🔆💥 जय श्री राम 🔆💥
“ नेवला या मेंढक प्रवित्ती ” कहानी ~ नमः वार्ता
सुरेश बहुत परेशान था। पिछले कुछ दिनों से एक के उपरांत एक उसे किसी न किसी दिक्कत का सामना करना पड़ रहा था। कभी ऑफिस में बॉस के साथ बहस हो जाती तो कभी घर पर वाइफ से तो कभी उसे किसी कलीग की बात ठेस पहुंचा दे रही थी।
उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या करे इसलिए वो एक आश्रम में अपने गुरु जी के पास पहुंचा और अपनी समस्या बता दी।
“क्या तुम जानते हो नेवले सांप को मारकर खा जाते हैं?”
“क्या?”
“कितना अद्भुत है, ये छोटे से नेवले इतने विषीले कोबरा सांप तक को मारकर खा जाते हैं। ऐसा लगता है कि इन नेवलों को साँपों ने इतनी बार काटा है कि उनके अन्दर एक प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो गयी है और अब उनके ऊपर इस विष का कोई असर नहीं होता!”
“क्या?”,सुरेश को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि गुरूजी क्या बात कर रहे हैं।
“और क्या तुम जानते हो, जंगली इलाकों में एक प्रजाति के छोटे-छोटे मेंढक होते हैं जो अत्यधिक जहरीले होते हैं। वे जन्मजात ऐसे नहीं होते, वे प्रतिदिन थोड़ा-थोड़ा कर के ऐसा भोजन खाते हैं कि उनके पूरे शरीर में विष भर जाता है और लोग उनसे दूर ही रहते हैं।
ये सुनकर सुरेश से रहा नहीं गया, और वह झल्लाहट में बोला, ” मुझे समझ नहीं आता कि मैंने आपसे अपनी लाइफ की एक समस्या शेयर की और आप मुझे जंतु विज्ञान का पाठ पढ़ा रहे हैं!”
गुरु जी मुस्कुराए।
बेटा, जब तुम विष रुपी दर्द या परेशानी को अनुभव करो तो तुम्हारे पास दो विकल्प होते हैं। तुम नेवले की प्रकार उस अनुभव को विष के प्रति प्रतिरोधक क्षमता विकसित करने में प्रयोग कर सकते हो यानि कि तुम विपरीत परिस्थितियों का सामना करके स्वयं को और मजबूत बना सकते हो… या तुम उन मेंढकों की प्रकार बन सकते हो जो विष को अपने शरीर का हिस्सा बनाते जाते हैं और इसी कारण से से हर कोई उनसे दूरी बना कर रखना चाहता है।
ऐसा कोई व्यक्ति नहीं जिसके साथ कभी कुछ बुरा नहीं होता, ऐसा होने पर कोई कैसे प्रितिक्रिया करता है ये उसके ऊपर है!
बताओ तुम कैसे बनना चाहोगे…नेवले की प्रकार या मेंढक के जैसे?
जीवन में कटु अनुभव को टाला नहीं जा सकता। जो किया जा सकता है वो ये कि हम इन अनुभवों को कैसे लेते हैं…हम स्वयं पे इनका क्या असर होने देते हैं। किसी खट्टे अनुभव की कारण से स्वयं में खटास ला देना आसान ज़रूर है पर ऐसा करना हमें उन मेंढकों की प्रकार विषीला बना देता है और धीरे-धीरे हमारे मित्रों, रिश्तेदारों और सम्बंधियों को हमसे दूर करने लगता हैं…लेकिन यदि हम उस कटु अनुभव को सकारात्म रूप से लेते हैं और स्वयं को मजबूत बनाते हैं तो हम उन नेवलों की प्रकार सशक्त हो जाते हैं और पुनः बड़ी से बड़ी बाधाओं को पार करना सीख जाते हैं। इसलिए चलिए प्रयास करें कि जीवन में आने वाली बाधाओं की कारण से हम उनसे पार पाना सीखें ना कि स्वयं ही समस्या बन जाएं-दिनेश बरेजा
प्रेषक-
दिनेश बरेजा
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