🔆💥 जय श्री राम 🔆💥
कुत्ते का स्वभाव
एक गरीब साधुबाबा की झोपड़ी पर…रात को जोरों की वर्षा हो रही थी। सज्जन था, छोटी सी झोपड़ी थी स्वयं और उसकी पत्नी, दोनों सोए थे। आधीरात किसी ने द्वार पर दस्तक दी।
उन सज्जन साधुबाबा ने अपनी पत्नी से कहा - थोड़ा उठ! द्वार तो खोल दे। पत्नी द्वार के निकट सो रही थी। पत्नी ने कहा - इस आधी रात में जगह कहाँ है? कोई यदि शरण माँगेगा तो तुम मना न कर सकोगे?
वर्षा जोर की हो रही है। कोई शरण माँगने के लिए
ही द्वार आया होगा न!!जगह कहाँ है?
उस सज्जन साधुबाबा ने कहा - जगह? दो के सोने के लायक तो काफी है, तीन के बैठने के लायक काफी हो जाएगी। तू बस दरवाजा खोल!! लेकिन द्वार आए व्यक्ति को लौटा तो नहीं लौटाना है।
दरवाजा खोला, कोई शरण ही माँग रहा था। भटक गया था और वर्षा मूसलाधार थी। वह अंदर आ गया। तीनों बैठकर बातचीत करने लगे। सोने लायक तो जगह न थी।
थोड़ी देर उपरांत किसी और व्यक्ति ने दस्तक दी पुनः साधुबाबा ने अपनी पत्नी से कहा - दरवाजा खोल दो !!
पत्नी ने कहा - अब करोगे क्या? जगह कहाँ है? यदि किसी ने शरण माँगी तो?
उस सज्जन साधुबाबा ने कहा - हम सनातनी हिन्दू हैं, शरणागत का स्वागत तथा सुरक्षा हमारा धर्म है। अभी बैठने लायक जगह है पुनः खड़े रहेंगे मगर दरवाजा खोल!! अवश्य कोई मजबूर है।
पुनः दरवाजा खोला। वह अनभिज्ञ भी आ गया। अब वे खड़े होकर बातचीत करने लगे। इतना छोटा झोपड़ा !! और खड़े हुए चार लोग!!
और तब अंततः एक कुत्ते ने आकर जोर से आवाज की। दरवाजे को हिलाया। साधुबाबा ने पुनः कहा - दरवाजा खोलो।
पत्नी ने दरवाजा खोलकर झाँका और कहा - अब अनुचित होगा!!यह कुत्ता है। व्यक्ति भी नहीं, जानवर है !!
साधुबाबा बहुत सज्जन थे बोले - हमने पहले भी आदमियों के कारण दरवाजा नहीं खोला था, अपने कोमल हृदय तथा हिन्दू संस्कारों की सीख के कारण खोला था!! हमारे लिए कुत्ते और व्यक्ति दोनों जीवात्मा है, आत्मा में क्या फर्क?
हम वसुधैव कुटुम्बकम में विश्वास करते हैं। हमने मदद के लिए दरवाजा खोला था। उसने भी आवाज दी है। उसने भी द्वार हिलाया है। जंगली जानवर है तो क्या, उसने अपना काम पूरा कर दिया, अब हमें अपना काम करना है। दरवाजा खोलो!!
उनकी पत्नी ने कहा - अब तो खड़े होने की भी जगह नहीं है!!
उसने कहा - अभी हम थोड़ा आराम से खड़े हैं, पुनः थोड़े सटकर खड़े होंगे
और एक बात स्मरण रख!! यह कोई अमीर का महल नहीं है कि जिसमें जगह की कमी हो!! यह गरीब का झोपड़ा है, इसमें अत्यंत जगह है!! जगह महलों में और झोपड़ों में नहीं होती, जगह दिलों में होती है!
अक्सर आप पाएँगे कि गरीब कभी कंजूस नहीं होता! उसका दिल बहुत बड़ा होता है!! कंजूस होने योग्य उसके पास कुछ है ही नहीं। पकड़े तो पकड़े क्या? जैसे जैसे व्यक्ति अमीर होता है, वैसे कंजूस होने लगता है, उसमें मोह बढ़ता है, लोभ बढ़ता है
दोनो अनभिज्ञ तथा साधु की पत्नी अनुरोध करते रहे- "ये जानवर है, इससे सामाजिक नियम, सज्जनता तथा मानवीय गुणों की अपेक्षा करना सही नही,जगह नही है"
परन्तु सज्जनता की मूरत साधुबाबा के तर्क के आगे उनकी एक न चली। दोनो अनभिज्ञ भी अब चुप हो गए कि कहीं उनपर स्वार्थी होने का लांछन न लग जाये, की स्वयं तो आ गए परन्तु कुत्ते के लिए ज्ञान दे रहे हैं।
सटकर खड़े रहकर कुत्ते को भी स्थान दे दिया गया परन्तु जानवर तो प्रकृति से जानवर ही रहेगा। अचानक बारिश से बचने के लिये साधु की कुटिया में आयी किसी मधुमक्खी ने कुत्ते के मुँह पर काट लिया।
कुत्ता भड़क गया और क्रोध में सज्जन साधुबाबा के साथ सभीको पैरों में काट काटकर जख्मी कर दिया, सभी जान बचाकर झोंपड़े से बाहर भाग गए और वो उन सब पर जोर जोर भोंकता रहा। मानो कह रहा हो कि "क्या तुम्हें पता नही की- कुत्ते की जात किसे कहते हैं"
मेरा दिनेश बरेजा का कम शब्दों में संकेत समझिए कि अवश्यतमंद को अपनी क्षमता अनुसार शरण दीजिए। दिल बड़ा रखकर अपने दिल में औरों के लिए जगह अवश्य रखिये परन्तु किसी अधर्मी सुअर को सज्जन पुरुष मानना या जंगली जानवर से मानवीय व्यवहार की अपेक्षा करना सदैव हानिकारक है-दिनेश बरेजा
प्रेषक-
दिनेश बरेजा
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