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शुक्रवार, 20 मई 2022

“कीचड़ में खिलता कम ” कहानी ~ नमः वार्ता


🔆💥 जय श्री राम 🔆💥

“कीचड़ में खिलता कम ” कहानी ~ नमः वार्ता

आज मेरा बीएससी के पहले वर्ष के परीक्षा का परिणाम आया था। सभी छात्र पिछले 2 महीने से इस पल की प्रतीक्षा कर रहे थे। जैसा सभी को विश्वाश था कि सुषमा कक्षा में प्रथम रहेगी, परिणाम भी वैसा ही था। 

सुषमा का नाम पहले नंबर पर था लेकिन दूसरे नंबर का नाम उतना ही अधिक चौंकाने वाला और आशा के उलट था। यह नाम था जय का। जय ने अपने 3 साथियों के साथ, जो पिछले 2 वर्षों से पहले वर्ष में ही फेल हो रहे थे, अपनी इमेज इस प्रकार की बना ली थी कि कालेज की कोई भी लड़की, चाहे वह सीनियर हो या क्लासमेट, उन का नाम सुन कर ही घबरा जाती थीं। 

कालेज में आने के बावजूद जय और उस के वे साथी कभी भी क्लास अटैंड नहीं करते थे। हां, इतना अवश्य था, प्रैक्टिकल की क्लास वे कभी मिस नहीं करते थे। वैसे, इस बार जय के तीनों साथी भी पास हो गए थे, पर वे सभी अधिक नंबर नहीं लाए थे।

जय का इस प्रकार दूसरा नंबर पाना किसी के भी गले नहीं उतर पा रहा था, जबकि वास्तविकता यह थी कि जय ने इस के लिए अत्यंत मेहनत की थी। जय के पिता पास के किसी गांव में रेवैन्यू अफसर थे और वे चाहते थे कि जय को पढ़ाई के लिए बढिया वातावरण मिले जो उस के भविष्य के लिए अच्छा हो। इसी कारण से जय घर परिवार से अलग रह कर इस छोटे से नगर में पढ़ाई कर रहा था।

जय के घर से आते समय पिता ने उसे कड़े शब्दों में चेतावनी दे रखी थी कि यदि परीक्षा में अच्छे नंबर नहीं आए तो उसे गांव में रह कर पढ़ाई करनी होगी। जय ने अपना दैनिक कार्यक्रम इस प्रकार बनाया हुआ था कि वह रात में 12 बजे से 3 बजे तक एकांत में निष्ठापूर्वक से पढ़ाई करता था। यही कारण थी कि वह दिनभर आवारागर्दी करने के पश्चात इतने अच्छे नंबरों से पास हो गया था।

चूंकि यह बात सभी छात्रों को पता नहीं थी, इसी कारण से न केवल क्लासमेट बल्कि टीचिंग स्टाफ भी यही मान रहा था कि या तो जय का कोई रिश्तेदार यूनिवर्सिटी में बड़े वाले पद पर है जिस ने उसे लाभ पहुंचाया है या उस ने जम कर नकल की है।

जय भी इन बातों से अनभिज्ञ नहीं था, पर उस ने कभी इन बातों पर बवाल नहीं किया था।
रिजल्ट अच्छा आया तो जय के ग्रुप की दुष्टता भी बढ़ गईं। अब तो किसी भी लड़की पर फब्तियां कसना, घर तक पीछा करना, साइकिल की हवा निकाल देना, गाडि़यों के सीट कवर फाड़ देना जैसे काम उन के मुख्य बन गए थे।

किसी साधारण छात्र का मामला होता तो प्रधानाचार्य तुरंत अपना निर्णय सुना देते, पर यहां जय जैसे एक पोजीशन होल्डर का भी नाम जुड़ा हुआ था, इसलिए वे प्रकरण के पूर्ण तक जाना चाहते थे।

प्रधानाचार्य महोदय ने जय समेत चारों छात्रों को मिलने का आदेश जारी कर दिया। जैसी उम्मीद थी चारों में से कोई भी मिलने नहीं पहुंचा। कड़े शब्दों के साथ दोबारा आदेश जारी हुआ। इस बार न आने की दशा में घर पर सूचना भेजने की बात लिखी गई थी।

जय के बाकी तीनों साथी तो तय समय पर प्रधानाचार्य के औफिस पहुंच गए, पर जय फिर भी नहीं पहुंचा। तीनों को भविष्य में दुष्टता न करने की चेतावनी दे कर छोड़ दिया गया।

