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बुधवार, 6 अक्टूबर 2021

हरउम्र हमसफ़र-माँ- एक कहानी सुंदर सी- दिनेश बरेजा द्वारा

 मेरी माँ ने अपनी पहली संतान को जन्म देते समय महसूस की होगी...जाने कितनी ही स्मृतियाँ आज के दिन जीवंत हो जाती होंगी.. अब जब मैं खुद एक माँ बन चुकी हूँ तो इस अनुपम खुशी से भली-भाँति परिचित हूँ । इन्हीं ख्यालों में खोए हुए मैंने नाश्ता, लंच वगैरह तैयार किया और खुद भी तैयार होने लगी । आज बच्चों के स्कूल में पैरेंट्स मीटिंग है... तो जल्दी निकलूंगी और फिर वहाँ से अपने आॅफिस निकल जाउंगी। 

    मैं और शशांक एक ही रूम में तैयार हो रहे थे। मेरी जगह कोई और पत्नी होती तो शायद वह उम्मीद करती, कि शशांक उसे बर्थडे विश करे और शशांक की जगह और कोई पति होता तो शायद वह अपनी पत्नी को बर्थडे विश करता भी। लेकिन शादी के इतने बरसों बाद भी मुझे शशांक से अब कोई उम्मीद रही नहीं... कारण, इतने बरसों में शशांक ने मुझे कभी बर्थडे विश किया ही नहीं..तो अब मन में न कोई उम्मीद रह गयी है और न ही चाहत । शुरू के कुछ सालों तक मुझे भी बुरा लगा और अपनी नाराज़गी भी जाहिर की... लेकिन कोई फायदा नहीं ।अब अगर कोई ये कहे कि वे भूल जाते होंगे तो यह भी मुमकिन नहीं... रोजाना से अलग आज अगर लोग आपकी पत्नी को फोन करके विश कर रहे हैं, तो कुछ तो बात होगी न... खैर जाने दीजिए अब यह सब मेरे लिए स्वाभाविक हो चुका है तो मन में कुछ नहीं चुभता अब।

    तैयार हो कर हम लोग निकले ही थे कि सीमा , मेरी छोटी बहन का फोन आ गया। थोड़ी देर बाद ही बच्चों का स्कूल आ गया, शशांक मुझे ड्राप कर के अपने आॅफिस के लिए निकल गए। मीटिंग अटैंड करके मैं भी अपने आॅफिस पहुँच गई। हर साल की तरह आज भी अपने जन्मदिन पर नई साड़ी पहनी थी... पसंद है मुझे इस स्पेशल डे पर अपने आप को स्पेशल फील कराना। मेरे स्टाफ ने मुझे देखकर अपने अपने कयास लगाने शुरू किए और आखिर में इस नतीजे पर पहुंच ही गए कि आज मेरा जन्मदिन है। सब ने एक साथ मेरे केबिन में आकर मुझे जन्मदिन विश किया, बहुत अच्छा लगा सब का अपनापन और प्यार देखकर। लंच-ब्रेक में केक मंगाया गया। फिर केक कटिंग और हल्का फुलका रिफ्रेशमेंट हुआ, फिर डाँस, म्यूजिक... सब ने मिल कर खूब मस्ती की। पर मैं पता नहीं क्यों खुश नहीं थी, इतना अच्छा माहौल होने पर भी लग रहा था.. जैसे कोई कमी है। 


  आॅफिस में ज्यादा काम नहीं था और बच्चे भी घर पर अकेले थे, तो सोचा आज घर जल्दी निकल जाती हूँ। निकलने से पहले माँ का फोन आया - "बेटा, थोड़ा टाइम मिले, तो घर होती जाना"

नहीं, मम्मा.. आज नहीं..बच्चे घर पर अकेले हैं, सन्डे आउँगी...या ऐसा करना आप आ जाना शाम को...

अच्छा बता जन्मदिन का क्या गिफ्ट दूँ तुझे..?

कुछ नहीं.. मुझे कुछ नहीं चाहिए, बस आप आ जाना !

गिफ्ट नहीं लाउँगी, तो फिर मैं ही क्या करुंगी आ कर.. फिर तुम लोग ही आ जाना सन्डे को... कहकर माँ ने फोन रख दिया। 
         सच में कितनी महान होती हैं ये माँएं.. एक भरा पूरा जीवन देने के बाद भी अपने बच्चों को सदा देना ही चाहती हैं.. और ज्यादा.. और ज्यादा 



