🔆💥 जय श्री राम 🔆💥
"आत्मा से तृप्त लोग" कहानी ~ नमः वार्ता
बस स्टैंड पर बैठा मैं अपने नगर जाने वाली बस का प्रतीक्षा कर रहा था। अभी बस स्टैण्ड पर बस लगी नहीं थी। मैं बैठा हुआ एक किताब पढ़ रहा था।
मुझे देखकर लगभग 10 वर्ष की एक बच्ची मेरे पास आकर बोली, "बाबू पैन ले लो,10 के चार दे दूंगी। बहुत भूख लगी है, कुछ खा लूंगी।"
उसके साथ एक छोटा-सा लड़का भी था, संभवतः भाई हो उसका।
मैंने कहा: मुझे पैन तो नहीं चाहिए।
आगे उसका प्रश्न बहुत प्यारा सा था, फिर हम कुछ खाएंगे कैसे ?
मैंने कहा: मुझे पैन तो नहीं चाहिए पर तुम कुछ खाओगे अवश्य।
मेरे बैग में बिस्कुट के दो पैकेट थे, मैने बैग से निकाल एक-एक पैकेट दोनों को पकड़ा दिए।
पर मेरी आश्चर्य की कोई सीमा ना रही जब उसने एक पैकेट लौटा करके कहा, "बाबू जी ! एक ही काफी है, हम बाँट लेंगे"।
मैं आश्चर्यचकित हो गया उत्तर सुनकर
मैंने दुबारा कहा:
"रख लो, दोनों , कोई बात नहीं।"
मेरी आत्मा को झिंझोड़ दिया उस बच्ची के उत्तर ने, जो उसने कहा:
"तो फिर आप क्या खाओगे" ?
इस संसार में करोड़ों अरबों कमाने वाले लोग जहां उन्नति के नाम पर मानवता को ताक पर रखकर लोगों को लूटने में लगे हुए हैं, वहां एक भूखी बच्ची ने "मानवता की पराकाष्ठा" का पाठ पढ़ा दिया।
मैंने अंदर ही अंदर अपने आप से कहा, इसे कहते हैं आत्मा के तृप्त लोग. लोभवश किसी से इतना भी मत लेना कि उसके हिस्से का भी हम छीन लें और खा जाएं-संकलित
जब आप सबसे अधिक जनसंख्या वाले देश मे, संसाधनों की कमी होते हुए भी, अधिक से अधिक निकम्मे बच्चे पैदा करके, सरकार तथा प्रशासन से- भूखे,गरीब तथा अनपढ़ होने की पुकार लगाकर, मदद को अधिकार बताकर, सड़को पर मांग लेकर बैठ जाते हो, तो मैं समझ जाता हूँ कि आप केवल भारत मे "आत्मा से तृप्त हिंदुओं" के मध्य ही ऐसी धृष्टता करने का साहस कर सकते हो, पाकिस्तान या अफगानिस्तान में नही-दिनेश बरेजा
प्रेषक-
दिनेश बरेजा
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