वालॆ हाँथॊं मॆं,

मैं चमक उठी तलवार लिखूं 

कविता कॆ रस-प्रॆमी बॊलॊ,

श्रृँगार लिखूं या अंगार लिखूं 

बॆटॆ कॆ सम्मुख मां नॆं,

पाठ स्वराज्य का बाँचा हॊगा

मुगलॊं की छाती पर तब,

वह शॆर मराठा नाँचा हॊगा

भगतसिंह की मां का दॆखॊ,

सूना आंचल श्रृँगार बना

इतिहास रचा बॆटॆ नॆं जब,

तपतॆ तपतॆ अंगार बना

कह रहीं शहीदॊं की सांसॆं,

भारत की जय-जयकार लिखूं 

कविता कॆ रस-प्रॆमी बॊलॊ,

श्रृँगार लिखूं या अंगार लिखूं...


जय भवानी

कुतुबुद्दीन ऐबक घोड़े से गिर कर मरा था यह तो सब जानते हैं, लेकिन कैसे?

 कुतुबुद्दीन ऐबक घोड़े से गिर कर मरा था

 यह तो सब जानते हैं, 

लेकिन कैसे?


यह आज हम आपको बताएंगे..


वो वीर महाराणा प्रताप जी का 'चेतक' सबको याद है,

लेकिन 'शुभ्रक' नहीं!


तो मित्रो आज सुनिए 

कहानी 'शुभ्रक' की......


सूअर कुतुबुद्दीन ऐबक ने राजपूताना में जम कर कहर बरपाया, 


और

 उदयपुर के 'राजकुंवर कर्णसिंह' को बंदी बनाकर लाहौर ले गया।



*कुंवर का 'शुभ्रक' नामक एक स्वामिभक्त घोड़ा था,


जो कुतुबुद्दीन को पसंद आ गया और वो उसे भी साथ ले गया।


एक दिन कैद से भागने के प्रयास में कुँवर सा को सजा-ए-मौत सुनाई गई.. 


और सजा देने के लिए 'जन्नत बाग' में लाया गया। 


यह तय हुआ कि 

*राजकुंवर का सिर काटकर उससे 'पोलो' (उस समय उस खेल का नाम और खेलने का तरीका कुछ और ही था) खेला जाएगा..

.

कुतुबुद्दीन ख़ुद कुँवर सा के ही घोड़े 'शुभ्रक' पर सवार होकर अपनी खिलाड़ी टोली के साथ 'जन्नत बाग' में आया।



'शुभ्रक' ने जैसे ही कैदी अवस्था में राजकुंवर को देखा, 

उसकी आंखों से आंसू टपकने लगे। 


जैसे ही सिर कलम करने के लिए कुँवर सा की जंजीरों को खोला गया, 


तो 'शुभ्रक' से रहा नहीं गया.. 


उसने उछलकर कुतुबुद्दीन को घोड़े से गिरा दिया 


और उसकी छाती पर अपने मजबूत पैरों से कई वार किए, 


*जिससे कुतुबुद्दीन के प्राण पखेरू उड़ गए!

इस्लामिक सैनिक अचंभित होकर देखते रह गए.. 



मौके का फायदा उठाकर कुंवर सा सैनिकों से छूटे और 'शुभ्रक' पर सवार हो गए। 


'शुभ्रक' ने हवा से बाजी लगा दी.. 


*लाहौर से उदयपुर बिना रुके दौडा और उदयपुर में महल के सामने आकर ही रुका!*


राजकुंवर घोड़े से उतरे और अपने प्रिय अश्व को पुचकारने के लिए हाथ बढ़ाया, 


*तो पाया कि वह तो प्रतिमा बना खडा था.. उसमें प्राण नहीं बचे थे।



*सिर पर हाथ रखते ही 'शुभ्रक' का निष्प्राण शरीर लुढक गया..



