🔆🔆🔆 जय श्री राम🔆🔆🔆 बलिदानी विपिन रावत जी का एक ह्रदयस्पर्शी कथा
हमारे सुरक्षा बलों, विद्रोहियों से लड़ने वाले हमारे जजों को यह बात उजागर करनी चाहिए !!
समुद्र तट पर चलते चलते एक वामपंथी लिबरल पत्रकार भारत के सबसे बड़े सैन्य अधिकारी का साक्षात्कार कर रहा था।
पत्रकार ने विपिन रावत जी से पूछा, "जब आप आतंकवादी के खिलाफ कार्रवाई करते हैं तो कुछ नागरिक भी मारे जाते हैं। यह प्राकृतिक न्याय नहीं है।"
जनरल ने उससे कहा, "मैं तुम्हें यह स्पष्ट कर दूंगा कि यह तुम्हारा ही न्याय है।"
पत्रकार ने उससे पूछा, "आप कैसे कह सकते हैं कि यह हमारे ही प्रकार का न्याय है?"
जनरल ने बातचीत में उसे समुद्र तट पर टहलने के लिए कहा और चालाकी से उसे चींटी के टीले पर खड़ा कर दिया।
दो तीन लाल चींटियाँ जैसे ही उस पत्रकार को काटती हैं वह क्रोध से जितनी चीटियाँ उसे दिखती हैं , उतनी ही चीटियों को मार डालता है, क्योंकि काटने वाली जगह जल रही थी।
जनरल साहेब मुस्कुरा रहे थे। पत्रकार ने उनसे पूछा, "आप मुस्कुरा क्यों रहे हो?"
जनरल विपिन रावत ने उससे पूछा, "कौन सी चींटियों ने तुम्हे काटा ?"
पत्रकार ने खीजते हुए कहा, "मैं कैसे कह सकता हूं कि कौन सी वाली चींटी थी? इनमें तो बहुत सारी हैं और सभी चींटियां एक जैसी दिखती हैं।"
जनरल ने कहा, "तुमने इतनी चींटियों को क्यों मारा? क्या उन सभी ने तुम्हें काटा?"
पत्रकार, "नहीं।"
जनरल, "तो पुनः तुम्हारा नैसर्गिक न्याय कहाँ है? तुम्हें केवल उन्हीं चीटियों को मारना चाहिए था जो तुम्हें काटती थीं।" पत्रकारअवाक था।
जनरल, "अब आप समझ गए हैं कि हमारी समस्या क्या है। हम स्वीकार करते हैं कि कुछ मात्रा में संपार्श्विक क्षति होती ही है। हम निर्दोष नागरिकों को मारना नहीं चाहते हैं लेकिन यह अपरिहार्य है। अगली बार ऐसी भयानक कहानियों की रिपोर्ट करने से पहले आपको इस चींटी प्रकरण पर विचार करना चाहिए"-संकलित
प्रेषक-
दिनेश बरेजा
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