अनुवादक

रविवार, 10 अप्रैल 2022

“ स्वच्छ सकारात्मक सोच ” कहानी ~ नमः वार्ता

🔆💥 जय श्री राम 🔆💥
 स्वच्छ सकारात्मक सोच 


या तो सम्पूर्ण जीवन मे बचपन का समय होता है जब तक हमारे कटु अनुभव, हमारी सोच को प्रभावित नही किये होते या बुढापे का समय होता है जब हम "बस चार दिन की जीवन बचे है" ये सोचकर अपने कटु अनुभवों को अपनी सकारात्मक सोच पर प्रभाव नही डालने देते। आज की दो लघु कहानियाँ-

विनय ने ऑफिस से आते ही घर में घुसते हुये आवाज लगाई....

सीमा शीघ्र से चाय बना दो कड़ाके की ठंड है आज तो...मैने चाय का जल पहले ही चढ़ाया हुआ था...हम दोनो साथ में चाय पीने हॉल में बैठ गये...!!!!

इतने में मेरा आठ वर्ष का बेटा विशू भागते हुये घर में आया व सीधा कमरे में चला गया व वहाँ से नया कंबल उठाया व पुनः से बाहर निकल गया मैं आवाज देती रह गयी मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि वो कर क्या रहा है...

मैं व विनय उसके आने का इंतजार करने लगे...!!!!

वो वापस खाली हाथ आया तो....

मैंने जोर से चिल्लाकर पूछा कि कंबल कहाँ है विशू...

वो बोला मम्मा जो चौकीदार बाबा है वो इतने बूढ़े है और ठंड से ठिठुर रहें थे...

तो मैं उनको कंबल दे आया ओढ़ने के लिये....

मैने कहा तो बताना तो चाहिये...

मैं सुबह पुराना कंबल अंदर से निकाल देती देखकर नया देने की क्या अवश्यत थी...

वो बोला मम्मा जरुरत तो उन्हे अभी थी ना...

 "इतनी ठंड में हम दरवाजे भी नही खोलते वो बाहर रात में कैसे बैठते बिना कंबल के...उन्हे कुछ हो जाता तो....?????" 
सच...कितनी सच्चाई थी उस बच्चे की बातों में ये सोच मैं व विनय निशब्द से हो गये थे...!!!!!!!-संकलित

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कल शरीर में थोड़ी सी थकावट सी थी हल्का सा बुखार लग रहा था सो एक दवा दुकान पर पैरासिटामोल के लिए जाना हुआ....

दुकान वाला इशारे से सभी को सोशल डिस्टेसिंग करते हुए लाइन से आने को बोल रहा था मैं भी अपनी बारी का इंतजार करते हुए आगे बढ़ रहा था मेरे आगे एक बुजुर्ग थे कपड़े के नाम पर नीचे गमछा लपेटे थे और ऊपर एक उधड़ी हुई बनियान चेहरे पर उदासी और लाचारी साफ झलक रही थी।

अपना नम्बर आने पर दुकान वाले से उन्होंने दवाई मांगी गमछे से पैसा निकाले और दे दिए दुकानदार जबतक पैसा वापिस करता वे बगल में खड़े हो गए...

 
 

अब मेरी बारी आ गई थी मैने पैरासिटामोल का एक पत्ता मांगा दुकानदार ने कहा ...

भाईसाहब.. समाप्त हो गई ये अंतिम एक ही पत्ता था जो अंकलजी को दे दिया....

लिखवा रखी है कल पता कर लीजिएगा। मैं उदास होकर वहां से निकलने लगा तभी बुजुर्ग ने कहा...मेरे पत्ते से आधा इनको दे दीजिए।

मैं बोला ...नही रहने दीजिए, मैं किसी और दुकान से खरीद लूंगा और आपको वैसे भी इसकी अवश्यकता है।

तभी बुजुर्ग बोले....बेटा एक ही रात में थोड़ी ना सब टेबलेट खा लूंगा सामने वाली फूटपाथ पर मेरी बूढ़ी पत्नी लेटी हुई है। उसको ज्वर है एक खाने से ही आज रात भर किसी प्रकार निकल जाएगी। तुम इसमें से आधी ले लो। तुम्हारा भी काम हो जाएगा आज के लिए....

दुकानदार ने कैंची से काटकर मुझे पांच टेबलेट पकड़ा दी और बोला कि इतने पैसे आप इनको दे दीजिए...

जैसे ही मैने जेब से पैसे निकालकर उनको देने चाहे...
उन्होंने लेने से साफ इंकार कर दिया...

वह बोले कि "बेटा अब क्या हम तुमसे इतनी सी दवाई का पैसा लें"

मेरा गला भर आया.... मैं उनके पीछे पीछे चलने लगा सामने सड़क पार करने पर एक झोपड़ी में वे बुजुर्ग घुस गए जिसमे से मद्धम रोशनी आ रही थी।

मुझमे साहस नही हुआ कि मैं क्या बोलूं उनको और किस प्रकार से धन्यवाद दूं। अचानक टीवी पर देखी जाने वाली न्यूज चैनलों की समाचारों की स्मरण आ गयी.....

आज जब करोड़ों रुपये कमाने वाले और महल में रहने वाले, दवा का कारोबार करने में लगे हैं, ऐसे वक्त में कोई इंसान, अपने हिस्से की दवा मुझे दे गया-संकलित

 _प्रत्येक विचार एवं भाव या शब्द मानव कोशिकाओं का एक दृढ़ तरंग से तरंगित करती हैं दिनेश और उस पर एक प्रभावपूर्ण ढंग से प्रभाव डालती है। जो व्यक्ति अपने विचारों पर नियंत्रण रखते हैं उनकी भाषा, आवाज, में भी मधुरता पाई जाती है चेहरा सुन्दर, पवित्र एवं नेत्रें चमकदार प्रभावशाली दिखती हैं। हमारी सोच ही हमारा असली व्यक्तित्व और व्यवहार है जो भौतिक रूप में बाहर निकल कर लोगों के सामने आती है और उसी प्रकार से समाज में हमें मान सम्मान मिलता है। आपकी सोच को अनुभवों से प्रभावित न होने दे,सदैव स्वच्छ सकारात्मक सोच रखे-दिनेश बरेजा_ 
प्रेषक-
 दिनेश बरेजा 


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