*भारत के इतिहास में यह तथ्य कहीं नहीं पढ़ाया जाता



 क्योंकि वामपंथी और मुल्लापरस्त सेक्युलर लेखक  ऐसी दुर्गति वाली मौत को बताने से हिचकिचाते हैं । आज के युग मे इन्हें पक्के सेक्युलर कहते है , जिन्होंने अपने गौरव पूर्ण इतिहास को बेइज्जती के साथ लिख कर देश की जनता में परोसा है ।


जबकि 

*फारसी की कई प्राचीन पुस्तकों में कुतुबुद्दीन ऐबक की मौत इसी तरह लिखी बताई गई है।* परन्तु हमारे देश के सेक्युलर कांग्रेसी और बामपंथी बरबाद कर रख दिये है ।


नमन स्वामीभक्त 'शुभ्रक' को..


वन्दे मातरम, जय श्री राम🚩

आमेर का राजा मानसिंह ( जिसे हिन्दू इतिहास में ग़द्दार कहा जाता है ) अगर वह नही होते - तो आज भारत मे एक भी हिन्दू नही बचता :- मानसिंह जी द्वारा किये गए कार्यो पर संक्षेप में लिख रहा हूँ :- विस्तार से बाद में लिखेंगे ।

 आमेर का राजा मानसिंह ( जिसे हिन्दू इतिहास में ग़द्दार कहा जाता है ) अगर वह नही होते - तो आज भारत मे एक भी हिन्दू नही बचता :- मानसिंह जी द्वारा किये गए कार्यो पर संक्षेप में लिख रहा हूँ :- विस्तार से बाद में लिखेंगे ।

●बंगाल, बिहार, पूर्वीउप , झारखंड आदि को इस्लामिल दासता से मुक्त करने वाले मानसिंह ही थे।

●गुजरात को इस्लामिक दासता से मुक्त मानसिंह ने करवाया।

●गुजरात का द्वारिकाधीश तीर्थ मस्जिद से पुनः मन्दिर बनवाया।

●काशी-अयोध्या के मंदिर का उद्धार किया, लेकिन ओरंगेजब ने पुनः तोड़ डाला ।

●वृंदावन में गोविन्ददेव जी के मंदिर का निर्माण करवाया ।

●मध्यएशिया तूरान ( ईरान, इराक, तुर्की) तक विजय प्राप्त की ।

●बिहार ने गयाजी के मंदिर का उद्धार उन्होंने ही किया ।

●पटना, काशी , हरिद्वार के घाटों का निर्माण राजा मानसिंह ने करवाया ।

●काशी में विश्वस्तरीय हॉस्पिटल बनवाया । आज भी उसके अवशेष मानमंदिर काशी में है।

●ज्वालादेवी मंदिर , जिसे फिरोजशाह तुगलक ने तोड़ डाला था, उसका उद्धार किया।

●उड़ीसा के जगन्नाथपुरी मंदिर सहित 7000 मंदिरो की रक्षा की ।

●रामायण लिखने में तुलसीदासजी को पूरा सरंक्षण दिया

●पूरे भारत से हिंदुओ पर जजिया कर , धर्म परिवर्तन, मंदिर टूटने का बोझ हटा दिया ।

●पाकिस्तान के रामतीर्थ का भी उद्धार किया ।

बहुत से कार्य तो मैं लिख ही नही पाया , पोस्ट ज़्यादा लंबी नही करनी इसलिए।

मानसिंह पर मात्र हल्दीघाटी का दाग है, तो भारत की जनता ही सोचे, मेवाड़ जीतते, तो पूरा भारत हार जाते, मेवाड़ महत्वपूर्ण था, या पूरा भारत ?

कहते है भारतीय एक हो जाते तो हारते नही, भई खानवा के युद्ध मे हिन्दू एक ही थे । फिर भी हारे .... तो ऐसी बातें सिर्फ कल्पना है, युद्ध मे भाग्यवान ही जीतता है, वीरता धरी रह जाती है ।। भाग्य साथ अगर नही हो ...

आखिर कौन थे ? #सम्राट_पृथ्वीराज_चौहान

 आखिर कौन थे ?

