🔆💥 जय श्री राम 🔆💥
“ प्रयास लाये रिश्तों में मिठास ” कहानी ~ नमः वार्ता
आज सुयश और नंदा की विवाह के उपरांत गृह प्रवेश की रस्म हुई l सास ससुर के चरण स्पर्श करते हुए नंदा ने ध्यान दिया कि सुयश ने अपने मम्मी पापा के पैर नहीं छूए l ये बात उसे परेशान करने लगी क्योंकि आजकल बच्चे वैसे भी मुख्य अवसरों में ही बड़ों के पैर छूने लगे हैं, और आज के दिन पैर ना छूना कोई साधारण बात तो हो ही नहीं सकती l
नई नवेली नंदा ये बात किसी से पूछने की साहस भी नहीं कर पा रही थी, क्योंकि सुयश के इस व्यवहार को लेकर शिकायत परिवार के किसी भी सदस्यों में उसे दिखाई नहीं दे रही थी l सभी का व्यवहार नंदा के प्रति भी बहुत आत्मीय था l उसकी सास ने तो दूसरे ही दिन पता कर लिया था, कि उसे खाने में क्या पसंद है, कौन सा रंग प्रिय है... और कौन सा परिधान पहन कर वो अपने आप को अधिक सहज अनुभव करती है l
कुछ दिनों उपरांत नंदा ने अनुभव किया कि सुयश का व्यवहार घर के अन्य सदस्यों से तो ठीक है l केवल़ माँ और पापा का नाम लेते ही वो पत्थर की प्रकार निर्विकार हो जाते हैं l सुयश का यही व्यवहार नंदा को लगातार परेशान करने लगा और उसे अपनी विदाई का समय स्मरण आ गया जब माँ ने पापा से कहा था.... सुनिए जी, हमने वैवाहिक पत्रिका के द्वारा अपनी बेटी की विवाह तय कर दी, केवल़ एक बार ही लड़के वालों से मिले.. यदि सुयश और उसके घर वाले ठीक हुए तो अच्छी बात है l नहीं तो विवाह दुकान से खरीदी कोई चीज़ थोड़े ही है, जो पसंद ना आने पर हम वापस कर देंगे...! तो पापा ने उन्हें ढांढस बंधाते हुए अपने विश्वास की दृढ़ता से कहा था, कि मुझे अपनी बेटी के संस्कारों पर पूरा भरोसा है, वो जहाँ भी जाएगी सिखा दिल अवश्य जीत लेगी l और मैं भी तक़दीर की धनी निकली यहाँ सभी अच्छे हैं l बस मेरे पति महोदय के मन में अपने माँ पापा के लिए खटास कैसे और क्यों आयी, ये जानना कठिनता हो रहा है l
ससुराल में अब नंदा के बड़े ही सामान्य ढंग से दिन और महीने पंख लगाये बीतने लगे l तभी एक दिन रसोई में अनायास घर की नौकरानी गीता के मुँह से निकल गया कि "कोई सगी माँ भी बच्चों का इतना ध्यान नहीं रख सकती..!" पास खड़ी नंदा ने जैसे ही ये सुना तो आश्चर्य से वो बोली - "क्या कहा तुमने... ये क्या बोल रही हो..!!"
"हाँ भाभी, एक ना एक दिन तो आपको ये पता चलता ही...!"
तो नंदा ने उत्सुकता से पुनः पूछा -" तो सगी माँ का देहांत कब हुआ..?"
"पाँच वर्ष हो गए... उनके जाने के कुछ ही महीनों उपरांत ही बाऊजी ने दुसरी विवाह कर ली... तभी से सुयश भैया ना बाऊजी से बात करते हैं, ना नई माँ का मुँह देखते हैं l लेकिन ये माँ जी बहुत अच्छी हैं, बिना किसी शिकायत के कनिका दी, छोटे भैया, सुयश भैया और बाऊजी की पसंद नापसंद का पूरा ध्यान रखती हैं l"
"ओह, तो ये बात है..!" कहते हुए नंदा ने गहरी श्वास ली.. और मन ही मन सुयश की रुष्ठता की कारण जानकर निश्चिंत भी... पर पूरी प्रकार से नहीं, क्योंकि सुयश के मन में क्या चल रहा है,ये भी जानना आवश्यक है l
और इसके उपरांत उसी रात नंदा ने सुयश से कहा-" एक बात पूछूँ..." बात पूरी होने से पहले ही सुयश ने कहा-"मैं मि. विकास और उनकी पत्नी से बात क्यों नहीं करता हैं ना...तो आज एक बात तुमसे स्पष्ट कर दूँ... मैं अपनी माँ की जगह किसी को भी नहीं देना चाहता और इस बात के लिए मुझसे कोई जबरदस्ती भी नहीं करना..!" ये कहते हुए वो पलट कर सो गये l लेकिन, ये सुनकर नंदा अब आश्वस्त हो गई ..कि चलो, इनकी रुष्ठता की कारण तो पता चली..!
