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गुरुवार, 16 मार्च 2023

“ बुजुर्गों का मन ” कहानी ~ नमः वार्ता

  🔆💥 जय श्री राम 🔆💥

 “ बुजुर्गों का मन ” कहानी ~ नमः वार्ता


   मां जी बहुत तेज वर्षा हो रही है आप खिड़की बंद कर दीजिए वर्षा की बूंदे आपको बीमार कर सकती हैं। प्रिशा अपनी सास मिथलेश जी से बोली।


नहीं बहू !! बूंदे यहां नहीं आ रही। तुम्हारे बाबूजी को बहुत पसंद थी वर्षा। घंटो बैठे रहते थे खिड़की पर हम दोनों। साथ में चलता था पकोड़े और चाय का दौर। सच क्या दिन थे वो भी अब तो ना उनका साथ रहा ना पकोड़े झेलने वाला शरीर! मिथलेश जी ठंडी आह भरकर बोली।


प्रिशा ने पकोडों की बात होने पर मिथलेश जी की आंखों में जो चमक देखी उससे प्रिशा की आंख भर आई। सच में बुढ़ापा ऐसा होता है जब जीभ तो बच्चों की तरह मचलती पर शरीर कुछ भी ऐसा वैसा खाने की अनुमति नहीं देता है। मां जी को शूगर और ब्लड प्रेशर की बीमारी के कारण चिकित्सक ने तला हुआ और मसालेदार खाना मना किया है।


मिथलेश जी अभी दो महीने पहले ही पति के मरने के बाद गांव का घर छोड़ बेटे बहु के पास आई है। यहां बहू प्रिशा बेटा तरुण पोता पोती सब हैं। बेटे बहू ने बाबूजी के ना रहने पर उन्हें अकेले नहीं रहने दिया तो मजबूरी में उन्हें शहर आना पड़ा था हालाकि उनके मन में शंका थी बहू कैसा व्यवहार करेगी पर बहू प्रिशा बहुत ध्यान रखती है सास का। पोते-पोती भी आगे पीछे घूमते रहते तो मिथलेश जी का मन लगा रहता है। पर इस उम्र में जीवनसाथी की कमी कोई पूरी नहीं कर

सकता क्योंकि इस उम्र में रिश्ता शरीर से नहीं दिल से बंधा होता है।


"तरुण !! मांजी बहुत उदास हो जाती हैं कभी-कभी मुझे समझ में नहीं आता उन्हें कैसे खुश रखूं!" प्रिशा अपने पति से बोली।


"प्रिशा !! अभी बाबूजी को गए ज्यादा वक़्त नहीं हुआ है, उन्हें संभलने का मौका दो धीरे धीरे वो यहां के माहौल में रम जाएंगी! तरुण बोला।


प्रिशा हर संभव कोशिश करती मांजी को खुश रखने की।


मांजी चलिए पार्क चलते हैं! एक दिन प्रिशा बोली।


अरे नहीं बेटा !! मैं क्या करूंगी वहां जाओ तुम घूम आओ! मिथलेश जी बोली।


मांजी चलिए तो सही !! मिथलेश जी का हाथ पकड़ती हुई प्रिशा बोली।


पार्क में जा मिथलेश जी एक बेंच पर बैठ गई और बच्चों को खेलते देखने लगी।


दादी आप भी खेलो ना हमारे साथ! बैडमिंटन खेलती उनकी पोती पलक बोली।


अरे मैं कहां ये खेल सकती! मिथलेश जी बोली जबकि उनकी आंखों की चमक बता रही थी वो खेलना चाहती हैं पर माहौल को देख झिझक रही।


आओ ना मांजी !! हम दोनों खेलते हैं मुझे भी नहीं आता ये खेल इसलिए बच्चों के साथ तो खेल नहीं सकती! प्रिशा जानबूझ के झूठ बोल गई।


सास बहू ने खेलना शुरू किया। प्रिशा जान बूझ कर मांजी से हारने लगी जिससे मांजी खुश हो गई।


अरे बहू तुझमें तो जान ही नहीं है एक चिड़िया ( शटल कॉक) नहीं उछाल सकती! मांजी हंसते हुए बोली।


मांजी मुझे क्या पता था आपको इतना अच्छा खेलना आता है! प्रिशा मुंह बना बोली।


अच्छा अब घर चलो मैं थक गई और लगता है वर्षा भी होने वाली है! मिथलेश जी बोली।सबके घर पहुंचते पहुंचते वर्षा शुरू हो गई। तभी तरुण भी आ गए ।


प्रिशा !! आज तो गरम चाय और पकोड़े हो जाएं देखो कितनी अच्छी वर्षा है! तरुण बोले। पकोड़े का नाम सुन मिथलेश जी की आंखों में एक चमक आई पर तभी बूझ भी गई। प्रिशा जानती थी मांजी को एक - दो पकोड़ो से मजा नहीं आएगा और अधिक उनके लिए विष हैं।


लीजिए तरुण आपके पकोड़े और चाय और मांजी ये आपके! प्रिशा प्लेट बढ़ाते हुए बोली।


यह क्या है प्रिशा !! जो मां को इतने सारे पकोड़े दे रही हो स्मरण नहीं चिकित्सक ने कहा था तला इनके लिए विष है! तरुण भड़क कर बोले।


मांजी !! आप खाइए पकोड़े वरना ठंडे हो जाएंगे और तरुण मैं मां की शत्रु नहीं हूं ये पकोड़े मैने एयर फ्रायर में बनाए है बिन तेल के जो मैने कल ही ऑर्डर कर मंगवाया था क्योंकि मुझे पता है मांजी को पकोड़ो का कितना रुचि है पर वो अपने रुचि मारे हुए हैं! प्रिशा बोली।


तरुण प्रिशा को प्रशंसा की दृष्टि से देखने लगा।मांजी पकोड़े खाते हुए नम आंखों से बहू को देख रही थी। उनकी आंखों में खुशी के आंसू थे और दिल में बहू के लिए ढेरों दुआएं । 


बात मामूली से पकोड़ो की थी पर बहू ने सास के मन को जाना ये मामूली बात नहीं थी। आज मांजी के मुख पर तृप्ति देख प्रिशा को बहुत अच्छा लग रहा था-संकलित``` 


वृद्धजनों की सेवा के संबंध में यह श्लोक महत्वपूर्ण है : अभिवादनशीलस्य नित्यं वृद्धोपसेविन: चत्वारि तस्य वर्धन्ते आयुर्विद्या यशो बलम्॥ वृद्धजनों को सर्वदा अभिवादन अर्थात सादर प्रणाम, नमस्कार, चरण स्पर्श तथा उनकी नित्य सेवा करने वाले मनुष्य की आयु, विद्या, यश और बल-ये चारों बढ़ते हैं। जीवन में वृद्धों की सेवा को ईश्वर की पूजा के समतुल्य माना गया हैं. जो व्यक्ति अपना भगवान वृद्ध माता पिता को मानकर उनका सम्मान करता है उन्हें कष्ट का सामना नहीं करना पड़ता है. बुजुर्गों के आशीष वचनों में सफलता की शुभेच्छा रसी बची होती हैं।


प्रेषक-

#दिनेश बरेजा


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