#सम्राट_पृथ्वीराज_चौहान 


पुरा नाम :-          #पृथ्वीराज_चौहान 

अन्य नाम :-         #राय_पिथौरा 

माता/पिता :-       राजा सोमेश्वर चौहान/कमलादेवी

पत्नी :-               संयोगिता

जन्म :-               1149 ई.  

राज्याभिषेक :-     1169 ई.   

मृत्यु :-                1192 ई. 

राजधानी :-          #दिल्ली, अजमेर

वंश :-                 चौहान (राजपूत)


आज की पिढी इनकी वीर गाथाओ के बारे मे..

 बहुत कम जानती है..!! 

तो आइए जानते है.. #सम्राट #पृथ्वीराज #चौहान से जुडा इतिहास एवं रोचक तथ्य,,,


''(1)  प्रथ्वीराज चौहान ने 12 वर्ष कि उम्र मे बिना किसी हथियार के खुंखार जंगली शेर का जबड़ा फाड़ 

ड़ाला था ।


(2) पृथ्वीराज चौहान ने 16 वर्ष की आयु मे ही

 महाबली नाहरराय को युद्ध मे हराकर माड़वकर पर विजय प्राप्त की थी।


(3) पृथ्वीराज चौहान ने तलवार के एक वार से जंगली हाथी का सिर धड़ से अलग कर दिया था ।


(4) महान सम्राट प्रथ्वीराज चौहान कि तलवार का वजन 84 किलो था, और उसे एक हाथ से चलाते थे ..सुनने पर विश्वास नहीं हुआ होगा किंतु यह सत्य है.. 


(5) सम्राट पृथ्वीराज चौहान पशु-पक्षियो के साथ बाते करने की कला जानते थे। 


(6) महान सम्राट पुर्ण रूप से मर्द थे ।

 अर्थात उनकी छाती पर स्तंन नही थे  ।


(8) प्रथ्वीराज चौहान 1166 ई.  मे अजमेर की गद्दी पर बैठे और तीन वर्ष के बाद यानि 1169 मे दिल्ली के सिहासन पर बैठकर पुरे हिन्दुस्तान पर राज किया।


(9) सम्राट पृथ्वीराज चौहान की तेरह पत्निया थी। 

इनमे संयोगिता सबसे प्रसिद्ध है..


(10) पृथ्वीराज चौहान ने महमुद गौरी को 16 बार युद्ध मे हराकर जीवन दान दिया था..

और 16 बार कुरान की कसम का खिलवाई थी ।


(11) गौरी ने 17 वी बार मे चौहान को धौके से बंदी बनाया और अपने देश ले जाकर चौहान की दोनो आँखे फोड दी थी ।

उसके बाद भी राजदरबार मे पृथ्वीराज चौहान ने अपना मस्तक नहीं झुकाया था।


(12) महमूद गौरी ने पृथ्वीराज चौहान को बंदी बनाकर  अनेको प्रकार की पिड़ा दी थी और कई महिनो तक भुखा रखा था.. 

फिर भी सम्राट की मृत्यु न हुई थी ।


(13) सम्राट पृथ्वीराज चौहान की सबसे बड़ी विशेषता यह थी की...

जन्मसे शब्द भेदी बाण की कला ज्ञात थी।

जो की अयोध्या नरेश "राजा दशरथ" के बाद..

 केवल उन्ही मे थी। 


(14) पृथ्वीराज चौहान ने महमुद गौरी को उसी के भरे दरबार मे शब्द भेदी बाण से मारा था ।

 गौरी को मारने के बाद भी वह दुश्मन के हाथो नहीं मरे.. 

 अर्थार्त अपने मित्र चन्द्रबरदाई के हाथो मरे, दोनो ने एक दुसरे को कटार घोंप कर मार लिया.. क्योंकि और कोई विकल्प नहीं था ।


दुख होता है ये सोचकर कि वामपंथीयो ने इतिहास की पुस्तकों में टीपुसुल्तान, बाबर, औरँगजेब, अकबर जैसे हत्यारो के महिमामण्डन से भर दिया और पृथ्वीराज जैसे योद्धाओ को नई पीढ़ी को पढ़ने नही दिया बल्कि इतिहास छुपा दिया....


