🔆💥 जय श्री राम 🔆💥
“बुढ़ापे की नजदीकियाँ” कहानी ~ नमः वार्ता
निगम महोदय पिछले बीस मिनट से पूरे घर में हड़बड़ाए से घूम रहे थे।
पहले उन्होंने अपनी स्टडी टेबल की सारी किताबों को इधर-उधर किया, पुनः वहां से निराश हो ड्रेसिंग टेबल के सामने पहुंच गए। ड्रेसिंग टेबल के लगभग सारे सामानों को बिखेरने के उपरांत उनका ध्यान डाइनिंग टेबल पर गया। पूरी मेहनत के उपरांत भी उन्हें वांछित वस्तु नहीं मिली। इसके उपरांत निगम महोदय अपनी अलमारी की और बढ़े और उन्होंने अलमारी को खोलकर तलाशी लेनी शुरु की।
"यह सुबह-सुबह क्या घर में कोहराम मचा रखा है ??चेन से सोने भी नहीं देते!!
इतनी देर शोर शराबे से अनभिज्ञ सो रही मिसेज निगम की नेत्रें खुल गईं और वे उठकर किचन में चली गई।
शरीर पर ट्रैक सूट, सर पर कैप , पैरों में नई नवेले स्पोर्ट्स शूज, पूरी प्रकार मॉर्निंग वॉक को तैयार निगम महोदय के चेहरे पर पसरी परेशानियां पत्नी के उठ जाने पर कुछ कम हुई। वे मिसेस निगम के पीछे पीछे किचन में पहुंचे।
"मेरा दूर का चश्मा नहीं मिल रहा है! पता नहीं कहां रख दिया! क्या तुमने कहीं देखा था?"
अब तक चाय का जल चढ़ा चुकी मिसेज निगम ने उन्हें घूरा, "तुम्हारा प्रतिदिन-प्रतिदिन का यही हाल है! कभी जूते, कभी कैप, कभी वॉकिंग स्टिक!! इधर-उधर रख कर भूल जाते हो ! मुझे क्या पता तुम्हारा चश्मा कहां है?"
"यार, मैं लेट हो रहा हूं! प्लीज, ढूंढ के दे दो ना !! तुम्हें पता है कि बिना चश्मे मुझे 10 फिट भी साफ नहीं दिखता।"
"किस बात के लिए लेट हो रहे हो? उन्ही बुढ्ढे मित्रों से गप्पे लड़ाने के लिए, जो तुमने बगीचे में नए-नए बनाएं हैं।"
"तुम्हें मेरे मित्रों से जलन क्यों हो रही है? ढूंढो तो ठीक, वरना मैं ऐसे ही चला जाऊंगा।"
"तो जाओ और पुनः कहीं ठोकर खाकर गिर जाना और इस बुढ़ापे में हड्डियां तुड़वा कर मेरी छाती पर मूंग दलना।"
कहते हुए मिसेज निगम में ने चाय छानी, एक कप निगम महोदय को पकड़ा कर दूसरा कप हाथ में लेकर लिविंग रूम में आकर बैठ गई ।
" पहले चाय, पुनः तुम्हारा चश्मा ढूंढूंगी।"
बेबस निगम महोदय भी साथ आकर बैठे ।
"सारी जीवन बाहर नौकरी करने के उपरांत अपने नगर में शिफ्ट हुए, लेकिन क्या पता था 30 वर्ष उपरांत नगर का रंग रूप ही परिवर्तित हो जाता है। सारी इमारतें परिवर्तित हो चुकी होती है, परिचित नगर छोड़ चुके होते हैं और अपरिचित नगर के बाशिंदे बन जाते हैं।"
"तुम्हारे रिटायरमेंट के उपरांत बेटे ने तो कितने शौक से तुम्हें बैंगलोर स्वयं के साथ हमेशा के लिए रहने के लिए बुलाया था। लेकिन तुम ही नहीं माने!"
"क्यों हम वहां दो महीने रहे नहीं थे क्या? लेकिन वहां ना तो तुम्हारा मन लगा ना ही मेरा । यहां आकर बसने का निर्णय हम दोनों का था। सोचा था कि यहां हमें कंपनी मिल जाएगी।"
"परायों की छोड़ो!! यहां तो अपने भी मॉर्निंग टी में कंपनी नहीं देते!" मिसेज निगम ने संकेतो ही संकेतो में निगम महोदय पर ताना कसा ।
"भई! मेरी नेत्र सुबह साढ़े तीन बजे खुल जाती है, तुम 5:30 से पहले उठती नहीं तो बताओ मैं क्या करूं बस तैयार होकर 5:00 बजे घूमने निकल जाता हूं।"
"तुम्हें तो पता ही है कि मुझे रात को देर तक नींद नहीं आती तो मैं तुम्हारे साथ भला कैसे उठ सकती हूं।"
"पता नहीं क्या, मुझे डायबिटीज है? यदि एक दिन भी वॉक नहीं करो तो शुगर लेवल बढ जाता है।"
"वह तो ठीक है, लेकिन तुम तो बाहर से कुंडी लगा कर चले जाते हो! पीछे से जब मेरी नेत्र खुलती है तो पूरा घर वीरान लगता है और मुझे लगता है कि यदि मुझसे पहले तुम चले गए तो यही वीराना जीवन बन जाएगा।"कहते हुए मिसेज निगम चाय का कप रख उठी और उन्होंने दो ही मिनट में चश्मा ढूंढ निगम महोदय के हाथ में रख दिया।
"लो, मत पियो चाय मेरे साथ, बस!!!
उस सुबह निगम महोदय का मन ना तो बग़ीचे में लगा न ही नये नये बनाए हम उम्र मित्रों के साथ।
उस रात उन्होंने नींद का बहाना किया लेकिन नेत्रें बंद किए जागते रहे।
कुछ ही देर में वह जान गए कि मिसेज निगम ने आज उनकी वाकिंग स्टिक उठाकर वॉशिंग मशीन के पीछे रख दी है।
वे मुस्कुराए और यह प्रण कर सो गए कि कल सुबह मिसेज निगम के साथ चाय पीने के उपरांत ही घूमने जाना है- मधुसूदन लज्जिता
प्रेषक-
दिनेश बरेजा
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