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बुधवार, 22 जून 2022

“ घुसपैठियों पर गंभीरता ” कहानी ~ नमः वार्ता


  🔆💥 जय श्री राम 🔆💥

 “ घुसपैठियों पर गंभीरता ” कहानी ~ नमः वार्ता 

उस पांच सितारा ऑडिटोरियम के बाहर प्रोफेसर महोदय की आलीशान कार आकर रुकी, प्रोफेसर बैठने को हुए ही थे कियुभ्य सा युगयाचक दृष्टि से उन्हें देखता हुआ पास आया और बोला, "महोदय, यहां से मुख्य सड़क तक कोई साधन उपलब्ध नहीं है, कृपा करके वहां तक लिफ्ट दे दीजिए आगे हम बस पकड़ लेंगे।"

रात के साढ़े ग्यारह बजे प्रोफेसर महोदय ने गोद मे बच्चा उठाये इस युगल को देख अपने "तात्कालिक कालजयी"  भाषण के प्रभाव में उन्हें अपनी कार में बिठा लिया। ड्राइवर कार दौड़ाने लगा।

याचक जैसा वह दम्पति जोड़ा अब कुटिलतापूर्ण मुस्कुराहट से एक दूसरे की नेत्रों में देख अपना प्लान एक्सीक्यूट करने लगा । पुरुष ने सीट के पॉकेट मे रखे मूंगफली के पाउच निकालकर भोजन शुरू कर दिया बिना प्रोफेसर से पूछे/मांगे ।

लड़की भी बच्चे को छोड़ कार की तलाशी लेने लगी। एक शानदार ड्रेस दिखी तो उसने झट से उठा ली और अपने पर लगा कर देखने लगी।

प्रोफेसर महोदय अब सहन नहीं कर सकते थे। ड्राइवर से बोले गाड़ी रोको, लेकिन ड्राइवर ने गाड़ी नही रोकी बस एक बार पीछे पलटकर देखा, प्रोफेसर को झटका लगा, अरे ये कौन है उनके ड्राइवर के वेश में ?? 

वे तीनों वहशियाना तरीके से हंसने लगे, प्रोफेसर महोदय को अपने इष्टदेव स्मरण आने लगे। थोड़ा साहस एकत्रित करके प्रोफेसर महोदय ने शक्ति प्रयोग का "अभ्यासहीन" प्रयास करने का विचार किया लेकिन तब तक वह पुरुष अपनी जेब से एक लाइटर जैसा पदार्थ निकाल चुका था और उसका एक बटन दबाते ही 4 इंच का धारदार चाकू बाहर आ चुका था प्रोफेसर महोदय की क्रांति समयपूर्व ही गर्भपात को प्राप्त हुई ।

प्रोफेसर महोदय समझ चुके थे कि आज कोई बड़ी अनहोनी निश्चित है। उन्होंने स्वयं ही अपना पर्स निकालकर सारे पैसे उस व्यक्ति के हाथ में थमा दिये। लेकिन वह व्यक्ति अब उनके आभूषणों की ओर देखने लगा, दुखी मन से प्रोफेसर महोदय ने अपनी अंगूठियां, ब्रेसलेट और सोने के चेन उतार के उसके हाथ में धर दिए । अब वह व्यक्ति उनके गले में एक और लॉकेट युक्त चेन की ओर हाथ बढ़ाने लगा।
प्रोफेसर महोदय याचना पूर्वक बोले - इसे छोड़ दो प्लीज यह मेरे "पुरुखों की निशानी" है जो कुल परंपरा से मुझ तक आई है।  इसकी मेरे लिए अत्यंत भावनात्मक महत्ता है लेकिन वह लुटेरा कहां मानने वाला था उसने अंत वह निशानी भी उतार ही ली।

बिना प्रोफ़ेसर महोदय के पता बताएं वे  लोग उनके आलीशान बंगले के बाहर तक पहुंच गए थे। युवक बोला, "लो आ गया घर, ऐसे ढेर सूखे मेवे, कपड़े, पैसा और प्रोफेसर महोदय की ल.....‌ उसकी आँखों में आई धूर्ततापूर्ण चमक ने शब्द के अधूरेपन को पूर्णता दे दी।

प्रोफेसर महोदय अब पूरे परिवार की सुरक्षा एवं घर पर पड़े अथाह धन-धान्य को लेकर भी चिंतित हो गये। उनका रक्तचाप उछाले मारने लगा लेकिन करें भी तो क्या ??
लगे गिड़गिड़ाने, "भैया मैंने आपको आपत्ति में देखकर शरण दी और आप मेरा ही इस प्रकार शोषण कर रहे हैं यह अनुचित है। ईश्वर का भय मानिए यह निर्दयता की पराकाष्ठा है। अब तो छोड़ दीजिए मुझे भगवान के लिए। प्रोफेसर फूट फूट कर रोने लगे।

वे पति पत्नी अपना बच्चा लेकर कार से उतर गये और वह ड्राइवर भी, उनके द्वारा लिया गया सारा सामान उन्होंने वापस प्रोफेसर महोदय के हाथ में पकड़ाया और  बोले..."क्षमा कीजिएगा सर ! रोहिंग्या मुसलमानों के विषय में शरणागत वत्सलता पर आज आपके द्वारा उस ऑडिटोरियम में  दिए गए "अति भावुक व्याख्यान"  का तर्कसंगत शास्त्रीय निराकरण करने की योग्यता हममें नहीं थी, हम नही समझा सकते ठीक यदि रोहिंज्ञाओ के व्यक्तित्व इतना अच्छा होता तो उन्हे किसी देश से बाहर निकाला क्यों जाता, अतः हमें यह स्वांग रचना पड़ा।
"आप थोड़ा स्वयं को भारतवर्ष और हमें रोहिंग्या समझ कर इस पूरी घटना पर विचार कीजिए और सोचिये की आपको अब क्या करना चाहिए इस विषय पर।"