    

गुरुवार, 18 मार्च 2021

चंद्रशेखर आजाद कविता

 चंद्रशेखर आजाद और आधुनिक राजनीति पर कविराज हरिओम पवार की कविता जोकि यह दर्शाती है कि किस तरह अपने स्वार्थ व जातिवादी राजनीति के कारण नेता देश के बड़े से बड़े महापुरुषों अपमान करने में भी संकोच नहीं करते हैं।

https://youtu.be/yRmj14_npNU


गुरुवार, 18 जून 2020

वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई के बलिदान दिवस पर उन्हें सादर नमन- अखण्ड सनातन समिति

वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई के बलिदान दिवस पर उन्हें सादर नमन।

भारत के स्वतन्त्रता संग्राम में केवल पुरुषों ने ही अपने जीवन का बलिदान नहीं किया बल्कि यहाँ की वीरांगनाएँ भी घर से निकलकर साहस के साथ युद्ध-भूमि में शत्रुओं से लोहा लिया। उन वीरांगनाओं में अग्रणी थीं झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई। लक्ष्मीबाई का जन्म वाराणसी जिले के भदैनी नामक नगर में 19 नवम्बर 1835 को हुआ था। उसके बचपन का नाम मणिकर्णिका था परन्तु प्यार से उसे मनु कहा जाता था। मनु की माँ का नाम भागीरथीबाई तथा पिता का नाम मोरोपन्त तांबे था। मोरोपन्त एक मराठी थे और मराठा बाजीराव की सेवा में थे। माता भागीरथीबाई एक सुसंस्कृत, बुद्धिमान एवं धार्मिक महिला थीं। मनु जब चार वर्ष की थी तब उनकी माँ की मृत्यु हो गयी। चूँकि घर में मनु की देखभाल के लिये कोई नहीं था इसलिए पिता मनु को अपने साथ बाजीराव के दरबार में ले गये जहाँ चंचल एवं सुन्दर मनु ने सबका मन मोह लिया। लोग उसे प्यार से "छबीली" कहकर बुलाने लगे। मनु ने बचपन में शास्त्रों की शिक्षा के साथ शस्त्रों की शिक्षा भी ली। सन् 1842 में उनका विवाह झाँसी के मराठा शासित राजा गंगाधर राव निम्बालकर के साथ हुआ और वे झाँसी की रानी बनीं। विवाह के बाद उनका नाम लक्ष्मीबाई रखा गया। सन् 1851 में रानी लक्ष्मीबाई ने एक पुत्र को जन्म दिया पर चार महीने की आयु में ही उसकी मृत्यु हो गयी। सन् 1853  राजा गंगाधर राव का स्वास्थ्य बहुत अधिक बिगड़ जाने पर उन्हें दत्तक पुत्र लेने की सलाह दी गयी। पुत्र गोद लेने के बाद 21 नवम्बर 1853 को राजा गंगाधर राव की मृत्यु हो गयी। दत्तक पुत्र का नाम दामोदर राव रखा गया।