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शुक्रवार, 17 मार्च 2023

“ बनूंगी सासू माँ सी सासूमाँ ” कहानी ~ नमः वार्ता

 

 🔆💥 जय श्री राम 🔆💥

 “ बनूंगी सासू माँ सी सासूमाँ ” कहानी ~ नमः वार्ता


      सुबह 10 बार स्वर लगाने पर भी ना उठती हो जो कभी वो आज सुबह 6 बजे उठकर चाय बनाने लगी। समाचार पत्र ले आयी, पौधों को जल दे दिया, पापा को भी सुबह टहलने जाने के लिए जगाने आ गयी ! अंतता ये चक्कर क्या है। घर के सभी लोग रानी को बड़ी आश्चर्य मुद्रा में देखे जा रहे थे। 


जब सब के सब्र का बांध टूट गया तो उसने बड़े ही सहज रूप में कहा, "वहाँ ससुराल में थोड़ी कोई होगा मेरे आगे पीछे घूमने के लिये"। विवाह पक्की हुए अभी 3 महीने ही हुए थे और अचानक से रानी की समझ में इतना परिवर्तन और बेटी को बड़ी होते देख सब प्रसन्न भी थे और दुखी भी।


विवाह हुई रानी अपने नए घर आयी। सुबह नींद नही खुलेगी यह सोचकर वह पूरी रात नहीं सोई। शीघ्र नहा धोकर, पूजा कर अपनी पहली रसोई की तैयारी की सोचने लगी। क्या बनाऊ जो सबको अच्छा लगे, बच्चो को भी पसंद आये ! इस सोच विचार में लगी थी कि एक सहज मीठी सी स्वर आयी, रानी  तुम इतना शीघ्र क्यों उठ गई बेटा ?"


जैसे उन स्वरों में आनंद था! रानी ने जैसे ही पीछे मुड़ के देखा तो "सासु माँ" हाथ में विवाह के हिसाब के कुछ पन्ने लिए खड़ी थी। विवाह की दौड़ भाग में कितना परेशान हो गयी होगी, फिर घरवालो का स्मरण भी

आ रही होगी, ऐसे में यदि नींद पूरी नही करोगी तो अपनी स्वास्थ्य को क्षति पहुंचा लोगी"। सासु माँ ने हिसाब के पन्नो को मेज पर रखते हुए रानी से कहा।


अरें ये क्या !  ये तो बिल्कुल वैसी नही है जैसा मैंने सोचा। मैं तो पिछले कितने महीनों से शीघ्र उठने का अभ्यास कर रही थी और यहाँ तो कुछ और ही हो गया। मेरी पूरी पढ़ाई घर से दूर रह कर हुई थी, छात्रावास में जिस कारण मैं घर के कामों में उतनी कुशल नही थी जितना एक नई बहू को होना चाहये। 


पहली रसोई में एक रोटी बनाए जाने की परंपरा है हमारे यहां, आटा अधिक नम हो जाने की वजह से रोटी उतनी गोल नही बनी जितनी बननी चाहये। मन में बहुत डर लग रहा था बहुत बुरा भी लग रहा था। मन ही मन माँ को कोस रही थी क्यों मुझे डांट कर अच्छे से घर का काम नही सिखाया।


सुबह की परंपरा जैसे तैसे हुई। सब लोगो के लिए खाना बनाने की तैयारी हो रही थी। मैं रसोई में खड़ी समझने का प्रयास कर रही थी कि कुछ प्रयास मैं भी करूँ खाना बनाने का। तभी वही स्वर वापस आयी। रानी देखो आज मैं क्या बना रही हूँ ? मटर पनीर की सब्ज़ी, गाजर का हलवा और लच्छे पराठे।"


फिर ये क्या ! ये सब तो मेरी पसंद के सामान है, मेरी पसंदीदा भोजन। समझ में नही आ रहा था कोई सपने में तो नहीं कह रहा। नहीं नहीं ये तो सासू माँ ही बोल रही है। मेरे थोड़े सहमे, थोड़े डरे, थोड़े विस्मयी भावो को संभवतः भाँप लिया था उन्होंने !


वो मेरे पास आई और मुझे बिठाकर बोली - "विवाह लड़की की परीक्षा नहीं है रानी कदम कदम पर उसे किसी परीक्षा में पास होने पर अंक दिए जाएं। तुम्हारी विवाह केवल मेरे बेटे से नहीं हुई है। जितनी तुम्हारी प्रसन्नियों की ज़िम्मेदारी मेरे बेटे की है उतनी हमारी भी। मैं तुम्हे इस घर में केवल काम करवाने, तुम्हारी कार्यक्षमता को जांचने, तुम्हारी स्वतंत्रता को छीनने, या तुम हमारे लिए क्या क्या बलिदान कर सकती हो ,ये जानने के लिए नही लायी हूँ। 


मुझे तो सिर्फ एक मित्र, एक अच्छा साथी चाहिये जो मैं कभी अस्वस्थ पड़ जाऊ तो मुझे संभाल सके। धागे का वो हिस्सा चाहये जो घर के सारे मोतियों को प्यार और स्नेह की एक माला में पिरोये रखे। मैं नही मानती की बहू को सुबह शीघ्र उठकर नाहा धोकर पूजा कर लेनी चाहिये या उसे खाना बनाने में दक्षता हासिल होनी चाहये। यदि उसे कुछ आना चाहिए तो वो है "प्यार करना" परिवार से। 


छोटे छोटे बदलाव से और सबसे आवश्यक स्वम से हां ! बिल्कुल ठीक सुना तुमने, जब तक तुम स्वयं से प्यार नही करोगे तुम प्रसन्न नही रह पाओगी। ये विवाह तुम्हारे सपनो की न्योछावर करना नही है बेटा, तुम्हारे सपनो की उड़ान है। हम सब तुम्हारे साथ है ! हर कदम, हर पल, हर समय। और आज हमारे परिवार के नए सदस्य का स्वागत हम उसकी बनाई हुई पसंदीदा खाने से करके कर रहे हैं।" 


आज रानी की विवाह को 1 साल हो गए है, लेकिन उसने अपनी विवाह से जो सबसे अनमोल संबंध कमाया था वो था "माँ" हां वही सासु माँ अब माँ बन गयी थी। बहुत उतार चढ़ाव देखे थे रानी ने अपने जीवन में, कभी गर्भपात, कभी पैसो की कमी, कभी पति से झगड़ा, कभी बच्चो की टेंशन, लेकिन आज भी मन से जुड़ीं है वो अपनी सास से। हर पल वो यही कामना करती है की जब उसका बेटा भी बहु लेकर घर आये तो वो उसकी सास जैसी सास बन सके, या उनका अंश ही सही।


समाज के कुछ हिस्सों में एक भी सास माँ बनने में विश्वास नही रखती पर मेरी सभी से ये निवेदन है, जब हम किसी लड़की को अपने घर में लाये तो उसको उसकी कमियों के साथ स्वीकार करें, अपने बच्चों को त्रुटियों पर डांटकर भी तो फिर से उन्हें पुचकार लेते हैं ना तो वही हम उनके साथ भी करें।```

यदि आप इस कहानी से सहमत है परन्तु आपको संभवतः ऐसी सासु मां नही मिल पाई, तो क्या आप अपनी बहुओं को ऐसी सासू मां बन कर दिखा पाएंगी।

( संकलन आभार गीताराम त्यागी जी )

प्रेषक-

#दिनेश बरेजा

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