जय के न आने पर प्रधानाचार्य महोदय ने स्वयं निरीक्षण करने का निर्णय लिया। टाइम टेबल के अनुसार उस समय जय की जंतु विज्ञान की कक्षा चल रही थी। प्रधानाचार्य महोदय ने देखा कि वह पूरी नियमानुसार से अपने मैटीरियल की पहचान कर के अच्छी ड्राइंग के साथ अपनी कौपी पर उतार रहा था, जबकि अधिकतर छात्र या तो अपने किसी साथी से या अपने टीचर से पूछ रहे थे।

प्रधानाचार्य महोदय ने उसे डिस्टर्ब करना उचित नहीं समझा। वे वहीं लैबोरेटरी में बैठ कर कक्षा समाप्त होने का प्रतीक्षा करने लगे। जब सभी छात्र बाहर जाने लगे तो प्रधानाचार्य महोदय ने जय को वहीं रोक लिया।

बाहर निकले सभी लोगों में एक ही चर्चा थी कि अब जय को कालेज से बाहर कर दिया जाएगा। लड़कियां मुख्यताः प्रसन्न थीं।

जय, मुझे अपनी प्रैक्टिकल कौपी दिखाओ,’’ प्रधानाचार्य महोदय कुछ कड़े व गंभीर स्वर में बोले

‘‘लीजिए सर,’’ जय कौपी बढ़ाते हुए बोला

चूंकि प्रधानाचार्य महोदय स्वयं भी इसी विषय को पढ़ चुके थे, इसलिए उन्हें समझने में जरा भी परेशानी नहीं हुई। उलटे जय की साफसुथरी ड्राइंग और स्वयं के बनाए नोट्स ने उन को काफी प्रभावित किया। कौपी समय पर चैक भी कराई हुई थी।

यह देख कर प्रधानाचार्य महोदय प्रसन्न भी हो गए, क्योंकि इस प्रकार के अधिकतर छात्र वर्ष के अंत में अपना काम दिखावे के लिए ही चैक कराते हैं

‘‘2-2 नोटिस देने के पश्चात भी तुम मिलने नहीं आए. इस का अर्थ समझते हो? तुम अपनेआप को बड़ा तीसमारखां समझते हो? जानते हो, तुम्हारे इस काम के लिए तुम्हें कालेज से निकाला भी जा सकता है,’’ प्रधानाचार्य महोदय सपाट स्वर में बोले

‘‘जी, मैं जानता हूं कि मैंने आप के और्डर को नहीं माना. लेकिन उस के पीछे कारण केवल इतनी थी कि मैं आप को अपनी वास्तविकता का परिचय देना चाहता था,’’ जय नरम स्वर में बोला

‘‘वास्तविकता? कैसी वास्तविकता?’’ प्रधानाचार्य महोदय ने आचार्य से जय की और देखते हुए पूछा

‘‘सर, हर वर्ष जन्मदिन पर पिताजी मुझे कुछ न कुछ उपहार देते आए हैं। पिछले वर्ष मेरा 18वां जन्मदिन था। मैं कालेज में एडमिशन लेने की तैयारी कर रहा था। तब पिताजी ने मुझे समझाया और बताया था कि अब मेरा बचपना समाप्त हो चुका है और मुझे गंभीरता से अपने और समाज के बारे में सोचना चाहिए।

‘‘मैं तो हमेशा से ही अच्छा छात्र रहा हूं। इसी कारण से उन्हें मेरे भविष्य की चिंता अधिक नहीं थी पर वे चाहते थे कि मैं समाज के लिए कुछ ठोस काम करूं।

अधिक नहीं तो कम से कम किसी एक व्यक्ति को तो प्रसन्नहाल जीवन दे सकूं।
‘‘पिताजी की इस इच्छा को मैं ने व्रत के रूप में लिया और इन 3 साथियों को, जो पिछले 2 वर्षों से फर्स्ट ईयर में फेल हो रहे थे, को एक मिशन के रूप में लिया।

 स्पष्ट है कि परिवार के साथ रह कर मैं अपने मिशन में सफल नहीं हो सकता था, इसीलिए घर से दूर कमरा ले कर यहां रहता हूं। एक दिन में मैं इन की कर्म नहीं बदल सकता था, इसीलिए इन्हीं के रंग में रंग कर इन्हें सुधारने की प्रयास शुरू कर दीं।

‘‘मैं ने कुछ कहावतों को अपने मिशन का आधार बनाया, जैसे यदि नाले की सफाई करनी हो तो गंदगी में उतरना ही पड़ता है या लोहे को लोहा काटता है।

