🔆💥 जय श्री राम 🔆💥 ईश्वर का घर
एक बेसहारा बूढ़ा व्यक्ति एक दरगाह के सामने वाले फुटपाथ पर बैठा ठंड से बुरी प्रकार काँप रहा था। ठंड बढ रही थी, लगता था कि बारिश भी हो जायेगी।
उसके ठीक सामने मज़ार पे चादर चढ़ाने वालों की कतार लगी हुई थी। वह हरेक की ओर टकटकी लगा कर देख रहा था। उसे हर चादर में अपना जीवन दिखायी पड़ रहा था, संभवतः कोई उसे कुछ ओढने के लिये दे दे।
परंतु उसकी ओर किसी का भी ध्यान नहीं जा रहा था, जाये भी क्यों? हरेक को मजार पर चादर चढ़ाने की शीघ्र थी और अपने लिए कुछ न कुछ माँगने की भी।
उसी समय एक मजदूर उसी फूटपाथ से निकल रहा था। उसकी दृष्टि इस बूढ़े पर पड़ी। उसको काँपते देख कर वह समझ गया कि यदि आज की रात इसने ऐसे ही काटी तो यह इसकी अंतिम रात हो सकती है।
एक बार उसने लाईन में खड़े मजहब में अंधे लोगों की ओर देखा परन्तु उसे उम्मीद की कोई किरण दृष्टि नहीं आयी। वह उस बूढे के पास गया। उसने हाथ पकड़ कर उस बूढ़े को उठाया और अपने साथ चलने को कहा।
बूढ़ा हैरान था क्योंकि वह अकेला ही व्यक्ति था जो सड़क से निकलने के उपरांत भी दरगाह नहीं जा रहा था। बूढ़े ने आश्चर्य से पूछा- बेटा, क्या तुम्हें अल्लाह से कुछ नहीं माँगना है?
वह मुस्कुराया और बोला- माँगना तो है बहुत कुछ है ऊपर वाले से! पर तुम्हारा अल्लाह हम जैसों को देता नही है।
खैर जाने दो, तुम यह सब छोड़ो और मेरे साथ मेरे घर चलो। बूढ़ा नम आँखों से चुपचाप उसके साथ चल दिया। वह मजदूर बड़ा ही कोमल हृदय था।
अपनी झोपड़ी पर पहुँच कर उसने लकड़ियाँ जलायीं, भोजन बनाया और बूढ़े को भी भोजन कराया। रात भर सिकुड़ कर दोनों एक कम्बल में ही सो गए। सुबह तक बूढ़े की हालत काफी सम्भल चुकी थी।
बूढ़े ने उस झोपड़ी के अंदर, कोने में बने, छोटे से मंदिर में रखी भगवान की पुरानी मूर्ति की ओर देखकर,दोनो हाथ खोलकर फैलाये और कहा- वाह रे स्वयंभू! आजीवन आपको ढूंढता रहा आलीशान दरगाहों में है और आप वास्तव में यहां है!!-दिनेश बरेजा
प्रेषक-
दिनेश बरेजा
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