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रविवार, 12 जून 2022

“सुदृढ़ भारत राष्ट्र- हमारा पुरातन श्रमप्रधान समाज ” कहानी ~ नमः वार्ता

 

 🔆💥 जय श्री राम 🔆💥


“सुदृढ़ भारत राष्ट्र- हमारा पुरातन श्रमप्रधान समाज ” कहानी ~ नमः वार्ता


अब्राहम लिंकन के पिता जूते बनाते थे, जब वह राष्ट्रपति चुने गये तो ..


सीनेट के समक्ष जब वह अपना पहला भाषण देने खड़े हुए तो एक सीनेटर ने ऊँची आवाज़ में कहा..


मिस्टर लिंकन स्मरण रखो कि तुम्हारे पिता , मेरे और मेरे परिवार के जूते बनाया करते थे...!! 


इसी के साथ सीनेट भद्दे अट्टहास से गूँज उठी.. लेकिन लिंकन किसी और ही मिट्टी के बने हुए थे..!!


उन्होंने कहा कि मुझे पता है कि मेरे पिता जूते बनाते थे ! केवल आप के ही नहीं यहां बैठे कई माननीयों के जूते उन्होंने बनाये होंगे ! वह पूरे मनोयोग से

जूते बनाते थे, उनके बनाये जूतों में उनकी आत्मा बसती है, अपने काम के प्रति पूर्ण समर्पण के कारण उनके बनाये जूतों में कभी कोई शिकायत नहीं आयी...!!


क्या आपको उनके काम से कोई शिकायत है ? उनका पुत्र होने के नाते मैं स्वयं भी जूते बना लेता हूँ और यदि आपको कोई शिकायत है तो मैं उनके बनाये जूतों की मरम्मत कर देता हूं...!! मुझे अपने पिता और उनके काम पर गर्व है...!!


       सीनेट में उनके ये तर्कवादी भाषण से सन्नाटा छा गया और इस भाषण को अमेरिकी सीनेट के अतीत में बहुत बेहतरीन भाषण माना गया है...।



 वेदों में श्रम/कर्म के आधार पर जाति का विभाजन किया गया था। जाति अर्थात एक जैसा कर्म करने वाले लोगो का समूह जैसे- विद्यार्थी,शिक्षक दो अलग अलग समूह है। विस्तार से इसे सुविधाजनक बड़े समूह की कर्म की परिभाषा देते हुए- ब्राह्मण,क्षत्रिय,शूद्र तथा वैश्य के नाम देकर 4 समूहो में बांटा गया। 


 व्यक्ति कर्म अनुसार अपने जीवनकाल में ही कभी वैश्य, कभी शूद्र, कभी क्षत्रिय तथा ब्राह्मण बनता था। शिक्षण के समय ब्राह्मण, युवा अवस्था में बलिष्ठ योद्धा के स्वरूप में क्षत्रिय तथा घर तथा समाज के साफ सफाई कार्यक्रम करते समय शूद्र कहलाता था। 


 धीरे धीरे समाज मे पीढ़ी दर पीढ़ी इस कर्म विभाजित सामाजिक प्रणाली को "जन्म प्रधान जाति सूचक" सामाजिक व्यवस्था में परिवर्तित कर दिया। 

 श्रम का महत्व छोड़कर जन्म तथा कुल के अनुसार उच्च तथा नीच जाति की सामाजिक पृष्ठभूमि पर आधारित समाज खड़ा कर दिया गया। जो श्रम करता है उसका कोई सम्मान नहीं है, वह नीच है तथा यहां जो श्रम नहीं करता,करवाता है, वह ऊंचा है । जो यहां सफाई करता है उसे हेय (नीच) समझते हैं और जो गंदगी करता है उसे ऊँचा समझते हैं। ऊँच-नीच का भेदभाव किसी भी राष्ट्र के निर्माण में बहुत बड़ी बाधा है। 


 अब षड्यंत्र के अनुरूप ये दुराचारी अपने स्वार्थस्वरूप एक नई चाल चल रहे है। मुगल अत्याचारो को सहन करके भी अपने धर्म पर अडिग रहने वाले हमारे साहसी सनातनी हिन्दू भाइयों को, जिन्हें ये अबतक नीम ( नीची जात ) कहकर प्रताड़ित करते रहे उनका मीम अर्थात (वे डरपोक हिन्दू जिन्होंने लालच या डर के मारे धर्म परिवर्तित हो लिया था ) का गठजोड़ बना रहे है। अब इनके द्वारा मुगलो के धर्म परिवर्तन अभियान में हिन्दू धर्म की रक्षा को आगे आये परिवार के भाइयों सिख सम्प्रदाय को भी हिंदुओं से अलग बताया जा रहा है। 


 निजी स्वार्थों तथा ( मात्र भारत के पंजाब का क्षेत्र ) एक भूखण्ड को अलग करवाके देने में सहयोग के नाम पर उन्हें गुरुओं के बलिदान को भूलने को कहा जा रहा है। योजनाबद्ध तरीके से आजतक भारतीय चलचित्रों (फिल्मों) में क्षत्रिय जाति को शूद्र पर अत्याचारी दिखाकर,ब्राह्मण को कपटी तथा ढोंगी दिखाकर पहले हमारा हृदयरूपान्तरण किया गया। हमारे गौरवान्वित अतीत में क्षत्रिय कौमो, जैसे राजपूत इत्स्मरणि तथा श्री गुरु गोविंद सिंह महाराज जैसे अन्य सिख गुरुओं के धर्म युद्ध में योगदान तथा बलिदान को हमसे छुपा लिया गया है। 


 आइये अपने गौरवान्वित अतीत को जाने,पढ़े तथा समझे और अब इतने वर्षो तक दलित, क्षत्रिय तथा सिख समाज का इनके विरुद्ध युद्ध तथा बलिदान को स्मरण करके, इनके साथ न खड़े होकर, हम अपने ही राष्ट्र के पुनः विभाजन न करके, इनकी गुलामी में दुबारा न बंधते जाए। इसके लिए आइये मिलकर जातिगत ऊंचनीच तथा अन्य भेदभाव मिटाकर एक कर्मप्रधान,सुदृढ़, बलिष्ठ,स्वाधीन,स्वालंबी तथा समृद्ध भारत राष्ट्र का पुनः निर्माण करें- दिनेश बरेजा 


 उपरोक्त विचार मेरी निजी सोच है,उचित या सही लगे तो मेरे नाम सहित सभी से सांझा कीजिये,चर्चा के लिए मुझे लिखे या बात करें।

प्रेषक-

 दिनेश बरेजा 



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