🔆🔆🔆 जय श्री राम🔆🔆🔆
!! प्रेम का स्पर्श !!
दिनेश एक दिन सुबह एक गांव की सड़क से निकला। एक भिखारी ने हाथ फैलाया। दिनेश ने अपनी जेब तलाशी लेकिन जेब खाली थे। वह सुबह घूमने निकला था और पैसे नहीं थे।
उसने भिखारी को कहा, मित्र ! क्षमा करो, मेरे पास पैसे नहीं हैं, तुम अवश्य दुख मानोगे। लेकिन मैं विवशता में पड़ गया हूं, पैसे मेरे पास नहीं हैं। उसके कंधे पर हाथ रखकर कहा, मित्र! क्षमा करो, पैसे मेरे पास नहीं हैं।
उस भिखारी ने कहा कोई बात नहीं। तुमने मित्र कहा, मुझे बहुत कुछ मिल गया और बहुत लोगों ने मुझे अब तक पैसे दिए थे लेकिन तुमने जो दिया है, वह किसी ने भी नहीं दिया था। मैं बहुत अनुगृहीत हूं।
एक शब्द प्रेम का– मित्र, उस भिखारी के हृदय में क्या निर्मित कर गया, क्या बन गया। दिनेश सोचने लगा। उस भिखारी का चेहरा परिवर्तित हो गया, वह दूसरा व्यक्ति दिखा। यह पहला अवसर था कि किसी ने उससे कहा था, मित्र।
भिखारी को कौन मित्र कहता है? इस प्रेम के एक शब्द ने उसके भीतर एक क्रांति कर दी, वह दूसरा व्यक्ति है। उसकी प्रतिष्ठा परिवर्तित हो गयी, उसकी गरिमा परिवर्तित हो गयी, उसका व्यक्तित्व परिवर्तित हो गया। वह दूसरी जगह खड़ा हो गया। वह पद-चलित एक भिखारी नहीं है, वह भी एक मनुष्य है। उसके भीतर एक नया क्रिएशन शुरू हो गया। प्रेम के एक छाेटे से शब्द ने उसे उसके अस्तित्व का बोध करा दिया।
प्रेम का जीवन ही सृजनात्मक जीवन है। प्रेम का हाथ जहां भी छू देता है, वहां क्रांति हो जाती है, वहां मिट्टी सोना हो जाती है। प्रेम का हाथ जहां स्पर्श देता है, वहां अमृत की वर्षा शुरू हो जाती है।
प्रेषक-
दिनेश बरेजा
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