#_____महाराणा_सरदारसिंह_जी_के_____
#_______इतिहास_का_भाग_8_________
जनवरी, 1841 ई. भील कोर के गठन हेतु खेरवाड़ा में भीलों की एक सेना संगठित करने का कार्य शुरू किया गया।
9 अप्रैल, 1841 ई. #गोगुन्दा_में_पड़ाव
महाराणा सरदारसिंह धींगा गणगौर के अवसर पर अपने ससुराल गोगुन्दा पधारे (धींगा गणगौर नामक त्योहार की शुरुआत महाराणा राजसिंह जी प्रथम द्वारा की गई थी)
यहां महाराणा ने आड़ा स्वरूपसिंह, रोहड़िया बारहट लक्ष्मणदान आड़ा चिमनसिंह महडू प्रभुदान आदि
चारणों को हाथी व सिरोपाव दान में दिए।
गोगुन्दा के राजराणा शत्रुसाल ने महाराणा को फौज समेत दावत दी व चारणों को सिरोपाव दिए 3 दिन गोगुन्दा में ठहरकर महाराणा उदयपुर पधारे।
7 जून, 1841 ई. #चारभुजा_यात्रा
महाराणा सरदारसिंह चारभुजा, कांकरोली, नाथद्वारा दर्शन करते हुए उदयपुर पहुंचे।
23 अक्टूबर, 1841 ई. "स्वरूपसिंह को उत्तराधिकारी घोषित करना"
महाराणा जवानसिंह की तरह महाराणा सरदारसिंह के भी कोई पुत्र नहीं था जिस कारण किसी नज़दीकी रिश्तेदार को गोद लेने की आवश्यकता हुई इस मसले पर महाराणा ने सदरलैंड व रॉबिन्सन से भी बातचीत की।
महाराणा सरदारसिंह का अपने छोटे भाई शेरसिंह से झगड़ा होने के कारण उन्होंने शेरसिंह से भी छोटे भाई स्वरूपसिंह को गोद लेकर उत्तराधिकारी घोषित किया।
अगले भाग में महाराणा सरदारसिंह के देहांत के बारे में लिखा जाएगा मेवाड़ का इतिहास पढ़ते रहे और शेयर करते रहे।
जय राजपूताना जय मां भवानी धर्म क्षत्रिय युगे युगे।
@ॐ_नमः_वार्ताः!
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