🔆💥 जय श्री राम 🔆💥
जीवन को जिये, दोस्तो संग चाय पिये
जनवरी की एक सर्द सुबह थी ,अमेरिका के वाशिंगटन डीसी का मेट्रो स्टेशन .
एक आदमी वहां लगभग घंटा भर तक वायलिन बजाता रहा .इस दौरान लगभग 2000 लोग वहां से निकले ,अधिकतर लोग अपने काम से जा रहे थे .उस व्यक्ति ने वायलिन बजाना शुरू किया उसके तीन मिनट बाद एक अधेड़ आदमी का ध्यान उसकी तरफ गया .उसकी चाल धीमी हुई वह कुछ पल उसके पास रुका और फिर शीघ्रता से निकल गया .
4 मिनट बाद : वायलिन वादक को पहला सिक्का मिला .एक महिला ने उसकी टोपी में सिक्का और बिना रुके चलती बनी .
6 मिनट बाद : एक युवक दीवार के सहारे टिककर उसे सुनता रहा ,फिर उसने घडी पर नजर डाली और चलता बना .
10 मिनट बाद : एक 3 वर्षीय बालक वहां रुक गया ,पर शीघ्रता में दिख रही उसकी माँ उसे खींचते हुए वहां से ले गयी .माँ के साथ लगभग घिसटते हुए चल रहा बच्चा मुड -मुड़कर वायलिन वादक को देख रहा था .ऐसा ही कई बच्चो ने किया और हर बच्चे के अभिभावक उसे घसीटते हुए ही ले गये .
45 मिनट बाद : वह लगातार बजा रहा था ,अब तक केवल छः लोग ही रुके थे और उन्होंने भी कुछ देर ही उसे सुना .लगभग 2 0 लोगो ने सिक्का उछाला पर रुके बगैर अपनी सामान्य चाल में चलते रहे .उस आदमी को कुल मिलकर 3 2 डॉलर मिले .
1 घंटे बाद : उसने अपना वादन बंद किया .फिर से शांति छा गयी .इस परिवर्तन पर भी किसी ने ध्यान नहीं दिया .
किसी ने वादक की प्रशंसा नहीं की .
किसी भी व्यक्ति ने उसे नहीं पहचाना .वह था , विश्व के महान वायलिन वादकों में से एक ,जोशुआ बेल .जोशुआ 1 6 करोड़ रुपए की अपनी वायलिन से इतिहास की सबसे कठिन धुन बजा रहे थे .महज दो दिन पहले ही उन्होंने बोस्टन शहर में मंचीय प्रस्तुति दी थी ,जहा प्रवेश टिकिटो का औसत मुल्य 100 डॉलर (लगभग 7500 ) रुपए था .
यह बिलकुल सच्ची घटना हैं .
जोशुआ बेल प्रतिष्ठित समाचार पत्र ‘WASHINGTON POST’ द्वारा ग्रहणबोध और समझ को लेकर किये गए एक सामाजिक प्रयोग का हिस्सा बने थे .इस प्रयोग का उद्देश्य यह पता लगाना था की किसी सार्वजानिक जगह पर किसी अटपटे समय में हम मुख्य चीजो और बातो पर कितना ध्यान देते हैं ? क्या हम सुन्दरता या अच्छाई की सराहना करते हैं ? क्या हम आम अवसरों पर प्रतिभा की पहचान कर पाते हैं ?
इसका एक समान अर्थ यह निकलता हैं : जब दुनिया का एक श्रेष्ठ वादक एक बेहतरीन साज़ से इतिहास की सबसे कठिन धुनों में से एक बजा रहा था ,तब अगर हमारे पास इतना समय नहीं था की कुछ पल रूककर उसे सुन सके ,तो सोचिये हम कितनी सारी अन्य बातो से वंचित हो गये हैं ,लगातार वंचित हो रहे हैं .इसका उत्तरदायित्व किसका हैं?
अब आप कुछ पल बैठिये और सोचिये. आपने जीवन की इतनी तेज़ी से भागदौड़ में कितनी खुबसूरत चीज़े miss कर दी… जिन्दगीं की भागदौड़ में कुछ खोया है तो वो है जीवन जीने का ढंग। ऐसा लगता है मानो केवल जीवन जीने का कोर्रम पूरा कर रहे हों। एक समय था जब भीतर का बालक बहुत ही चंचल, उत्सुक और प्रसन्न हुआ करता था। चीजों में प्रसन्नता ढूँढना बहुत असान हुआ करता था तब पर अब स्थिति वैसी नहीं है। अब भीतर के बालक पर ध्यान देने का समय नहीं मिलता। जिसके कारण जीवन जीने का ढग अब भूल गए हैं। दोस्तो के साथ गप्पे तथा चाय,काफी सब पीछे छूट सा गया।
आइये आज एक बार फिर जीवन को जिये,
बच्चा बनकर मित्रों के संग हंसकर चाय पिये
प्रेषक-दिनेश बरेजा
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें