🔆💥 जय श्री राम 🔆💥
“ बुजुर्गों का प्यार-आनंददायक ” कहानी ~ नमः वार्ता
सुबह साढे नौ बजे निशा घर के बाहर झाडू लगा रही थी की सामनेवाली चाची को इधर उधर चक्कर लगाते हुए देखा ।
पहले तो उसे लगा संभवतः नाश्ते के उपरांत टहल रही है मगर जब बारबार गेट से गली के मोड की ओर देखते हुए देखा तो पूछा -
क्या हुआ चाची जी
क्या देख रही है कुछ मंगवाना है।
चाची,चाची,क्या हुआ
सुनिए ! अनिलजी
"अरे अनिलजी बाहर आइए"
"क्या हुआ निशा"
तुम्हें पता है ना ये मेरे आँफिस जाने का समय हो ....
बाहर आते अनिल के गले मे मानो शब्द अटक से गये-
"चाची,निशा चाची को क्या हुआ"
इसलिए तो बुला रही हूं देखिए ना पसीना पसीना हो रही है।
निशा ने अपनी साडी से माथा पोछते हुए कहा
तुम रुको कहकर अनिल दौडा और जल लेकर आया-
चाची जल,जल पीजिए
सहारा देकर बाहर आंगन में पडी चारपाई पर उन्हें बिठाते हुए अनिल ने कहा-
चाची, आप ठीक है
चलिए डाक्टर के पास चलते है।
"बेटी, शीघ्र गाडी की चाबी लाओ "
"अनिल,मेरे बच्चे,मेरी चिंता छोड तेरे अंकलजी"-चाची ने लगभग भर्राई आवाज मे बोला
अंकलजी, क्या हुआ अंकलजी को,कहा है,अंकलजी
अनिल घर मे झांकते हुए बोला
अरे सुन तो,वो,सुबह से वापस नहीं लौटे मार्निंग वाक से।
अनिल उन्हें देख कहीं -
"हे भगवान"
"चाची प्लीज आप घबराइए मत"-निशा ने दिलासा देते हुए कहा
"अंकलजी, वो तो मुझे मिले थे पार्क में,अभी आए नहीं,रुकिए फोन करता हूं अभी"
"नही मिल रहा ना उनका फोन निशा, वैसे तो वो आठ साढे आठ तक लौट आते है और हम साथ ही नाश्ता करते हैं। अनिल देख अबतक नहीं लौटे उन्हें डायबिटीज बीपी है कहीं"
"तू जा थोड़ा देख मेरे बच्चे"
हमदोनों का यहां तुम दोनो ही तो सहारा हो। मेरे नालायक तो विदेशों में हैं। बेटा तू मेरा बेटा है। जा ना जा थोड़ा अपने अंकलजी को देख-चाची पुनः से रोने लगी
"हां...जी..आप घबराओ मत,मै अभी ढूंढकर लाया"
"संभवतः किसी के साथ चाय पीने बैठ गए होगे आप चिंता मत करो बस रोओं मत"
"निशा, बेटी दादी का ध्यान रखना मे अभी आया बस"- कहकर जैसे ही बाइक स्टार्ट की तो अंकलजी सामने गली के मोड से आते हुए दिखे
"अंकलजी,चाची आ रहे है अंकलजी वो"
अचानक जैसे निर्जीव शरीर में जान आ गई हो . चाची तुरंत लगभग दौडऩे हुए गेट तक पहुंची
लीजिए आ गए,कहा रह गए थे अंकलजी,चाची यहां परेशान हो रही है और आपका फोन भी बंद आ रहा था।
"अरे, अनिल निशा बेटी"
"ये भी ना"
"बच्चों जैसे घबरा जाती है" -अंकलजी प्रसन्न हुए बोले
कहा थे आप
पता है मेरी जान-
चाची अंकलजी के सीने से लगकर रोने लगी
भूल गई, जानता था मेरी भुलक्कड़, अरे आज ही के दिन तुम और मे पूरे पचास वर्ष पहले एक हुए थे।
अरे आज हमारी वर्षगांठ है,
तुम्हें ये मोगरे के गजरे पसंद है ना।
अब मै तुम्हें कोई मंहगा उपहार तो दे नहीं सकता बेगारी मे , पेंशन से हमारा घर चल जाता है पर तुम्हें प्यार भरा ये गथोड़ा तो दे सकता हूं ना।
तुम्हें पसंद है ना
अब यहां मिले नहीं तो फूलवाले ने बताया वहां बस्ती में मिल जाएगा सो पैदल निकल लिया।
और वो फोन, रात को पूरा चार्जिंग नहीं होने से स्विच ऑफ हो गया।
क्या अवश्यत थी आपको इतना पैदल चलने की भला ऐसे।
अरे मेरी हेमामालिनी
तू ही तो मुझे धर्मेंद्र कहती है ना..
जब वो अपनी बंसती के लिए डाकुओं से लड सकता है तो ये वीरु अपनी बंसती के लिए एक गथोड़ा नहीं ला सकता।
चल अब बालों में लगाकर बता तो सही,कैसा दिखता है।
जब इतने प्यार से लाए है तो आप ही...कहकर चाची जी लज्जिताने लगी
अंकलजी ने भी बडे प्यार से चाची जी के बालों में गथोड़ा लगा दिया, जहां दोनो बुजुर्ग अपने प्यार में खोए थे वहीं अनिल और निशा भी एकदूसरे को देखकर मंद मंद प्रसन्नता से रहे थे
प्रेषक-
दिनेश बरेजा
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