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शनिवार, 11 जून 2022

“प्रदोष का महत्व व समय” - नमः वार्ता

 🙏प्रदोष का महत्व व समय🙏

कल है प्रदोष12/6/2022 

👉प्रदोष काल में रुद्राभिषेक का विशेष महत्व रहता है।

सूर्यास्त के पश्चात रात्रि के आने से पूर्व का समय प्रदोष काल कहलाता है। इस व्रत में महादेव भोले शंकर की पूजा की जाती है। इस व्रत में व्रती को निर्जल रहकर व्रत रखना होता है। प्रात: काल स्नान करके भगवान शिव की बेल पत्र, गंगाजल अक्षत धूप दीप सहित पूजा करें।

हिन्दू धर्म के अनुसार, प्रदोष व्रत  कलियुग में अति मंगलकारी और शिव कृपा प्रदान करनेवाला होता है। माह की त्रयोदशी तिथि में सायं काल को प्रदोष काल कहा जाता है। मान्यता है कि प्रदोष के समय महादेव कैलाश पर्वत के रजत भवन में इस समय नृत्य करते हैं और देवता उनके गुणों का स्तवन करते हैं। जो भी लोग अपना कल्याण चाहते हों यह व्रत रख सकते हैं। प्रदोष व्रत को करने से हर प्रकार का दोष मिट जाता है। 

प्रदोष व्रत विधि के अनुसार दोनों पक्षों की प्रदोषकालीन त्रयोदशी को मनुष्य निराहार रहे। निर्जल तथा निराहार व्रत सर्वोत्तम है परंतु अगर यह संभव न हो तो नक्तव्रत करे। पूरे दिन सामर्थ्यानुसार या तो कुछ न खाये या फल ले। अन्न पूरे दिन नहीं खाना। सूर्यास्त के कम से कम 108 मिनट रुद्राभिषेक शिवाराधना के बाद हविष्यान्न ग्रहण कर सकते हैं। 

प्रेषक:-

आचार्य रजनेश त्रिवेदी एवं आचार्य संदीप त्रिवेदी

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