"वो मूंगफली नहीं, इस देश का अथाह प्राकृतिक संसाधन है,, जिसकी यहां के सैनिक अपना उष्ण लाल लहू बहाकर रक्षा करते हैं सर, मुफ्त नही है यह"।
   
"वो आपकी बेटी/बेटे की ड्रेस मात्र कपड़ा नहीं है इस देश के नागरिकों के स्वप्न हैं  भविष्य के,, जिसके लिए यहां के युवा परिश्रम का पुरुषार्थ करते हैं, मुफ्त नहीं है यह।"
    
"आपकी बेटी / पत्नी मात्र नारी नहीं हैं। देश की अस्मिता हैं सर जिसे हमारे पुरुखों ने रक्त के सागर बहा के सुरक्षित रखा है, खैरात में बांटने के लिए नहीं हैं यह।"
    
"आपका ये पर्स अर्थव्यवस्था है सर इस देश की, जिसे करोड़ों लोग अपने पसीने से सींचते हैं, मुफ्त नहीं है यह।"

"और आपके पुरखों की निशानी यह चेन मात्र सोने का टुकड़ा नहीं है सर, अस्तित्व है हमारा, अतीत है इस महान राष्ट्र का, जिसे असंख्य योद्धाओं ने मृत्यु की बलिवेदी पर ढेर लगाकर जीवित रखा है, मुफ्त तो छोड़िए इसे किसी ग्रह पर कोई वैज्ञानिक भी उत्पन्न नहीं कर सकते हैं।"
   
"कुछ विचार कीजिये सर ! 
कौन है जो रक्त चूसने वाली जोंक को अपने शरीर पर रहने की अनुमति देता है, एक बुद्धिहीन चौपाया भी तत्काल उसे पेड़ के तने से रगड़ कर उससे मुक्ति पा लेता है।"

उस युवक ने वह लाइटर जैसा रामपुरी चाकू प्रोफेसर महोदय के हाथ में देते हुए कहा,, यह मेरी प्यारी बहन जो आपकी पुत्री है, उसे दे दीजिएगा सर क्योंकि यदि आप जैसे लोग रोहिंग्या को सपोर्ट देकर इस देश में बसाते रहे तो किसी न किसी दिन ऐसी ही किसी कार में आपकी बेटी को इसकी आवश्यकता अवश्य पड़ेगी।

सर, ज्ञान के विषय में तो हम आपको क्या समझा सकते हैं लेकिन एक कहानी अवश्य सुनिए....

"लाक्षाग्रह के उपरांत बच निकले पांडव एकचक्रा नगरी में गए थे तब वहां कोई सराय आदि तो थी नहीं,, तो वे लोग एक ब्राह्मणी के घर पहुंचे और उन्हें शरण देने के लिए याचना की।  
शरणागत धर्म के चलते उस ब्राह्मणी ने उन्हें  शरण दी। शीघ्र ही उन्हें (पांडवों को) पता चला कि यहां एक बकासुर नामक राक्षस प्रत्येक पक्षांत पर एक व्यक्ति को बैलगाड़ी भरकर भोजन के साथ खा जाता है। इस बार उसी ब्राह्मणी के इकलौते पुत्र की बारी थी।

उस ब्राह्मणी के शरणागत धर्म के निष्काम पालन से प्रसन्न पांडवों ने धर्म की रक्षा के लिए, निर्बलों की सहायता के लिए और अपने शरण प्रदाता के ऋण से हल्के होने के लिए स्वयं भीम को उस ब्राह्मण के स्थान पर भेजा।
       
आगे सभी को पता ही है कि भीम ने उस राक्षस कोे किस प्रकार पटक-पटक कर धोया था...  लेकिन यह कहानी हमें सिखाती है कि शरण किसे दी जाती है ??
         
"जो आपके आपत्तिकाल में आपके बेटे के परिवर्तित होे अपने बेटे को मृत्यु के सम्मुख प्रस्तुत कर सके... वही शरण का सच्चा अधिकारी है। "

उसी के लिए आप अपने संसाधन अपना हित अपना सर्वस्व त्याग करके उसे अपने भाई के समान शरण देते हैं और ऐसे कई उदाहरण अतीत में उपलब्ध हैं।

प्रोफेसर महोदय ! ज्ञान वह नहीं है जो किताबें पढ़कर आता है, सद्ज्ञान वह है जो ऐतिहासिक घटनाएं सिख के रूप में हमें सिखाती हैं.. और वही वरेण्य है।वर्ना कई पढ़े-लिखे महामूर्धन्य लोगों के मूर्खतापूर्ण निर्णयों का फल यह पुण्यभूमि आज भी भुगत ही रही है। आशा है आप हमारी इस धृष्टता को क्षमा करके हमारे संदेश को समझ सकेंगे।

प्रोफेसर महोदय एक दीर्घ निश्वास के साथ उन्हें जाते हुए देख रहे थे। आज वे ज्ञान का एक विशिष्ट प्रकाश अपने अंदर स्पष्ट देख पा रहे थे।

प्रेषक-
 दिनेश बरेजा 


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