🔆💥 जय श्री राम 🔆💥
“मुझको अपने गले लगालो ” कहानी ~ नमः वार्ता
स्कूल के चार घनिष्ठ मित्र, जिन्होंने एक ही स्कूल में एसएससी तक इकट्ठे पढ़ाई की
उस समय नगर में इकलौता लग्जरी होटल था। एसएससी की परीक्षा के पश्चात उन्होंने ये तय किया कि हमें उस होटल में जाकर चाय-नाश्ता करना चाहिए
उन चारों ने कठिनता से चालीस रुपये जमा किए, रविवार का दिन था, और साढ़े दस बजे वे चारों साइकिल से होटल पहुंचे।
दिनेश, संतोष, मनीष और प्रवीण चाय-नाश्ता करते हुए बातें करने लगे
उन चारों ने सर्वसम्मति से निर्णय किया कि पचास वर्ष पश्चात हम 01 अप्रैल को हिन्दू नव वर्ष पर इस होटल में फिर मिलेंगे, तब तक हम सब को बहुत मेहनत करनी चाहिए, यह देखना दिलचस्प होगा कि इसमें किसकी, कितनी प्रगति हुई है।
जो मित्र उस दिन सबसे पश्चात में होटल आएगा, उसे उस समय का होटल का बिल देना होगा।
उनको चाय नाश्ता परोसने वाला वेटर कालू यह सब सुन रहा था, उसने कहा कि यदि मैं भी यहां रहा तो मैं इस होटल में आप सब का प्रतीक्षा करूंगा।
आगे की शिक्षा के लिए चारों अलग अलग हो गए। दिनेश के पिता के बदली होने पर वह नगर छोड़ चुका था, संतोष आगे की पढ़ाई के लिए अपने चाचा के पास चला गया, मनीष और प्रवीण को नगर के अलग-अलग कॉलेजों में प्रवेशा मिला।
अंतकार मनीष भी नगर छोड़कर चला गया।
दिन बीते , महीने बीते , वर्ष भी बीत गए। पचास वर्षों में उस नगर में बहुत परिवर्तन आया, नगर की आपश्चाती बढ़ी, सड़कों, फ्लाईओवर, मेट्रो ने बदल कर रख दी थी नगर की सूरत।
अब वह होटल फाइव स्टार होटल बन गया था, वेटर कालू अब कालू सेठ बन गया और इस होटल का मालिक बन गया।
पचास वर्ष पश्चात, निर्धारित तिथि, 01 अप्रैल, विक्रमी संवत , हिन्दू नव वर्ष को दोपहर में, एक लग्जरी कार होटल के दरवाजे पर आई
दिनेश कार से उतरा और पोर्च की ओर चलने लगा, दिनेश के पास अब तीन ज्वैलरी शो रूम हैं। दिनेश होटल के मालिक कालू सेठ के पास पहुंचा, दोनों एक दूसरे को देखते रहे।
कालू सेठ ने कहा कि प्रवीण सर ने आपके लिए एक महीने पहले एक टेबल बुक किया है।
मस्ती मस्ती में दिनेश मन ही मन प्रसन्न था कि वह चारों में से पहला था इसलिए उसे आज का बिल नहीं देना पड़ेगा और वह इसके लिए अपने मित्रों का मजाक उड़ाएगा।
एक घंटे में संतोष आ गया, संतोष नगर का बड़ा बिल्डर बन गया। अपनी उम्र के हिसाब से वह अब एक बूढ़े सीनियर सिटिजन की प्रकार लग रहे था।
अब दोनों बातें कर रहे थे और दूसरे मित्रों का प्रतीक्षा कर रहे थे, तीसरा मित्र मनीष आधे घंटे में आ गया। उससे बात करने पर दोनों को पता चला कि मनीष भी बड़ा बिजनेसमैन बन गया है।
तीनों मित्रों की आंखें बार बार दरवाजे पर जा रही थीं, प्रवीण कब आएगा..? इतनी देर में कालू सेठ ने कहा कि प्रवीण सर की ओर से एक मैसेज आया है, तुम चाय का नाश्ता शुरू करो, मैं आ रहा हूं।