परिणाम आप के सामने है।
‘‘सर, जो 3 लोग पिछले 2 वर्षों से फेल हो रहे थे, इस बार संतोषजनक ढंग से पास हो गए हैं। उन लोगों जैसा बनने के लिए मुझे थ्योरी की क्लासें छोड़नी पड़ती हैं। उन तीनों को यह बात पता नहीं है कि मैं इस प्रकार के किसी मिशन पर हूं।

जहां तक लड़कियों को छेड़ने या परेशान करने की बात है तो 2 वर्ष पहले तक ये तीनों किसी भी लड़की का दुपट्टा खींच कर भाग जाने, पैन से स्याही छिड़क कर उन के कपड़े गंदे करने या धक्कामुक्की करने जैसे काम कर के प्रसन्न होते थे, पर अब धीरेधीरे उन लोगों के स्वभाव में परिवर्तन आ रहा है। 

अब उन की कर्म कमैंट्स पास करने तक ही सिमट गई हैं और मुझे विश्वाश है कि कालेज से पास आउट होने पर वे भी दूसरे छात्रों की प्रकार सम्मान के साथ ही जाएंगे। तीनों की अच्छी नौकरी लग जाने तक मेरा काम पूरा नहीं होगा इसलिए इन तीनों का साथ मैं कतई नहीं छोड़ सकता"

प्रधानाचार्य महोदय और उन के साथ बैठे टीचरों में से किसी को भी इस प्रकार के उत्तर की उम्मीद नहीं थी

‘‘बहुत अच्छा जय…’’ प्रधानाचार्य महोदय खड़े हो कर उस का कंधा थपथपाते हुए बोले, ‘‘मुझे अपने रिटायर होने के पश्चात भी इस बात का गर्व रहेगा कि मैं एक ऐसे कालेज का प्रधानाचार्य था जहां शिक्षा न केवल अच्छा आदमी बनने को कहती थी, बल्कि अच्छे आदमी के जरीए अच्छा व्यक्ति भी बनाती थी

‘‘मैं तुम्हें और तुम्हारे पूरे ग्रुप को शुभकामनाएं देता हूं। मुझे भविष्य के परिणाम जानने की उत्सुकता रहेगी.’’
साथ बैठे दोनों टीचरों ने भी सहमति और सम्मान में सिर हिलाया

आज लगभग 6 वर्ष पश्चात जय प्रधानाचार्य महोदय के घर जा रहा था। वैसे, प्रधानाचार्य महोदय बीचबीच में बुला कर जय से रिपोर्ट लेते रहते थे पर पिछले 4 वर्षों से अर्थ रिटायरमैंट के पश्चात से उन का कोई संपर्क नहीं था

डोरबैल बजाने पर प्रधानाचार्य महोदय ने ही दरवाजा खोला.
‘‘सर, मैं जय,’’ कहते हुए उस ने झुक कर प्रधानाचार्य महोदय के पैर छू लिए

‘‘अरे, तुम्हें परिचय देने की क्या आवश्यकता है। क्या मैं तुम्हें पहचानता नहीं और सुनाओ, कैसे आना हुआ? और तुम्हारा मिशन कितना सफल हुआ?’’ प्रधानाचार्य महोदय ने अपनेपन से आशीर्वाद देते हुए पूछा

‘‘सर, आप के आशीर्वाद से मैं अपने मिशन में पूरी प्रकार से सफल रहा हूं। उन तीनों में से जो शारीरिक गठन में सब से अच्छा था, उसे वन विभाग में सहायक वन विस्तार अधिकारी के पद पर नौकरी मिल गई है।

दूसरा शिक्षा विभाग में मिडिल स्कूल में टीचर बन गया है और तीसरे ने प्रधानमंत्री प्रतिदिनगार योजना में कर्ज ले कर एक छोटी सी फैक्टरी खोल ली है और अब कुछ लोगों को प्रतिदिनगार भी दे रहा है

‘‘मैं ने स्वयं एमएससी अव्वल नंबर से पास की है। राज्य लोक सेवा आयोग द्वारा आयोजित परीक्षा व साक्षात्कार पास करने के पश्चात आज मेरा चयन डिप्टी कलक्टर के रूप में हो गया है, इसीलिए मैं आप का आशीर्वाद लेने आया हूं’’

जीवनभर लैक्चर देने वाले प्रधानाचार्य महोदय के पास आज शब्दों का अकाल पड़ गया था। वे केवल गर्व के साथ जय के सिर पर हाथ फेर रहे थे-संकलित
प्रेषक-
 दिनेश बरेजा 


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