दोनों पक्षों की बात स्पष्ट होते ही नंदा ने अब अपना मिशन आरंभ कर दिया ...निरंतर एकांत के क्षण मिलते ही वो सुयश से माँ की अच्छाइयाँ बताने लगती l और इस दरम्यान उसने ध्यान दिया कि सुयश उसकी बात सुनते तो थे पर निर्विकार रहकर ...!
और इसके उपरांत एक दिन.. नंदा ने अपने अंतरंग क्षणों में सुयश से कहा - " किसी लड़की का यदि ससुराल में अपमान हो तो..." उसकी बात पूरी भी नहीं हो पाई थी..कि सुयश ने कहा - "किसने किया तुम्हारा अपमान...?"
"मेरा...? नहीं तो.. किसी ने नहीं किया...! मैंने तो किसी लड़की की बात कही , जैसे तुम्हारी माँ...! वो भी तो किसी की लड़की हैं, और यहाँ पर उनका भी तो अपमान किया जा रहा है.. !!"
ये कहते हुए नंदा ने ध्यान दिया कि माँ पापा का नाम लेते ही जिस सुयश का मुख मण्डल रोष व्यक्त करने लगता था वो अब बाल सुलभ दिख आ रहा है.. ये देखकर नंदा ने अब अपने विश्वास की दृढ़ता से बात आगे बढ़ा दी.."जब से माँ यहाँ आई हैं, आप सिखी हर सुख सुविधा का उन्होंने ध्यान रखा है l मुझे भी यदि बताया ना जाता तो मैं भी जान नहीं सकती थी, कि वो सगी नहीं हैं l मैं मानती हूँ कि कोई व्यक्ति किसी की भी जगह नहीं ले सकता, और उन्होंने आप के साथ कभी कोई दुर्व्यवहार भी तो नहीं किया...! इसके उपरांत किस अपराध के लिए आप उन्हें क्यों सज़ा दे रहे हैं... ? " तो उत्तर में सुयश ने बड़ी ही दीनता के साथ किसी अपराधी की प्रकार नंदा की ओऱ देखा और ख़ामोशी से सो गये l सुयश के इस परिवर्तित होते तेवर को देख नंदा ने ईश्वर से प्रार्थना की " हे भगवान्..सब ठीक कर देना..!" दूसरे दिन सुबह उठते ही सुयश ने फ्रीज़ से जल लेते हुए देखा फ्रीज़ मे हैप्पी बर्थडे मम्मी लिखा हुआ केक रखा है, इसके उपरांत जल पीते हुए उसने हॉल की ओऱ दृष्टि फेरी.... तो देखा कनिका, छोटू और नंदा घर सजाने में व्यस्त हैं..इसके उपरांत उसी समय चाय की केतली और कुछ कप को डायनिंग टेबल पर रखते हुए नई माँ ने कनिका को आवाज़ लगाते हुए बुलाया-"आओ बच्चों चाय तो पी लो...!"
और तभी.... सुयश ने नई माँ के पैर छूते हुए कहा - "हैप्पी बर्थडे माँ " अकस्मात् ये सुनकर नई माँ तो फफक फफक कर रोने लगी और सुयश को आशीर्वाद देते हुए कभी उसके सिर में हाथ फेरने लगीं , तो कभी गालों को हाथो से बार बार छूने लगीं ये देखकर ऐसा लग रहा था, मानो इस एक पल में वो अपना सारा प्यार सुयश पर लूटा देंगी...इस अप्रत्याशित घटना से नई माँ का मुख मण्डल तो रक्तिम हुआ जा रहा था... और आँसू ऐसे बह रहे थे जैसे अब थमेंगे ही नहीं.... ये अद्भुत दृश्य देखकर घर के सभी सदस्य उनके निकट आ गए.. तभी माँ ने नंदा को अपनी ओऱ खींचा और गाल को चिकोटी काटते हुए कहने लगीं.." तूने तो मेरे पत्थर को भी पिघला दिया रे..." और उन्होंने नंदा को अपनी ओऱ खींचकर अपने गले से लगा लिया .. ये दृश्य देखकर परिवार के सभी सदस्यों की आँखे नम हो गई..और तत्क्षण ऐसा लगा जैसे सिखे चेहरे का संतोष मानों वातावरण में मिश्री सी मिठास घोल रहा हो -संकलित
समय का कैसा मोड़ है, रात दिन की दौड़ है...."प्रसन्न रहने" का समय नही "प्रसन्न दिखने" की होड़ है...."ढ़ोंग" की जीवन से "ढ़ंग" की जीवन कहीं "बेहतर" है।
प्रेषक-दिनेश बरेजा
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