अनुवादक

गुरुवार, 26 मई 2022

“असली शास्र ज्ञान” कहानी ~ नमः वार्ता

🔆💥 जय श्री राम 🔆💥

“असली शास्र ज्ञान” कहानी ~ नमः वार्ता

श्रीकृष्ण स्वयं भी महाभारत रोक न सके। इस बात पर महामुनि उत्तंक को बड़ा क्रोध आ रहा था। 

दैवयोग से भगवान श्रीकृष्ण उसी दिन द्वारिका जाते हुए मुनि उत्तंक के आश्रम में आ पहुँचे।

मुनि ने उन्हें देखते ही कटु शब्द कहना प्रारंभ किया.. आप इतने महाज्ञानी और सामर्थ्यवान होकर भी युद्ध नहीं रोक सके। आपको उसके लिये शाप दे दूँ तो क्या यह उचित न होगा?

भगवान कृष्ण हंसे और बोले- महामुनि! किसी को ज्ञान दिया जाये, समझाया-बुझाया और रास्ता दिखाया जाये तो भी वह विपरीत आचरण करे, तो इसमें ज्ञान देने वाले का क्या दोष? 

यदि मैं स्वयं ही सब कुछ कर लेता, तो संसार के इतने सारे लोगों की क्या आवश्यकता थी?

मुनि का क्रोध शाँत न हुआ। लगता था वे मानेंगे नहीं- शाप दे ही देंगे। 

तब भगवान कृष्ण ने अपना विराट रूप दिखाकर कहा-महामुनि! मैंने आज तक किसी का अहित नहीं किया। निष्पाप व्यक्ति चट्टान की प्रकार सुदृढ़ होता है। आप शाप देकर देख लें, मेरा कुछ नहीं बिगड़ेगा। 

हाँ, आपको किसी वरदान की आवश्यकता हो तो हमसे अवश्य माँग लें।

उत्तंक ने कहा- तो फिर आप ऐसा करें कि इस मरुस्थल में भी जल-वृष्टि हो और यहाँ भी सर्वत्र हरा-भरा हो जाये। कृष्ण ने कहा ‘तथास्तु’ और वहाँ से आगे बढ़ गये

महामुनि उत्तंक एक दिन प्रातःकालीन भ्रमण में कुछ दूर तक निकल गये। दिन चढ़ते ही धूल भरी आँधी आ गई और मुनि मरुस्थल में भटक गये। 

जब मरुद्गणों का कोप शाँत हुआ, तब उत्तंक ने अपने आपको निर्जन मरुस्थल में पड़ा पाया। धूप तप रही थी, प्यास के मारे उत्तंक के प्राण निकलने लगे।

तभी महामुनि उत्तंक ने देखा.. चमड़े के पात्र में जल लिये एक चाँडाल सामने खड़ा है और जल पीने के लिए कह रहा है। 

उत्तंक उत्तेजित हो उठे और बिगड़ कर बोले,! मेरे सामने से हट जा, नहीं तो अभी शाप देकर भस्म कर दूँगा।  तू मुझे  चमड़े के पात्र से जल पिलाने आया है।

उनके साथ-साथ कृष्ण पर भी क्रोध आ गया। मुझे उस दिन मूर्ख बनाकर चले गये। पर आज उत्तंक के क्रोध से बचना कठिन है।

जैसे ही शाप देने के लिए उन्होंने मुख खोला कि सामने भगवान श्रीकृष्ण दिखाई दिये। 

कृष्ण ने पूछा- नाराज न हों महामुनि! आप तो कहा करते हैं कि आत्मा ही आत्मा है, आत्मा ही इन्द्र और आत्मा सभी में है। 

फिर आप ही बताइये कि इस चाँडाल की आत्मा में क्या इन्द्र नहीं थे? यह इन्द्र ही थे, जो आपको अमृत पिलाने आये थे, पर आपने उसे ठुकरा दिया। 

बताइये, अब मैं आपकी कैसे सहायता कर सकता हूँ। यह कहकर भगवान कृष्ण भी वहाँ से अदृश्य हो गये और वह चाण्डाल भी।

 मुनि को बड़ा पश्चाताप हुआ। उन्होंने अनुभव किया कि जाति, कुल और योग्यता के अभिमान में डूबे हुए मेरे जैसे व्यक्ति ने शास्त्र-ज्ञान को व्यावहारिक नहीं बनाया.. 
 तो फिर यदि कौरवों-पाँडवों ने श्रीकृष्ण की बात को नहीं माना तो इसमें उनका क्या दोष?महापुरुष केवल मार्ग दर्शन कर सकते हैं। यदि कोई उस प्राप्त ज्ञान को आचरण में न लाये और यथार्थ लाभ से वंचित रहे, तो इसमें उनका क्या दोष? 

 समाज को जाति में न बांटे तथा झूठे भेड की खाल में छुपे भेड़ियों को सफल न होने दे। वे दलित बनकर नीम-मीम का नारा देंगे, ब्राह्मणों का विरोध करेंगे परन्तु पकिस्तान जिंदाबाद, कश्मीर में आजादी,खालिस्तान की मांग तथा अन्य अलगाववादियों के साथ खड़े होंगे। पथरबाजी को जायज ठहराकर, jnu जैसे संस्थानो में गरीब, दलित तथा शोषण का बहाना बनाकर, देश विरोध में उकसायेंगे। अंबेडकर के संविधान को बेहतरीन परन्तु उसी संविधान के अंतर्गत देशद्रोही याकूब मेनन, अफजल गुरु की फांसी को गलत बताएंगे। बुद्ध के शिष्य, अहिंसा के पुजारी बनकर बीफ खाने का समर्थन करेंगे। दंगों में दलितों को हिन्दू मानकर मारने वाले राक्षसों का साथ देंगे तथा लव जिहाद को बढ़ावा देंगे। प्रलोभन से, धर्म परिवर्तन कराकर, अपने साथ ही खड़ा कर लेंगे। आइए इन भेड़ियों से अपने भूतकाल के वीर हिंदुओं (जिन्होंने मैला ढोना, चमड़े का काम करना अपनाया परन्तु हिन्दू धर्म नही छोड़ा) को बचाये। इन्हें गले लगाए तथा पूर्ण आदर सम्मान दे-दिनेश बरेजा 
प्रेषक-
 दिनेश बरेजा 




उपर्युक्त प्रकाशित लेख में कोई त्रुटि है या विवादस्प लगे, तो टिप्पणी बॉक्स में अवश्य लिखे इसी के साथ अपने लेख प्रकाशित करवाने के लिए भी संपर्क कर सकते है। 👉🏻 https://twitter.com/NamahVarta 👉🏻 https://t.me/namahvartah 👉🏻https://m.facebook.com/599982183517249/ 👉🏻https://youtube.com/channel/UC66OK1dAeQmBiaSV2yuRKOw 👉🏻 https://namahvarta.blogspot.com/?m=1

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें