अनुवादक

मंगलवार, 7 जून 2022

“ कच्चा लालच ” कहानी ~ नमः वार्ता

🔆💥 जय श्री राम 🔆💥


कच्चा लालच


एक बार की बात है एक बढ़ई था। वह दूर किसी नगर में एक मुल्ला जी के यहाँ काम करने गया। एक दिन काम करते-करते उसकी आरी टूट गयी। बिना आरी के वह काम नहीं कर सकता था, और वापस अपने गाँव लौटना भी कठिन था, इसलिए वह नगर से सटे एक गाँव पहुंचा। इधर-उधर पूछने पर उसे लोहार का पता चल गया।


वह लोहार के पास गया और बोला- "भाई मेरी आरी टूट गयी है, तुम मेरे लिए एक अच्छी सी आरी

बना दो।"


लोहार बोला, “बना दूंगा भाई, पर इसमें समय लगेगा, तुम कल इसी समय आकर मुझसे आरी ले सकते हो।”


बढ़ई को तो शीघ्रता थी सो उसने कहा, ” भाई कुछ पैसे अधिक ले लो पर मुझे अभी आरी बना कर दे दो!”


“बात पैसे की नहीं है भाई…अगर मैं इतनी शीघ्रता में औजार बनाऊंगा तो मुझे स्वयं उससे संतुष्टि नहीं होगी, मैं औजार बनाने में कभी भी अपनी ओर से कोई कमी नहीं रखता!”, लोहार ने समझाया


बढ़ई तैयार हो गया, और अगले दिन आकर अपनी आरी ले गया। आरी बहुत अच्छी बनी थी। बढ़ई पहले की अपेक्षा आसानी से और पहले से बेहतर काम कर पा रहा था।

बढ़ई ने प्रसन्नता से ये बात मुल्ला जी को भी बताई और लोहार की अत्यधिक प्रसंशा की। मुल्ला जी ने भी आरी को निकट से देखा- “इसके कितने पैसे लिए उस लोहार ने?”, मुल्ला जी ने बढ़ई से पूछा।


“दस रुपये!”


मुल्ला जी ने मन ही मन सोचा कि नगर में इतनी अच्छी आरी के तो कोई भी तीस रुपये देने को तैयार हो जाएगा। क्यों न उस लोहार से ऐसी दर्जनों आरियाँ बनवा कर नगर में बेचा जाये!


अगले दिन मुल्ला जी लोहार के पास पहुंचे और बोले, “मैं तुमसे ढेर सारी आरियाँ बनवाऊंगा और हर आरी के दस रुपये दूंगा, लेकिन मेरी एक शर्त है… आज के पश्चात तुम सिर्फ मेरे लिए काम करोगे। किसी और को आरी बनाकर नहीं बेचोगे।”


“मैं आपकी शर्त नहीं मान सकता!” -लोहार बोला।


मुल्ला जी ने सोचा कि लोहार को और अधिक पैसे चाहिए। वह बोले, “ठीक है मैं तुम्हे हर आरी के पन्द्रह रूपए दूंगा….अब तो मेरी शर्त स्वीकृत है।”


लोहार ने कहा, “नहीं मैं अभी भी आपकी शर्त नहीं मान सकता। मैं अपनी मेहनत का मूल्य स्वयं निर्धारित करूँगा। मैं आपके लिए काम नहीं कर सकता। मैं इस दाम से संतुष्ट हूँ इससे ज्यादा दाम मुझे नहीं चाहिए।”


“बड़े अजीब व्यक्ति हो…भला कोई कामगार आती हुई लक्ष्मी को भी मना करता है?”- मुल्ला जी ने आश्चर्य से बोला।


लोहार बोला, “मैं एक हिन्दू हूँ।आप मुझसे आरी लेंगे फिर उसे दुगने दाम में, मेरे हिन्दू समाज मे ही, गरीब खरीदारों को बेचेंगे लेकिन मैं किसी गरीब हिन्दू भाई के शोषण का माध्यम नहीं बन सकता। मेरा धर्म सिखाता है कि अगर मैं लालच करूँगा तो उसका भुगतान कई लोगों को करना पड़ेगा, इसलिए आपका ये प्रस्ताव मैं स्वीकार नहीं कर सकता।”


मुल्ला जी समझ गए कि एक सच्चे और निष्ठावान हिन्दू व्यक्ति को दुनिया की कोई धन नहीं खरीद सकती। वह अपने सिद्धांतों पर अडिग रहता है।


अपने हित से ऊपर उठ कर, अन्य लोगों के बारे में भी सोचना हमारी हिन्दू संस्कृति का एक महान गुण है। लोहार चाहता तो आसानी से अच्छे पैसे कमा सकता था पर वह जानता था कि उसका थोड़ा सा लालच बहुत से आवश्यकता वाले भाई लोगों के लिए नुक्सानदायक होगा और वह मुल्लों के लालच में नहीं पड़ा।


लोहार की तरह ही हम मे से अधिकतर लोग जानते हैं कि कब हमारे स्वार्थ की कारण से बाकी हिन्दू समाज के लोगों को नुक्सान होता है पर ये जानते हुए भी हम अपने कच्चे लालच या लाभ के लिए काम करते हैं। हमें इस व्यवहार को परिवर्तित करना होगा, बाकी लोग क्या करते हैं ध्यान नहीं रखते हमें स्वयं ये निर्णय करना होगा कि हम अपने लाभ के लिए ऐसा कोई काम न करें जिससे आने वाले समय मे देश फिर से पराधीन हो जाये। दुकान का अधिक किराया या दुकान के बाहर रेहड़ी लगाने का अधिक किराया देकर जेहादी आपकी बाजार तथा व्यपार में घुसने का प्रयास करेंगे। आपके मित्र/भाई के बरसो पुराने व्यवसाय में आपके सहयोग से, आपको कच्चा लालच देकर, सेंध लगाने का प्रयास करेंगे। आती लक्ष्मी नही ,समाज का, अपने भाईयों का हित, ध्यान में रखकर यदि उस समय आप छोटा सा, निजी नुकसान, झेल लेंगे तो भविष्य में सम्पूर्ण हिन्दू समाज आपका ऋणी रहेगा-दिनेश बरेजा


प्रेषक-

दिनेश बरेजा


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