ब्रिटिश राज ने बालक दामोदर रदालत में मुकदमा दायर कर दिया। यद्यपि मुकदमे में बहुत बहस हुई परन्तु इसे खारिज कर दिया गया। ब्रितानी अधिकारियों ने राज्य का खजाना ज़ब्त कर लिया और उनके पति के कर्ज़ को रानी के सालाना खर्च में से काटने का फरमान जारी कर दिया। इसके परिणामस्वरूप रानी को झाँसी का किला छोड़ कर झाँसी के रानीमहल में जाना पड़ा। पर रानी लक्ष्मीबाई ने हिम्मत नहीं हारी और उन्होनें हर हाल में झाँसी राज्य की रक्षा करने का निश्चय किया।मराठा शासित झाँसी राज्य की रानी और 1857 के प्रथम भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम की वीरांगना थीं जिन्होंने मात्र 23 वर्ष की आयु में ब्रिटिश साम्राज्य की सेना से संग्राम किया और रणक्षेत्र में वीरगति प्राप्त की किन्तु जीते जी अंग्रेजों को अपनी झाँसी पर कब्जा नहीं करने दिया।
झाँसी 1857 के संग्राम का एक प्रमुख केन्द्र बन गया जहाँ हिंसा भड़क उठी। रानी लक्ष्मीबाई ने झाँसी की सुरक्षा को सुदृढ़ करना शुरू कर दिया और एक स्वयंसेवक सेना का गठन प्रारम्भ किया। इस सेना में महिलाओं की भर्ती की गयी और उन्हें युद्ध का प्रशिक्षण दिया गया। साधारण जनता ने भी इस संग्राम में सहयोग दिया। झलकारी बाईजो लक्ष्मीबाई की हमशक्ल थी को उसने अपनी सेना में प्रमुख स्थान दिया। 1857 के सितम्बर तथा अक्टूबर माह में पड़ोसी राज्य ओरछा तथा दतिया के राजाओं ने झाँसी पर आक्रमण कर दिया। रानी ने सफलता पूर्वक इसे विफल कर दिया। 1858 के जनवरी माह में ब्रितानी सेना ने झाँसी की ओर बढ़ना शुरू कर दिया और मार्च के महीने में शहर को घेर लिया। दो हफ़्तों की लड़ाई के बाद ब्रितानी सेना ने शहर पर कब्जा कर लिया। परन्तु रानी दामोदर राव के साथ अंग्रेजों से बच कर भाग निकलने में सफल हो गयी। रानी झाँसी से भाग कर कालपी पहुँची और तात्या टोपे से मिली।
तात्या टोपे और रानी की संयुक्त सेनाओं ने ग्वालियर के विद्रोही सैनिकों की मदद से ग्वालियर के एक किले पर कब्जा कर लिया। 17 जून 1858 को ग्वालियर के पास कोटा की सराय में ब्रिटिश सेना से लड़ते-लड़ते रानी लक्ष्मीबाई ने वीरगति प्राप्त की। लड़ाई की रिपोर्ट में ब्रिटिश जनरल ह्यूरोज़ ने टिप्पणी की कि रानी लक्ष्मीबाई अपनी सुन्दरता, चालाकी और दृढ़ता के लिये उल्लेखनीय तो थी ही, विद्रोही नेताओं में सबसे अधिक खतरनाक भी थी। देश की इस महानायिका ने 18 जून 1958 को ग्वालियर में आखरी सांसे ली थी।
                                      @ॐ_नमः_वार्ताः!

