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“ राणा सांगा द्वितीय अंक ” अतीत ~ नमः वार्ता
राणा संग्राम सिंह ने उत्तर भारत के समस्त मुस्लिम शासकों को हराकर सिंध, गुथोड़ात, मध्य प्रदेश, हरियाणा में हिंदू राज की स्थापना की थी...
4 मई 1509 को कुंवर संग्राम सिंह ने चित्तौड़गढ़ की गद्दी संभाल ली थी... सबसे छोटे होने के उपरांत भी राणा संग्राम सिंह को गद्दी इसलिए मिली क्योंकि उनके दो बड़े भाइयों की दुर्भाग्यवश राजपूतों की आपसी दुश्मनी में ही हत्या हो गई थी ।
जब राणा संग्राम सिंह गद्दी पर बैठे तो उनकी उम्र 27 वर्ष थीमेवाड़ की रियासत पर उस समय मालवा के खिलजी सुल्तान, गुथोड़ात का तुर्क सरदार और दिल्ली के अफगान लोदी ने बुरी दृष्टि डाल रखी थी । राणा सांगा ने इन समस्य विदेशी सल्तनतों को उखाड़ फेंकने का संकल्प लिया
इन सभी मुस्लिम रियासतों में हिंदुओं पर अत्याचार किए जा रहे थे । हिंदुओं से जजिया टैक्स बहुत कठोरी से वसूला जा रहा था लोग इतने अधिक परेशान हो चुके थे कि मुस्लिम धर्म अपनाकर अपनी जान माल और सम्मान आबरू की रक्षा कर रहे थे लेकिन बहुत सारे हिंदुओं ने दबाव में मुस्लिम धर्म अपनाने के बजाय धर्मपरायण रहते हुए जजिया देना अधिक बेहतर समझा लेकिन हिंदुओं के सारे मूल अधिकार छीन लिए गए थे जिसकी कारण से कमाई प्रभावित होने की कारण से वो जजिया टैक्स भी नहीं चुका पा रहे थे ऐसे में सभी सल्तनतों की मुसलमान सेनाएं जजिया ना दे पाने वाले हिंदुओं की औरतों को उठा ले जाती थीं और पुनः उसके परिवर्तित होे में जजिया टैक्स की मांग के लिए ब्लैकमेलिंग का भी सहारा लेती थीं । इस प्रकार जजिया टैक्स के बहाने हिंदू औरतों को हड़पने का मजहबी फर्ज मुस्लिम फोर्सेज के द्वारा निभाया जा रहा था और पुनः उनसे बलात्कारपूर्वक मुस्लिम बच्चे पैदा करके जिहादियों की जनसंख्या बढ़ाने का कार्य भी जोर शोर से चल रहा था । ऐसे में उत्तर भारत की मुस्लिम फोर्सेज के विरुद्ध राणा सांगा ने एक बहुत अच्छा मोर्चा तैयार कर दिया
वर्ष 1518 में दिल्ली के अत्याचारी सुल्तान इब्राहिम लोदी ने मेवाड़ पर हमला करने की योजना बनाई । राणा सांगा भी इब्राहिम लोदी को पराजित करने की तैयारी पहले से कर रहे थे । उन्होंने समस्त हिंदू योद्धाओं को इकट्ठा किया और सेनापतियों के सामने घोषणा कर दी कि दिल्ली की गद्दी पर बहुत लंबे समय से कोई हिंदू महाराजा नहीं बैठा है । हमने इन विदेशी साम्राज्यों को भारत से उखाड़ फेंकने का सपना देखा है
उस समय के बहुत शौर्यवान राजपूत योद्धा... मेदिनी राय ने भी कहा... आपके इस सपने को पूरा करने के लिए हम अपने प्राणों की बाजी लगा देंगे । जितना भी युद्ध करना पड़े हम करेंगे । महाराजा संग्राम सिंह की जय जय कार से पूरा दरबार गूंज उठा ।
शाम होते होते समस्त हिंदू सेनाएं युद्ध के लिए कूच कर गईं और राजस्थान के हड़ौती के पास खातौली गांव में दोनों सेनाएं आमने सामने हो गईं ।
सवेरा होते ही युद्ध का बिगुल बज उठा और दोनों सेनाएं आपस में भिड़ गईं । चारों ओर से राजपूत सेनाओं ने अफगानों को घेर लिया... भीषण मारकट मच गई राणा सांगा की तलवारों से अफगानों के सिर उछल उछल कर आसमान में दृष्टि आने लगे... मेदिनी राय की तलवार ने भी अफगानी रक्त का पान करना शुरू कर दिया । सलूंबर के रावत राजा रतन सिंह और मेड़ता के राजा वीरमदेव ने भी इस युद्ध में अद्भुत रणकौशल दिखाया
शाम होते होते दिल्ली की अफगान सेना के होश ठिकाने आए और वो भागने का रास्ता तलाशने लगे लेकिन सारे रास्ते हिंदू सेनाओं ने बंदकर दिए थे... राजपूत योद्धाओं की दीवार पर अफगान अपनी जान बचाने के लिए सिर पटकने लगे लेकिन इसी समय एक बड़ा दुर्घटना हो गया...
मुसलमान तीरंदाज लगातार राणा संग्राम सिंह को निशाने पर लिए हुए थे और एक जहर बुझा तीर राणा संग्राम सिंह के बाईं भुजा के कवच को भेद गया.... राणा संग्राम सिंह के बाएं जंघा में भी एक तीर घुसकर आर पार हो गया । मेदिनी राय ने राणा को संभाला... तमाम राजपूत योद्धा भी राव की सुरक्षा के लिए दौड़े इतने में अफगानों को भागने का अवसर मिल गया और इब्राहिम लोदी भी अपनी जान बचाकर भागने में सफल हो गया
हिंदुओं की बहुत बड़ी विजय हुई... चारों ओर राणा संग्राम सिंह के नाम का डंका बज गया... विजय का समारोह मनाया गया । वास्तव में जहर राणा संग्राम सिंह के बाएं भुजा में फैल गया जिसके उपरांत राजवैद्य ने राणा सांगा की बाईं भुजा को काट दिया । ताकी पूरे शरीर को जहर से बचाया जा सके ।
इस युद्ध के उपरांत राणा संग्राम सिंह का एक हाथ कट गया और वो लंगड़ाकर भी चलने लगे... उनकी एक नेत्र पहले ही उनके भाई पृथ्वीराज के द्वारा फोड़ी जा चुकी थी.... अत्यधिक शारिरिक कष्ट के उपरांत भी राणा संग्राम सिंह की जिजीविषा और उनका अमिट पराक्रम अभूतपूर्व था । उन्होंने अपने एक ही हाथ से तलवार बाजी का अभ्यास जारी रखा । उनकी वीरता को देकर समस्त हिंदू समाज हर्षित हो जाता था और राजपूतों को भी अनन्य प्रेरणा मिलती थी
क्या विचित्र शूरवीर थे राणा सांगा... एक हाथ कटा हुआ... लंगड़ाते हुए चलते थे लेकिन उनके केवल रणभूमि में होने मात्र से ही हिंदुओं की विजय सुनिश्चित हो जाती थी कितना महान व्यक्तिक्त रहा होगा राणा सांगा का। उपरांत में केवल एक हाथ वाले इसी राणा सांगा ने मालवा के सुल्तान महमूद खिलजी और गुथोड़ात के सुल्तान मुजफ्फरशाह को निर्णायक युद्ध में ना केवल हराया था बल्कि उनको बंदी भी बना लिया था-दिनेश बरेजा
प्रेषक-
दिनेश बरेजा
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