🔆💥 जय श्री राम 🔆💥
प्राचीन भारतीय चिकित्सक एवं चिकित्सालय
व्यवसायी ने चिकित्सक को बहुत कठिनाई से यह समझाने की प्रयास किया कि उसे कितनी आवश्यक मेल और व्यवसाय बात आदि करनी हैं और काम से थोड़ा सा भी समय निकालने पर बहुत बड़ा हानि हो जाएगा-
“मैं हर रात अपना ब्रीफकेस खोलकर देखता हूँ और उसमें ढेर सारा काम बचा हुआ दिखता है”–व्यवसायी ने बड़े चिंतित स्वर में कहा
“तुम उसे अपने साथ घर लेकर जाते ही क्यों हो?”–चिकित्सक ने पूछा
“क्या और कोई इसे नहीं कर सकता? तुम किसी और की मदद क्यों नहीं लेते?”–चिकित्सक ने पूछा
“नहीं”–व्यवसायी ने कहा– “केवल मैं ही ये काम कर सकता हूँ. इसे तय समय में पूरा करना आवश्यक है और सब कुछ मुझपर ही निर्भर करता है”
“यदि मैं तुम्हारे पर्चे पर कुछ सलाह लिख दूं तो तुम उसे मानोगे?”–चिकित्सक ने पूछा
विश्वास मानिए पर डाक्टर ने व्यवसायी मरीज के पर्चे पर यह लिखा कि वह सप्ताह में आधे दिन की छुट्टी लेकर वह समय श्मशान में बिताये!
मरीज ने हैरत से पूछा–“लेकिन मैं आधा दिन श्मशान में क्यों बैठूं? उससे क्या होगा?”
“देखो”–चिकित्सक ने कहा
“मैं चाहता हूँ कि तुम आधा दिन वहां बैठकर समाधियों पर लगे पत्थरों को देखो। उन्हें देखकर तुम यह विचार करो कि तुम्हारी प्रकार ही वे भी यही सोचते थे कि पूरी दुनिया का भार उनके ही कंधों पर ही था। अब यह सोचो कि यदि तुम भी उनकी दुनिया में चले जाओगे तब भी यह दुनिया चलती रहेगी। तुम नहीं रहेगो तो तुम्हारे जगह कोई और ले लेगा। दुनिया घूमनी बंद नहीं हो जायेगी!”
मरीज को यह बात समझ में आ गयी। उसने झुंझलाना और कुढ़ना छोड़ दिया। शांतिपूर्वक अपने कामों को निपटाते हुए उसने अपने व्यवसाय में स्वयं के लिए और अपने कामगारों के लिए काम करने के बेहतर वातावरण का निर्माण किया।
प्रिय पाठकों ऐसे ही एक बार गोस्वामी तुलसीदासजी से किसी ने पूछा था कि - मनुष्य के जीवन की तुलना यदि किसी वृक्ष से करनी हो तो आप किस वृक्ष से करेंगे? आम से या बबूल से?
तुलसीदासजी बोले- दोनों में किसी से भी नहीं क्योंकि मनुष्य का शरीर कल्प वृक्ष है, आम वृक्ष पर केवल आम ही लगेगा, बबूल वृक्ष पर केवल बबूल, किन्तु कल्पवृक्ष के नीचे जो जैसी कल्पना करेगा वैसा फल पा लेगा, यह गुण केवल मानव तन को मिला है...
""बड़े भाग मानुष तन पावा""... बड़े भाग्य से यह कल्प वृक्ष मिला है, बहुत सावधानी से निर्णय करना कि इससे क्या माँगना है, ध्रुव और प्रह्लाद ने भगवान से भक्ति माँगी थी, रावण ने शक्ति, किसकी क्या गति हुई यह तो सब जानते ही हैं..... चिंता नही चिंतन कीजिये तथा ""जीवन मे सर्वप्रथम अपने लिये, पुनः परिवार के लिये तथा पुनः बचे हुए समय को समाज की सेवा में लगाये" - "आओ मिलकर सभी सेवासदन बनायें"" -दिनेश बरेजा (सेवासदन)
प्रेषक-
दिनेश बरेजा
(सेवासदन)
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