🔆💥 जय श्री राम 🔆💥
“ चयन का महत्व ” कहानी ~ नमः वार्ता
धर्मात्मा राजा प्रतापभानु ईश्वर को पाने के लिए जंगल- जंगल भटका! पर जंगल में विचरण करते- करते वह अपने लक्ष्य को ही भूल गया और ईश्वर (पूर्ण गुरु) के स्थान पर एक कपटी को भगवान का महत्व दे बैठा! भगवान की अपेक्षा कपटी मुनि के चयन में ही अपना हित समझता रहा
तुम्ह तजि दीन दयाला, निज हित न देखो कोउ! और इस गलत चुनाव का उसे क्या परिणाम मिला? लक्ष्य भूल कर राक्षस का सहारा लिया, तो
अगले जन्म में रावण रूप में राक्षस ही बनना पड़ा!दुर्योधन ने भी तो यही गलती की थी! जब श्री कृष्ण के बहुत बार समझाने पर भी दुर्योधन नहीं माना और महाभारत का युद्ध निश्चित हो गया, तब श्री कृष्ण ने अर्जुन और उसके सामने चुनाव रखा था- ' एक ओर मै अकेला नि:शस्त्र खड़ा हूं और दूसरी ओर अस्त्र- शस्त्र से सुसज्जित मेरी चतुरंगिणी सेना हैं! कर लो, जिसका चुनाव करना चाहते हो!' अर्जुन ने चुनाव किया, श्री कृष्ण का!
उधर दुर्योधन आकार का शिकार बन गया! उसने अपने चुनाव की मोहर लगाई, चतुरंगिणी सेना पर!
इस चुनाव का दुर्योधन को क्या परिणाम मिला- हम सभी जानते हैं! इसलिए चुनाव करते समय आकार का शिकार न बनें! क्वांटिटी के साथ- साथ क्वालिटी का भी ध्यान रखें!
धनुर्धारी अर्जुन से यदि कोई बराबर की टक्कर लेने का जज़्बा व काबिलियत रखता था, तो वह था- अंगराज़ कर्ण!
कर्ण के पास अर्जुन के वध के लिए एक अमोघ शक्ति थी! परंतु इसके उपरांत भी कर्ण उससे अर्जुन का वध नहीं कर पाया! क्यों? क्योंकि जिस शक्ति का प्रयोग उसे अर्जुन के लिए करना था, दुर्योधन के दबाव में आकर उसने उस शक्ति द्वारा घटोत्कच का वध कर दिया!
जहां नारक्तों का चयन करना था, वहां व्यर्थ ही दांतो का प्रयोग किया! कहने का तात्पर्य- जिस शक्ति से बड़ा लक्ष्य हासिल किया जा सकता था, सही चुनाव न होने के कारण वह यूं ही व्यर्थ चली गई! इसलिए कभी भी किसी के दबाव में आकर कोई चुनाव न करें!
एक ओर जहां विभीषण के चुनाव ने उन्हें मान, सम्मान, प्रतिष्ठा एवं ऐश्वर्य प्रदान किया, वहीं कैकेयी अपने चयन के कारण तिरस्कार व घृणा की पात्र बनी!
यदि विभीषण चाहते, तो वे भी अनेक तर्कों के वशीभूत होकर श्रीराम के स्थान पर रावण का चुनाव कर सकते थे! पर उन्होंने विवेक के आधार पर चयन किया!
वहीं दूसरी ओर, मंथरा की कूट- नीति सुनकर कैकेयी क्या कहती हैं- तोहि सम हित न मोई संसारा! अर्थात् संसार में मेरा तुझसे बेहतर हितेषी और कोई नहीं है! कैकेयी विवेक खो बैठी और उन्होंने श्रीराम को छोड़कर मंथरा का चयन कर लिया
उस एक गलत चयन का परिणाम कैकेयी को युगों- युगों तक कलंकित कर गया!
अपने पुत्र भरत का प्रेम तो खोया ही, स्वयं की दृष्टि में भी सदा के लिए गिर गई
इसलिए हमेशा स्मरण रखें- चुनाव करते समय अपने निर्णय का आधार तर्क को नहीं, विवेक को बनाएं! इससे आपका चुनाव कभी भी पछतावे में परिणित नहीं होगा!
जब एक व्यक्ति पूर्ण गुरु के सान्निध्य में पहुंचता है, तब वह उस महान ब्रह्मज्ञान को प्राप्त करता है, जिससे उसके भीतर विवेक जागृत होता हैं! वह अपनी आत्मा की आवाज़ को सुन पाता है! समझ पाता है कि दो पहलुओं में से कौन- सा सही है और कौन- सा गलत!
लक्ष्य न भूले, विवेक का सानिध्य न छोड़े, आकार न देखे, दबाव में न आये और सही चुनाव कर अपने जीवन में सुख और उन्नति लाएं-दिनेश बरेजा
प्रेषक-
दिनेश बरेजा
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