अनुवादक

गुरुवार, 18 जून 2020

भारत के नवोत्थान में भाग दे।

●भारत के नवोत्थान के शुभ छठवें वर्ष की शुभकामनाएं●
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हमने अपने बचपन में अपने बड़े-बुजुर्गों को चूहेदानी का प्रयोग करते जरूर देखा होगा. 
रात को में घी लगी रोटी का एक टुकड़ा चूहेदानी में रखकर हम लोग सो जाते थे. 
रात को लगभग 11-12 बजे ख़ट की आवाज़ आती तो हम समझ जाते थे कि कोई चूहा फंसा है पर चूँकि उस ज़माने में बिजली उतनी आती नहीं थी तो हमलोग सुबह तक प्रतीक्षा करते थे. 
सुबह उठ कर जब हम चूहेदानी को देखते थे तो उसके कोने में हमें एक चूहा फंसा हुआ मिलता था. 

हम हिन्दू चूँकि जीव-हत्या से परहेज करतें हैं इसलिए हमारे बुजुर्ग उस चूहेदानी को उठाकर घर से दूर किसी नाले के पास ले जाते थे और वहां जाकर उसका गेट खोल देते थे ताकि वो चूहा वहां से निकल कर भाग जाए. 
मगर हमें ये देखकर बड़ा ताज्जुब होता था कि गेट खोले जाने के बाबजूद भी वो चूहा वहां से भागता नहीं था बल्कि वहीं कोने में दुबका रहता था. 
तब हमारे बुजुर्ग एक लकड़ी लेकर उससे उस चूहे को धीरे से मारते थे और भाग-भाग की आवाज़ लगाते थे पर तब भी वो चूहा अपनी जगह से टस से मस नहीं होता था. 
बार-बार उसे लकड़ी से मारने और शोर करने के बाद वो चूहा निकल कर भागता था.

जब तक अक्ल कम थी हमेशा सोचता था कि गेट खुला होने के बाद भी ये चूहा भागता क्यों नहीं ? 
पर बाद में जब अक्ल हुई तो समझ आया कि रात के 11-12 बजे चूहेदानी में कैद हुए चूहे ने सारी रात उस कैद से बाहर निकलने की कोशिश की होगी, हर दिशा में जाकर प्रयास किया होगा पर जब उसे ये एहसास हो गया कि अब इस कैद से मुक्ति का कोई रास्ता नहीं है तो थक-हार कर उसने अपने दिलो-दिमाग को ये समझा दिया कि अब मेरा भविष्य इस पिंजरे के अंदर ही है, इसी कैद में मुझे जीना और मरना है. इसलिए सुबह जब चूहेदानी का गेट खोल भी दिया गया तो भी उस चूहे का माइंडसेट यही बना हुआ था कि मैं तो कैद में हूँ, मैं तो गुलाम हूँ, मैं बाहर निकल ही नहीं सकता. 
इस माइंडसेट ने उसे ऐसा बना दिया था कि सामने खुला गेट और मुक्ति का रास्ता दिखते हुए भी उसे नहीं दिख रहा था.

●अपना हिन्दू समाज भी ऐसा ही था, 800 साल की गुलामी में हमने आजादी के लिए बहुत बार प्रयास किये पर सफलता नहीं मिली तो हमारा माइंडसेट ऐसा बन गया कि हम तो गुलामी करने के लिए ही पैदा हुए हैं, हम आजाद हो ही नहीं सकते.

इसलिए मुग़ल गये तो हमने अंग्रेजों की गुलामी शुरू कर दी और जब अंग्रेज गये, यानि गेट खुला, तो भी हमें आजादी का रास्ता नज़र नहीं आया, हम एक वंश की गुलामी में लग गये.
उस वंश की गुलामी करते-करते इतने गिर गये कि हममें गुलामी करने को लेकर भी प्रतिस्पर्धा होने लगी कि कौन सबसे बेहतर गुलामी कर सकता है. 

●एक खानदान की गुलामी करने में हम इतने गिरे, कि हमारे अपने नेताओं ने ही हिन्दू जाति को आतंकवाद से जोड़ दिया। 
यानि जिस बात को कहने की हिम्मत आज तक पाकिस्तान ने भी नहीं की, वो बात गुलाम मानसिकता से ग्रस्त, हमारे अपने लोगों ने कही। 
हम चूहे वाली माइंडसेट में थे, इसलिए समुचित प्रतिकार नहीं कर सके तो उनका हौसला और बढ़ा। 

फिर श्रीराम और श्रीकृष्ण को 'मिथक चरित्र' घोषित कर, वो राम-सेतु जैसे हमारे आस्था-केन्द्रों को तोड़ने की ओर बढ़े। 
फिर हमारे भाई-बांधवों का हक छीनकर मजहबी आधार पर आरक्षण की घोषणाएँ करने लगे. 

फिर एक दिन ये घोषणा कर दी कि जिस देश को तुम्हारे पूर्वजों ने अपने खून से सींचा है, उसके संसाधनों पर पहला हक तुम्हारा नहीं है। 

हम अब भी उस चूहे वाली माइंडसेट में थे, इसलिए फिर एक दिन उन्होंने कहा कि हम "लक्षित हिंसा बिल" लायेंगे और साबित करेंगे कि तुम बहुसंख्यक हिन्दू जुल्मी हो, दंगाई हो, देश के मासूम अल्पसंख्यकों पर अत्याचार करने वाले हो, इसलिए तुम्हारे लिए एक सख्त सजा का प्रावधान रखा जाएगा।

●इस अंतहीन काली रात के बाद जब सुबह हो गई थी, लकड़ी लेकर हमें जगाने वाला एक आदमी आ चुका था, जो हमें बता रहा था कि अब बहुत हो चुका कैद से निकलो, गेट खुला हुआ है। 
उस आदमी ने पूरे देश में घूम-घूम कर हमें गुलामी वाले लंबी निद्रा से जगाया, हमारे सामने खुला दरवाज़ा दिखाया....हम जागने लगे और 16 मई, 2014 को गुलामी वाले कैद से निकल गये। 

आज से ठीक 5 साल पहले, उस जगाने वाले के हाथों में अपना और अपने देश का भविष्य सौंप दिया और प्रण किया कि फिर से उस गुलामी वाले माइंडसेट में नहीं जाना। 
शुक्र है कि हम आज जाग्रत हैं और इसका ही नतीजा है कि मोदी जी दूसरी बार अधिक प्रबल बहुमत से जीत कर आए हैं।

हमें जगाने वाले ने हममें स्वाभिमान भाव पुनः जगाया. चिरकाल की गुलामी की लंबी निद्रा से जगाया।हमें हमारे सांस्कृतिक गौरव की अनुभूति कराई.हमको दोस्त और दुश्मन, देशभक्त और गद्दारों की पहचान हो गई। 
हमने जाना कि विधाता ने हिन्दू को गुलामी करने के लिए नहीं, बल्कि विश्व को कल्याण का मार्ग दिखाने के लिए जन्म दिया है।
"स्वाभिमान जागरण के 'सुफल' को, अब हिन्दू समाज ने पहचान लिया है"।

                          @ॐ_नमः_वार्ताः!

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