अनुवादक

गुरुवार, 30 दिसंबर 2021

हमारे विचार राष्ट्र, धर्म व जाति.....

“किसी दोस्त ने कहा कि "राजपूतों" में गर्व बहुत है... मैंने कहा कि गर्व क्यों ना, परिवार के परिवार, पीढ़ियों दर पीढ़ियों खप गई, देश और हिंदुत्व के रक्षा के लिए !! 1000 सालों से ज्यादा की संघर्ष गाथा है, गर्व होना लाजमी है।।” ~गौरव गोयल


गौरव गोयल जी ने राजपूतों के संदर्भ में अपने मित्र को ट्वीटर के माध्यम से उक्त शब्दो में राजपूतों के लिए अपने विचार प्रस्तुत किए ।किंतु उनके जिस मित्र ने उनसे कहा है कि ‘राजपूतों में गर्व बहुत है’ उनतक यदि हमारी बात पहुंचे तो उनसे पूछना चाहूंगा कि किसी भी व्यक्ति जिसके पूर्वजों ने राष्ट्र के लिए प्राण तक बलिदान किए है उसे अपने जाति धर्म व राष्ट्र पर गर्व क्यों न हो?

यदि वामपंथी राष्ट्रद्रोहियों की विचारधारा से प्रभावित होकर उनका उत्तर है कि जाति कुछ नही होती जाति पर गर्व नही करना चाहिए तो उनके लिए आज लिख रहा हूं कि हमारी सनातन संस्कृति में ब्राम्हण, क्षत्रीय, वैश्य, शुद्र  चार वर्ण में विभाजित समाज जिसमे हमारे विचार अनुसार गर्व सबको होना चाहिए अपनी अपनी जाति धर्म व राष्ट्र पर, प्राचीन विश्व गुरु भारत बनाने में भी सभी का सहयोग से था। 

जहां ब्राम्हण वर्ग ने धर्म, ज्ञानविज्ञान व राष्ट्रनिर्माण प्रगति के लिए धन संपदा,सुविधाएं तक त्याग दी, वही क्षत्रियों ने अद्भुत नेतृत्व क्षमता, वीरता के साथ राष्ट्र व स्वाभिमान की सेवा व रक्षार्थ हेतु अपने व परिवार के प्राणों तक का त्याग करना पड़ा,जिसमे उनके कई वंश तक मिट गए। साथ ही उत्पादक (शुद्र) वर्ग ने अपनी श्रम क्षमता से विभिन्न क्षेत्रों में विभिन्न उपयोगी वस्तुओ का निर्माण किया, जिसे विश्व....स्तर तक पहुंचाकर वैश्य वर्ग अपनी व्यापारिक बुद्धि से विश्व की सर्वोच्च अर्थव्यवस्था अपने भारत की बनाई थी। 


किंतु दुखद है कि आज लोकतांत्रिक नेतृत्व ही एक दूसरे वर्गो को कही पार्टी, जाति, कही आरक्षण विशेषाधिकार, कहीं कुंठा व घृणा भरकर, कही कही आधारहीन तथ्यों का सहारा लेकर एक दूसरे से लड़ा रहा है और लोग भी अपने उत्तरदायित्व कर्तव्यों से विमुख होकर स्वार्थवश लड़ने में व्यस्त है। ~ विनीत प्रताप सिंह सीतूभदौरिया ( @VPSINGHSITU )

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें