फिल्मों में क्यों ठाकुर ही गुंडा होते है, और घोड़े में हीरो को बांधकर घसीटते थे, और हिरो अक्सर गरीब और इमानदार का किरदार निभाता है, और गुंडे के रोल में अक्सर ठाकुरों को रखा जाता है और किसी कमजोर की ज़मीन क़ब्ज़ा करते थे??
फ़िल्मों में पंडित जी ही क्यों लालची होते है, और एक हाथ में आरती की थाली तो दूसरे हाथ में किसी अबला का इज्जत लूटने के प्रयास में उसका हाथ पकड़ के खींचते हुये दिखाया जाता है??
और लालाजी ही क्यों हीरो की माँ का कंगन गिरवी रखते थे तथा उसकी बेटी पर बुरी नजर रखते थे??
और क्यों फ़िल्मों में हमेशा मौलवी अच्छे और भले होते है और ईमान के पक्के होते है, और सबकी मदद करते हैं??
किसी के पास इस बात की कोई पुख्ता जानकारी या वैज्ञानिक कारण मौजूद है कोई जवाब है??
किस प्रकार इस फिल्मी भांडो द्वारा फ़िल्मों के माध्यम से धीरे धीरे समाज की सेवा करने वाले हीरो को बिलेन और देश को तोड़ने वाले बिलेन को हीरो बना दिया गया,
इसपे किसी का ध्यान कभी गया ही नहीं और हम सब फ़िल्म देखकर ताली बजाते रहेंगे, ऐसे ही हिन्दू एकता खत्म होने के कगार पर है सब आपस में एक दूसरे का विनाश करेंगे।
जागो हिन्दुओं जागो इनका विरोध करो हमारे धर्म को धंधा बनाया जा रहा है, इन फिल्मी भांडों का विरोध करो नहीं तो कुछ नहीं बचेगा।
#जय_श्री_राम🙏
#जय_राजपुताना🗡️
@ॐ_नमः_वार्ताः!
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