भारत के नवोत्थान में भाग दे।

●भारत के नवोत्थान के शुभ छठवें वर्ष की शुभकामनाएं●
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हमने अपने बचपन में अपने बड़े-बुजुर्गों को चूहेदानी का प्रयोग करते जरूर देखा होगा. 
रात को में घी लगी रोटी का एक टुकड़ा चूहेदानी में रखकर हम लोग सो जाते थे. 
रात को लगभग 11-12 बजे ख़ट की आवाज़ आती तो हम समझ जाते थे कि कोई चूहा फंसा है पर चूँकि उस ज़माने में बिजली उतनी आती नहीं थी तो हमलोग सुबह तक प्रतीक्षा करते थे. 
सुबह उठ कर जब हम चूहेदानी को देखते थे तो उसके कोने में हमें एक चूहा फंसा हुआ मिलता था. 

हम हिन्दू चूँकि जीव-हत्या से परहेज करतें हैं इसलिए हमारे बुजुर्ग उस चूहेदानी को उठाकर घर से दूर किसी नाले के पास ले जाते थे और वहां जाकर उसका गेट खोल देते थे ताकि वो चूहा वहां से निकल कर भाग जाए. 
मगर हमें ये देखकर बड़ा ताज्जुब होता था कि गेट खोले जाने के बाबजूद भी वो चूहा वहां से भागता नहीं था बल्कि वहीं कोने में दुबका रहता था. 
तब हमारे बुजुर्ग एक लकड़ी लेकर उससे उस चूहे को धीरे से मारते थे और भाग-भाग की आवाज़ लगाते थे पर तब भी वो चूहा अपनी जगह से टस से मस नहीं होता था. 
बार-बार उसे लकड़ी से मारने और शोर करने के बाद वो चूहा निकल कर भागता था.

जब तक अक्ल कम थी हमेशा सोचता था कि गेट खुला होने के बाद भी ये चूहा भागता क्यों नहीं ? 
पर बाद में जब अक्ल हुई तो समझ आया कि रात के 11-12 बजे चूहेदानी में कैद हुए चूहे ने सारी रात उस कैद से बाहर निकलने की कोशिश की होगी, हर दिशा में जाकर प्रयास किया होगा पर जब उसे ये एहसास हो गया कि अब इस कैद से मुक्ति का कोई रास्ता नहीं है तो थक-हार कर उसने अपने दिलो-दिमाग को ये समझा दिया कि अब मेरा भविष्य इस पिंजरे के अंदर ही है, इसी कैद में मुझे जीना और मरना है. इसलिए सुबह जब चूहेदानी का गेट खोल भी दिया गया तो भी उस चूहे का माइंडसेट यही बना हुआ था कि मैं तो कैद में हूँ, मैं तो गुलाम हूँ, मैं बाहर निकल ही नहीं सकता. 
इस माइंडसेट ने उसे ऐसा बना दिया था कि सामने खुला गेट और मुक्ति का रास्ता दिखते हुए भी उसे नहीं दिख रहा था.

●अपना हिन्दू समाज भी ऐसा ही था, 800 साल की गुलामी में हमने आजादी के लिए बहुत बार प्रयास किये पर सफलता नहीं मिली तो हमारा माइंडसेट ऐसा बन गया कि हम तो गुलामी करने के लिए ही पैदा हुए हैं, हम आजाद हो ही नहीं सकते.

इसलिए मुग़ल गये तो हमने अंग्रेजों की गुलामी शुरू कर दी और जब अंग्रेज गये, यानि गेट खुला, तो भी हमें आजादी का रास्ता नज़र नहीं आया, हम एक वंश की गुलामी में लग गये.
उस वंश की गुलामी करते-करते इतने गिर गये कि हममें गुलामी करने को लेकर भी प्रतिस्पर्धा होने लगी कि कौन सबसे बेहतर गुलामी कर सकता है. 

●एक खानदान की गुलामी करने में हम इतने गिरे, कि हमारे अपने नेताओं ने ही हिन्दू जाति को आतंकवाद से जोड़ दिया। 
यानि जिस बात को कहने की हिम्मत आज तक पाकिस्तान ने भी नहीं की, वो बात गुलाम मानसिकता से ग्रस्त, हमारे अपने लोगों ने कही। 
हम चूहे वाली माइंडसेट में थे, इसलिए समुचित प्रतिकार नहीं कर सके तो उनका हौसला और बढ़ा। 

फिर श्रीराम और श्रीकृष्ण को 'मिथक चरित्र' घोषित कर, वो राम-सेतु जैसे हमारे आस्था-केन्द्रों को तोड़ने की ओर बढ़े। 
फिर हमारे भाई-बांधवों का हक छीनकर मजहबी आधार पर आरक्षण की घोषणाएँ करने लगे. 

