अनुवादक

गुरुवार, 9 जून 2022

“ गुरु के बंदों की इफ्तार पार्टी ” कहानी ~ नमः वार्ता

🔆🔆🔆 जय श्री राम🔆🔆🔆

गुरु के बंदों की इफ्तार पार्टी

भाई सती दास ,भाई मती दास और भाई दयाला को नाना विघि यातनाएं देकर हत्या करने के पश्चात अंततः मुगलों ने गुरु तेग बहादुर जी की भी हत्या कर दी और सिर धड़ से अलग कर दिया 

इसके पश्चात मृत शरीर को अपमानित करने के लिये शरीर के टुकड़े कर पुरानी दिल्ली के चारों दरवाजों पे लटकाने का आदेश दे दिया ।
बताते हैं कि उस शाम तेज़ आंधी तूफान आया और उसी अंधड़ का लाभ उठा के गुरुजी के शिष्य सेठ लक्खी शाह ने गुरु जी का धड़ उठा लिया और अपने घर मे छिपा के घर को आग लगा दी । घर चाहे जल कर भस्म हो गया पर उसके साथ ही गुरु जी के धड़ का अंतिम संस्कार भी हो गया ।

उसी समय एक अन्य शिष्य भाई जैता ने गुरु जी का शीश उठा लिया और उसे कपड़े में लपेट के दिल्ली से आनंद पुर साहिब के लिये कूच कर गए। जिससे कि गुरु जी के शीश का अन्तिम संस्कार आनंदपुर साहिब में किया जा सके ।

दिल्ली से अधिकतम 20 मील ही जा पाये थे कि मुगल सैनिक पीछा करते हुए आ गए । भाई जैता और उनके साथी निकटतम के गांव गढ़ी में जा के छिप गए । 
मुगलों की सेना ने गांव को घेर लिया और समाचार भिजवाई कि शीश वापिस कर दो नही तो पूरे गांव का कत्लेआम कर दिया जाएगा ।

गांव ने कहा कि कत्लेआम स्वीकृत है पर शीश वापस नही जाएगा ।
तभी एक बुजुर्ग खड़े हुए और उन्होंने कहा ,
 ""नही"" 
पूरे गांव को बलिदान देने की ज़रूरत नही है । शीश वापस कर दो । 

इतना कह के अपने बेटे को बुलाया और अपनी हवेली में चले गए । कुछ देर पश्चात उनका बेटा लौटा तो उसके हाथ मे बाप का शीश था।

मुगलों को वही शीश दे दिया गया और गुरु जी का शीश ले कर भाई जैता रात में ही आनंदपुर साहिब के लिए निकल गए । 

उस बुज़ुर्ग का नाम था दादा कुशाल सिंह दहिया । आपने गुरु जी के शीश की रक्षा के लिए अपना शीश बलिदान कर दिया था । इसके पश्चात उस गढ़ी नामक गाँव का नाम बदल के दादा के नाम पे कुशाल गढ़ी कर दिया ।

कालांतर में दशम गुरु महाराज श्री गुरु गोविंद सिंह जी ने इसे नया नाम दिया
 ""बढ़खालसा"" 
वो बढ़खालसा गांव आज भी वहीं है। उस हवेली में , जहां दादा कुशाल सिंह दहिया ने अपना शीश दिया, आज एक भव्य गुरुघर स्थापित है । हर वर्ष दादा कुशाल सिंह दहिया के स्मरण में मेला भी लगता है । 

इसी गांव बढ़ खालसा के एकदम पास में 1 km दूरी पर सिंधु बॉर्डर में किसान आंदोलनकारियों की जब इफ़्तार पार्टी हुई थी तो मेरा मन बहुत रोया था-दिनेश बरेजा
प्रेषक-
दिनेश बरेजा
🔆🔆🔆 जय श्री राम🔆🔆🔆

गुरु के बंदों की इफ्तार पार्टी

भाई सती दास ,भाई मती दास और भाई दयाला को नाना विघि यातनाएं देकर हत्या करने के पश्चात अंततः मुगलों ने गुरु तेग बहादुर जी की भी हत्या कर दी और सिर धड़ से अलग कर दिया 

इसके पश्चात मृत शरीर को अपमानित करने के लिये शरीर के टुकड़े कर पुरानी दिल्ली के चारों दरवाजों पे लटकाने का आदेश दे दिया ।
बताते हैं कि उस शाम तेज़ आंधी तूफान आया और उसी अंधड़ का लाभ उठा के गुरुजी के शिष्य सेठ लक्खी शाह ने गुरु जी का धड़ उठा लिया और अपने घर मे छिपा के घर को आग लगा दी । घर चाहे जल कर भस्म हो गया पर उसके साथ ही गुरु जी के धड़ का अंतिम संस्कार भी हो गया ।

उसी समय एक अन्य शिष्य भाई जैता ने गुरु जी का शीश उठा लिया और उसे कपड़े में लपेट के दिल्ली से आनंद पुर साहिब के लिये कूच कर गए। जिससे कि गुरु जी के शीश का अन्तिम संस्कार आनंदपुर साहिब में किया जा सके ।

दिल्ली से अधिकतम 20 मील ही जा पाये थे कि मुगल सैनिक पीछा करते हुए आ गए । भाई जैता और उनके साथी निकटतम के गांव गढ़ी में जा के छिप गए । 
मुगलों की सेना ने गांव को घेर लिया और समाचार भिजवाई कि शीश वापिस कर दो नही तो पूरे गांव का कत्लेआम कर दिया जाएगा ।

गांव ने कहा कि कत्लेआम स्वीकृत है पर शीश वापस नही जाएगा ।
तभी एक बुजुर्ग खड़े हुए और उन्होंने कहा ,
 ""नही"" 
पूरे गांव को बलिदान देने की ज़रूरत नही है । शीश वापस कर दो । 

इतना कह के अपने बेटे को बुलाया और अपनी हवेली में चले गए । कुछ देर पश्चात उनका बेटा लौटा तो उसके हाथ मे बाप का शीश था।

मुगलों को वही शीश दे दिया गया और गुरु जी का शीश ले कर भाई जैता रात में ही आनंदपुर साहिब के लिए निकल गए । 

उस बुज़ुर्ग का नाम था दादा कुशाल सिंह दहिया । आपने गुरु जी के शीश की रक्षा के लिए अपना शीश बलिदान कर दिया था । इसके पश्चात उस गढ़ी नामक गाँव का नाम बदल के दादा के नाम पे कुशाल गढ़ी कर दिया ।

कालांतर में दशम गुरु महाराज श्री गुरु गोविंद सिंह जी ने इसे नया नाम दिया
 ""बढ़खालसा"" 
वो बढ़खालसा गांव आज भी वहीं है। उस हवेली में , जहां दादा कुशाल सिंह दहिया ने अपना शीश दिया, आज एक भव्य गुरुघर स्थापित है । हर वर्ष दादा कुशाल सिंह दहिया के स्मरण में मेला भी लगता है । 

इसी गांव बढ़ खालसा के एकदम पास में 1 km दूरी पर सिंधु बॉर्डर में किसान आंदोलनकारियों की जब इफ़्तार पार्टी हुई थी तो मेरा मन बहुत रोया था-दिनेश बरेजा
प्रेषक-
दिनेश बरेजा

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