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गुरुवार, 30 जून 2022

“ देने की भावना-स्नेह ” कहानी ~ नमः वार्ता

 🔆💥 जय श्री राम 🔆💥


 “ देने की भावना-स्नेह ” कहानी ~ नमः वार्ता


दो भाई थे । आपस में बहुत प्यार था। खेत अलग-अलग थे..आजु बाजू में। बड़ा भाई विवाहित था...छोटा अकेला।


एक बार खेती बहुत अच्छी हुई..अच्छी फ़सल हुई। अपने खेत में काम करते करते बड़े भाई ने पास के खेत में काम करते छोटे भाई को खेत देखने का कहकर भोजन खाने चला गया..!!


उसके जाते ही छोटा भाई सोचने लगा.

.खेती तो अच्छी हुई है...इस बार अनाज भी बहुत हुआ है... पर.. मैं तो अकेला हूँ, बड़े भाई की तो गृहस्थी है..पूरा परिवार है..मेरे लिए तो मेरे ये अनाज आवश्यकता से अधिक है..भैया के साथ तो भाभी बच्चे है..उन्हें आवश्यकता अधिक है..!!


ऐसा विचारकर वह अपने 10 बोरे अनाज..बड़े भाई के अनाज की ढेर में डाल देता है..!! तब तक बड़ा भाई भोजन करके आता है  और उसके आते ही छोटा भाई भोजन के लिए चला जाता है..।


छोटे भाई के जाते ही वह बड़ा भाई विचारता है कि..मेरा गृहस्थ जीवन तो अच्छे से चल रहा है...छोटे भाई को तो अभी गृहस्थी जमाना है... उसे अभी उत्तरदायित्व सम्हालना है...!! मै इतने अनाज का क्या करूँगा...ऐसा विचारकर उसने अपने ढ़ेर से 10 बोरे अनाज

छोटे भाई के ढ़ेर में डाल दिया...


दोनों भाईयों के मन में हर्ष था...!!अनाज उतना का उतना ही था..पर....अपनत्व स्नेह वात्सल्य बढ़ा हुआ था...।  सोच अच्छी रखेंगें तो प्रेम अपने आप बढेगा..!! यदि ऐसा प्रेम भाई भाई में हुआ तो दुनिया की कोई भी ताकत आपके परिवार को तोड़ नही सकती...और ऐसा परिवार ही धरती का स्वर्ग बन जाएगा.. 


 जब तक रिश्ते में दोनो ओर से देने की भावना बनी रहेगी रिश्ता बना रहेगा, जिस दिन भी किसी एक मे लेने की भावना आ गयी, रिश्तों में दूरी बढ़ने लगेगी। आवश्यकता, इच्छा, चाहत—हम इन भावों के साथ नहीं जन्मे होते है, जब हम बड़े होने लगते हैं तो ये तो हमें सामाजिक परिवेश की परिस्थितियां देती हैं। जब सांसारिक परिस्थितियाँ हमारे सपनों की चंचल-सी दुनिया के साथ लड़ बैठती हैं तो हम उस मंथन में रस्सी-से बन जाते हैं। हम उस दुपट्टे से हो जाते हैं जिसकी हर सलवट में कहीं अधूरे सच तो कहीं अप्राकृतिक भाव छिपे होते हैं। स्वार्थी बन जाते हैं-दिनेश बरेजा 


प्रेषक-

दिनेश बरेजा 


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