         घर आ गई थी मैं, दोनों बच्चे वीडियो गेम खेलने में बिज़ी थे, मैं भी कुछ देर लेट गई। लेकिन जैसे-जैसे शाम घिर रही थी, मन की उदासी बढ़ती जा रही थी। ऐसा लग रहा था...जैसे एक अँधेरा साया मुझ पर घिरता जा रहा है। मन बहुत उदास था, पर वजह समझ नहीं आ रही थी। सब कुछ तो इतना अच्छा था, सारे फ्रैंड्स ने बर्थडे इतने प्यार से विश किया, आॅफिस में भी तो सब ने इतना अच्छा फील कराया मुझे, फेसबुक, और वट्सअप पर भी कितनी सारी विशेज़ आई थीं । फिर क्या हुआ है मुझे...क्यों मन इतना उदास है...? शशांक तो मुझे कभी भी विश नहीं करते और अब इस बात का मुझे बुरा भी नहीं लगता, फिर क्या हुआ है आज। बच्चों ने कभी डैडी के मुँह से मम्मी के जन्मदिन के बारे में सुना नहीं और मैंने बताया नहीं, तो बच्चे भी कैसे कुछ बोलेंगे ...मुझे पता है यह तो। फिर क्या हुआ है, क्यों मन इतना घबरा रहा है, सब कुछ इतना अच्छा है, फिर मैं खुश क्यों नहीं हूँ... सब कुछ.. हाँ, सब कुछ.. माँ...पर इस सब कुछ में माँ कहाँ हैं। मन में ख्याल आते ही धड़कन रुक सी गई। सारी उदासियों की वजह पल भर में समझ आ गई... सब थे आज मेरे साथ... सिवाय माँ के। इतने सालों से बेशक वे सुबह-सुबह मुझसे नहीं मिल पाती थीं, पर दिन में जरूर वे मुझे मिलने आती थीं या मैं ही मिल आती थी... लेकिन आज नहीं मिल पाई। यही वजह है कि सब के होते हुए भी मैं अकेलापन महसूस कर रही थी । आज पहली बार जीवन में मां के होने की अहमियत समझ पा रही थी मैं...समझ पा रही थी, कि इंसान चाहे कितना भी बड़ा हो जाए लेकिन माँ की ममता की जरूरत उसे हर उम्र में, हर मोड़ पर पड़ती है। खुद दो बच्चों की माँ हो कर भी एक छोटे बच्चे की तरह रो रही थी मैं अपनी माँ के लिए, सुबक रही थी कि काश अभी.. अभी.. वो मेरे सामने आ जाएँ और मुझे अपने सीने से लगा लें। बहुत समझाया मैंने अपने आप को.. एक बत्तीस साल की महिला का मन तो समझ सकता है ,लेकिन वह बच्चा नहीं समझ सकता, जो बिलख रहा हो सिर्फ अपनी माँ की गोद में जाने के लिए। 

     धीरे-धीरे शाम ढलकर रात का रूप लेने लगी थी, पर मेरा रोना नहीं थम रहा था, ऐसा पहली बार था... जब लाख चाहने पर भी मै अपने आप को नहीं संभाल पा रही थी ।आज जो पीड़ा मुझे महसूस हो रही थी.. वह आज से पहले कभी महसूस नहीं की थी मैंने, चाहे कितनी भी दुखद परिस्थिति रही हो। मन में बस एक ही आस थी कि अभी घंटी बजे और माँ मेरे सामने आ जाए... पर मैं जानती थी कि यह मेरा ख्वाब है और ख्वाब पूरे नहीं हुआ करते... पर क्या करूँ, कैसे समझाऊँ अपने आप को... कितना असहाय, कितना लाचार महसूस कर रही थी मैं अपने आप को... यह सिर्फ मेरा मन ही जानता है। 

     इतने में शशांक भी आ गए और मैं बेमन से आँसू भरी आँखें लिए किचन में खाना बनाने चली गई। 
       करीब आधे घंटे बाद दरवाजे पर बेल बजी, शशांक ने दरवाजा खोला... अरे, मम्मी जी, आप... आइए, आइए ।

       किचन में खड़े-खड़े ही मैंने आवाज सुनी.. मेरा दिल जोर से धड़कने लगा और फटाफट से बाहर आई... माँ को देखते ही उनके गले से लिपट गई और जोर-जोर से रोने लगी और बहुत देर तक माँ से ऐसे ही चिपकी रही। 
        छोटे बेटे ने देख कर पूछा- मम्मा, आप रो क्यों रही हो ..?

  बेटा, तेरी मम्मी का बर्थडे है न और मैं कोई गिफ्ट नहीं लाई... इसीलिए तेरी मम्मी रो रही है... माँ ने हँसते हुए कहा।

   मुझे नहीं चाहिए कोई गिफ्ट... नहीं लेना मुझे कोई गिफ्ट... आप ही मेरा गिफ्ट हो... सुबह से क्यों नहीं आई थीं... मैं कितना याद कर रही थी आपको.. मैं रोते-रोते ही माँ से लड़ने लगी। 

   अच्छा अच्छा, अब तो आ गई.. अब चुप हो जा... देख तेरी मौसी भी आई है, दोपहर ही आई थी और कल चली भी जाएगी... तो कहने लगी कि मुझे नैना से मिला कर लाओ। 
  वह मेरी छोटी मौसी थीं, जो ग्वालियर में रहती हैं और आज यहाँ उनका डॉक्टर से अपाइनमेंट था... इसी सिलसिले में आई थीं ।

  अब नहीं जाना किसी को... अब तो सुबह ही जाने दूंगी मैं.. आज रात भर अपनी माँ के सीने से लग कर सोना है मुझे और माँ ने फिर से मुझे अपने गले से लगा लिया!!!!- रुचिका

भगवान बन माँ हमें जन्म देती है। जन्म के बाद से ही वो हमारी हर जरूरत का ध्यान रखती है। सुबह उठाने के लिए अलार्म घड़ी, घर में कुछ ढूँढने के लिए गूगल, बीमारी में एक डॉक्टर, शिक्षा देती अध्यापिका और बहुत से किरदार निभाती है माँ जिंदगी में। अपने बच्चे के दिल की हर बात बिना कहे ही उसे पता चल जाती है।ह्ऱदम हमउम्र हमसफ़र होती है हर माँ-दिनेश बरेजा(कहानी लेखक)


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