तीनों पचास वर्ष पश्चात एक-दूसरे से मिलकर प्रसन्न थे। नए वर्ष का मौका था। घंटों तक मजाक चलता रहा, लेकिन प्रवीण नहीं आया।
कालू सेठ ने कहा कि फिर से प्रवीण सर का मैसेज आया है, आप तीनों अपना मनपसंद मेन्यू चुनकर भोजन शुरू करें।
भोजन खा लिया तो भी प्रवीण नहीं दिखा, बिल मांगते ही तीनों को उत्तर मिला कि ऑनलाइन बिल का भुगतान हो गया है।
शाम को एक युवक कार से उतरा और भारी मन से निकलने की तैयारी कर रहे तीनों मित्रों के पास पहुंचा, बारी बारी तीनो के पैर छुए। तीनों उस आदमी को देखते ही रह गए, उसकी शक्ल प्रवीण से हूबहू मिलती थी,मानो बीते समय का युवा प्रवीण सामने खड़ा हो।
युवक कहने लगा, मैं आपके मित्र का बेटा रवि हूं, मेरे पिता का नाम प्रवीण है। पिताजी ने मुझे आज आपके आने के बारे में बताया, उन्हें इस दिन का प्रतीक्षा था, लेकिन पिछले महीने एक गंभीर बीमारी के कारण उनका निधन हो गया।
उन्होंने मुझे आप सभी से जानबूझ कर देर से मिलने के लिए कहा। ये भी कहा कि मेरे मित्र तब वो बिल्कुल नहीं हंसेंगे, जब उन्हें पता चलेगा कि मैं इस दुनिया में नहीं हूं, और वे एक-दूसरे से मिलने की प्रसन्नता खो देंगे इसलिए उन्होंने मुझे देर से आने का आदेश दिया।
उन्होंने मुझे उनकी ओर से आपको गले लगाने के लिए भी कहा, हिन्दू नव वर्ष प्रतिपदा की बधाई देने के लिये भी कहा। ये कहकर रवि ने अपने दोनों हाथ फैला दिए। सभी ने मिलकर उसे गले लगा लिया।
आसपास के लोग उत्सुकता से इस दृश्य को देख रहे थे, चारो को गले मिलते हुए देखकर, उन सिखो ये लग रहा था कि उन्होंने इस युवक को भी कहीं देखा है, ये उनके नगर का एक प्रसिद्ध चेहरा था।-"रवि"
रवि ने कहा कि मेरे पिता शिक्षक बने, और मुझे पढ़ाकर कलेक्टर बनाया, आज मैं इस नगर का कलेक्टर हूं।
"सब चकित थे, अब बारी कालू सेठ की थी, कालू सेठ ने कहा कि इस नव वर्ष के अवसर पर मैं ये घोषणा करता हूँ कि आपकी मित्रता में अब पचास वर्ष पश्चात नहीं, बल्कि हर पचास दिन में हम अपने होटल में बार-बार मिलेंगे, और हर बार मेरी और से एक भव्य पार्टी होगी"
_अपने सगे-सम्बन्धियों से मिलते रहो, मित्रों मिलने के लिए बरसों का प्रतीक्षा मत करो, जाने किसकी बिछड़ने की बारी आ जाए और पता भी ना चले_
_परिवार तथा मित्रो के साथ रहें, जिंदा होने की प्रसन्नता महसूस करें, केवल नव वर्ष त्योहारों के दिन ही नहीं अन्य सभी अवसरों, धार्मिक उत्सवों तथा दिन प्रतिदिन मिलने पर भी गले लगाया करें। आपकी मित्रता प्रगाढ़ हो जाएगी_
_प्रभु आप सिखा कल्याण करें, इस नव वर्ष के अवसर पर स्मरण कीजिये आप अपने मित्र से कब गले मिले थे, रिश्तेदारों के घर कब गए थे या आपने उनको अपने घर कब बुलाया था। मुझे घर कब बुला रहे हैं। 😋
प्रेषक-
दिनेश बरेजा
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