🔆💥 जय श्री राम 🔆💥
“देरी का कारण-विकल्प ” कहानी ~ नमः वार्ता
एक धनी व्यक्ति का बटुआ बाजार में गिर गया।उसे घर पहुंच कर इस बात का पता चला।बटुए में आवश्यक कागजों के अलावा कई हजार रुपये भी थे। उसी पल ही वो मंदिर गया और प्रार्थना करने लगा कि बटुआ मिलने पर प्रसाद चढ़ाउंगा,गरीबों को भोजन कराउंगा आदि।
संयोग से वो बटुआ एक बेरोजगार युवक को मिला।बटुए पर उसके मालिक का नाम लिखा था।इसलिए उस युवक ने सेठ के घर पहुंच कर बटुआ उन्हें दे दिया। सेठ ने तुरंत बटुआ
खोलकर देखा। उसमें सभी कागजात और रुपये यथावत थे।
सेठ ने प्रसन्न हो कर युवक की निष्ठा की प्रशंसा की और उसे उपहार कुछ रुपये देने चाहे, जिन्हें लेने से युवक ने मना कर दिया।इस पर सेठ ने कहा, अच्छा कल पुनः आना।
युवक दूसरे दिन आया तो सेठ ने उसकी अत्यंत खातिरदारी की। युवक चला गया। युवक के जाने के उपरांत सेठ अपनी इस चतुराई पर बहुत प्रसन्न था कि वह तो उस युवक को सौ रुपये देना चाहता था। पर युवक बिना कुछ लिए केवल खा -पी कर ही चला गया।
उधर युवक के मन में इन सब का कोई प्रभाव नहीं था, क्योंकि उसके मन में न कोई लालसा थी और न ही बटुआ लौटाने के अलावा और कोई विकल्प ही था।
सेठ बटुआ पाकर यह भूल गया कि उसने मंदिर में कुछ वचन भी दिए थे।सेठ ने अपनी इस चतुराई का अपने लेखाकार और सेठानी से जिक्र करते हुए कहा कि देखो वह युवक कितना मूर्ख निकला।
हजारों का माल बिना कुछ लिए ही दे गया। सेठानी ने कहा, तुम उल्टा सोच रहे हो। वह युवक निष्ठावान था। उसके पास तुम्हारा बटुआ लौटा देने के अलावा और कोई विकल्प नहीं था। उसने बिना खोले ही बटुआ लौटा दिया। वह चाहता तो सब कुछ अपने पास ही रख लेता। तुम क्या करते?
ईश्वर ने दोनों की परीक्षा ली। वो पास हो गया, तुम फेल। अवसर स्वयं तुम्हारे पास चल कर आया था, तुमने लालच के वश उसे लौटा दिया। अब अपनी गलती को सुधारो और जाओ उसे खोजो।
उसके पास सत्यनिष्ठा की पूंजी है, जो तुम्हारे पास नहीं है। उसे काम पर रख लो।
सेठ तुरत ही अपने कर्मचारियों के साथ उस युवक की तलाश में निकल पड़ा। कुछ दिनों उपरांत वह युवक किसी और सेठ के यहां काम करता मिला।
सेठ ने युवक की बहुत प्रशंसा की और बटुए वाली घटना सुनाई, तो उस सेठ ने बताया, उस दिन इसने मेरे सामने ही बटुआ उठाया था।
मैं तभी अपने गार्ड को लेकर इसके पीछे गया। देखा कि यह तुम्हारे घर जा रहा है। तुम्हारे दरवाजे पर खड़े हो कर मैंने सब कुछ देखा व सुना। और पुनः इसकी निष्ठा से प्रभावित होकर इसे अपने यहां लेखाकार रख लिया।
इसकी सत्यनिष्ठा से मैं पूरी प्रकार निश्चिंत हूं। बटुए वाला सेठ खाली हाथ लौट आया। पहले उसके पास कई विकल्प थे , उसने निर्णय लेने में देरी की उस ने एक विश्वास पात्र खो दिया। युवक के पास अपने सिद्धांत पर अटल रहने का नैतिक बल था।उसने बटुआ खोलने के विकल्प का प्रयोग ही नहीं किया। युवक को निष्ठा का पुरस्कार मिल गया दूसरे सेठ के पास निर्णय लेने की क्षमता थी। उसे एक उत्साही , सुयोग्य और निष्ठावान लेखाकार मिल गया।
जिन वस्तुओं के विकल्प होते हैं , उन्हीं में देरी होती है।विकल्पों पर विचार करना गलत नहीं है।लेकिन विकल्पों पर ही विचार करते रहना गलत है।हम ' यह या वह ' के चक्कर में फंसे रह जाते हैं।
किसी संत ने कहा है- विकल्पों में उलझकर निर्णय पर पहुंचने में बहुत देर लगाने से लक्ष्य की प्राप्ति कठिन हो जाती है।
प्रेषक-
दिनेश बरेजा
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