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शनिवार, 21 मई 2022

“ उत्तरदायित्व-भाग लो या भाग लो ” कहानी ~ नमः वार्ता

🔆💥 जय श्री राम 🔆💥

  “ उत्तरदायित्व-भाग लो या भाग लो ” कहानी ~ नमः वार्ता

सरला का  विवाह हुआ था। ससुराल से 1 महीने पश्चात जब अपने मायके लौटी तो
मां के सामने रोने बैठ गई।

अश्रु बहाते हुए बोली मां तुमने मुझे किस घर में पटक दिया।
वहां तो मेरी कोई सम्मान ही नहीं है ,सारा दिन नौकरानी की प्रकार रसोई घर में खड़ी रहती हूं।
किसी को भी दया नहीं आती,
सास ससुर की रोटी सेकना दो, छोटे देवर की रोटियां सेकना,
एक नंद है उसकी रोटियां सेकना,आए दिन सासू मां के रिश्तेदार आते रहते हैं।

उन सिखे लिए भी मुझे ही चाय नाश्ता भोजन वगैरह तैयार करना होता हैं। प्रतिदिन गंदे कपड़ों के ढेर इकट्ठे हो जाते हैं। आराम ही नहीं मिलता जीवन नरक सी बन गई 
हैं। नंनद को बिस्तर पर बैठे-बैठे ही सब कुछ चाहिए।

मुझे अपने पति पर तब क्रोध आई, जब उन्होंने महीने की पूरी वेतन सासू मां के हाथ में सौंप दी और मुझसे कहा तुम्हें जो कुछ भी चाहिए एक पर्ची पर लिख देना, मैं शाम को ड्यूटी से छुट्टी होने पर लेता आऊंगा।

सरला की मां ने कहा -"भाग लो या भाग लो"

तुम्हारे पास दो ही रास्ते हैं। एक तुम उत्तरदायित्व में भाग लो और वहीं रहो और उन सब की सेवा करो क्योंकि वह परिवार भी अब तुम्हारा ही हैं।

या दूसरा उत्तरदायित्व से भाग लो। यदि तुम चाहती हो तो तुम अपने पति को किसी किराए के मकान में ले जा सकती हो।
वहां तुम्हें किसी का भोजन नहीं बनाना पड़ेगा। किसी के कपड़े नहीं धोने पड़ेंगे। पति की पूरी वेतन भी हाथ में ही तुम्हें मिलेगी। 

लेकिन स्मरण रखना जब तुम्हारे कोई पुत्र होगा और जब वह बड़ा हो जाएगा। उसकी भी विवाह होगी। घर में तुम्हारे जब बहू आएगी।

उस समय, तुम यही चाहोगी कि मेरा बेटा और मेरी बहू मेरे ही साथ रहे और मैं अपने नाती पोतों के साथ खेलूं।

प्यास लगने पर मेरे नाती पोते दौड़ कर मेरे पास, मेरे लिए एक गिलास जल ले आएंगे। कोई ऐनक ढूंढ कर मेरे हाथ में थमा देगा।

कोई कहेगा-"दादी जी भोजन बन चुका हैं थाली लग गई हैं"। "आओ हम सब मिलकर भोजन करेंगे"

मां ने कहना जारी रखा

जिन कामों को तुम दुख बता रही हो, एक-एक करके गिना रही हो, वास्तव में यही जीवन के महत्वपूर्ण क्षण हैं। एक सफल ग्रहणी अपने हर एक कार्यों को सरल बना कर झट निपटा देती हैं।

उसका रोना नहीं रोती।
 दुनिया में जो लोग सफल हुए हैं, वह अपनी उत्तरदायित्व से भागते नहीं, बल्कि अपनी उत्तरदायित्व को  निभा लेते हैं। 

सरला की आंख में अश्रु थे। सरला ने अपना थैला उठाया और बोली-" बस मां, मैं समझ गई" मैं चली अपने ससुराल। शाम होने वाली हैं, सासू मां के पैरों में दर्द रहता हैं। उनके घुटनों की मालिश भी करनी हैं। सरला इतना कह कर मुस्कुराती हुई ।ससुराल की ओर चल दी।

प्रेषक-
 दिनेश बरेजा 


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