फिर एक दिन ये घोषणा कर दी कि जिस देश को तुम्हारे पूर्वजों ने अपने खून से सींचा है, उसके संसाधनों पर पहला हक तुम्हारा नहीं है। 

हम अब भी उस चूहे वाली माइंडसेट में थे, इसलिए फिर एक दिन उन्होंने कहा कि हम "लक्षित हिंसा बिल" लायेंगे और साबित करेंगे कि तुम बहुसंख्यक हिन्दू जुल्मी हो, दंगाई हो, देश के मासूम अल्पसंख्यकों पर अत्याचार करने वाले हो, इसलिए तुम्हारे लिए एक सख्त सजा का प्रावधान रखा जाएगा।

●इस अंतहीन काली रात के बाद जब सुबह हो गई थी, लकड़ी लेकर हमें जगाने वाला एक आदमी आ चुका था, जो हमें बता रहा था कि अब बहुत हो चुका कैद से निकलो, गेट खुला हुआ है। 
उस आदमी ने पूरे देश में घूम-घूम कर हमें गुलामी वाले लंबी निद्रा से जगाया, हमारे सामने खुला दरवाज़ा दिखाया....हम जागने लगे और 16 मई, 2014 को गुलामी वाले कैद से निकल गये। 

आज से ठीक 5 साल पहले, उस जगाने वाले के हाथों में अपना और अपने देश का भविष्य सौंप दिया और प्रण किया कि फिर से उस गुलामी वाले माइंडसेट में नहीं जाना। 
शुक्र है कि हम आज जाग्रत हैं और इसका ही नतीजा है कि मोदी जी दूसरी बार अधिक प्रबल बहुमत से जीत कर आए हैं।

हमें जगाने वाले ने हममें स्वाभिमान भाव पुनः जगाया. चिरकाल की गुलामी की लंबी निद्रा से जगाया।हमें हमारे सांस्कृतिक गौरव की अनुभूति कराई.हमको दोस्त और दुश्मन, देशभक्त और गद्दारों की पहचान हो गई। 
हमने जाना कि विधाता ने हिन्दू को गुलामी करने के लिए नहीं, बल्कि विश्व को कल्याण का मार्ग दिखाने के लिए जन्म दिया है।
"स्वाभिमान जागरण के 'सुफल' को, अब हिन्दू समाज ने पहचान लिया है"।

                          @ॐ_नमः_वार्ताः!

सभी जातियां अगर क्षत्रिय थी तो...

सभी जातियां अगर क्षत्रिय थी तो शुद्र कौन थे, और शुद्र थे ही नही सब क्षत्रिय हीं थे, तो आज फिर आरक्षण किस बात का लें रहें है?? और सभी क्षत्रिय हीं थे तो हथियार उठाने से मना किसने किया था?? 

एक तरफ खुद को क्षत्रिय होने का दावा करते हो और दुसरी तरफ शोषण होने का रोना रोते हो??

#ठाकरा_की_होड़_तो_कदे_बि_कोण_होवें___
एक दौर था जब सबके बच्चे घर में माँ के आंचल में आराम से सोते थे और राजपूतों के बच्चें रणभूमि में दुश्मन की तलवारों से टकरा कर धर्म कि रक्षा करते थे, एक समय था कि क्षत्रिय के खानदान में 10,12 साल से ऊपर के बच्चें जीवित हीं नहीं रहें,

उमर महज 11 या 12 बरस  लेकिन जब दुश्मन के गले पर वार करते थे तो तलवार को एक ही हाथ से आर पार कर देते थे, सबके बच्चे 5 साल की उमर में अपने माँ बाप के साए में बड़े होते थे वही राजपूतो के कई बालक इस उमर में अपने पिता को रणक्षेत्र में खो चुके थे,

तथा अपनी माता को जौहर कुंड में कूदते देख चुके थे,
जब रात के पहले पहर में सब लोग घरों के दरवाजे बंद करके रजाई ओढ़कर सोते थे, तब राजपूतों के कई मासूम अपने देश की रक्षा का भार ओढ़े गहन चिंता में डूबे रहते थे।
जनाब क्षत्रिय होना आसान नही है, एक तरफ सोशल मीडिया पर क्षत्रिय बन कर घुम रहे हो, क्षत्रिय बनने कि शौक भी पाले हो और दूसरे तरह इसी क्षत्रियो को निचा दिखा कर गाली भी देते हो????

                          @ॐ_नमः_वार्ताः!