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बुधवार, 27 अक्टूबर 2021

कहानी - गृहलक्ष्मी/ सफलग्रहणी का गृहविज्ञान ~ दिनेश बजेरा द्वारा

१. गृहलक्ष्मी
२. सफलग्रहणी का गृहविज्ञान


एक बार मुझे दोस्त के बेटे के विवाह के रिसेप्शन में जाने का मौका मिला। स्टेज पर खड़ी सुंदर सी नयी जोड़ी को आशीर्वाद देकर मैं नीचे उतर ही रहे था कि दोस्त ने आवाज देकर वापस स्टेज पर बुलाया और कहा कि "दिनेश जी नवदंपति को आशीर्वाद के साथ आज कोई अच्छी शिक्षा देते जाओ"

मैने बटुए में से 500 रुपये का नोट निकालकर दुल्हे के हाथ में देते हुए कहा कि बेटा इसे मसलकर भूमि पर फेंक दो"

दुल्हे ने समझदारी पूर्वक कहा "चाचा, ऐसा सुझाव? पैसे को तो हम लक्ष्मी मानते हैं न...."

मैंने उत्तर मे उसके सरपर हाथ रखकर आशीर्वाद देते हुए कहा "अति उत्तम बेटा, तुम जानते हो कि मोड़-तरोड कर, भूमि पर गिराकर भी इस कागज का मूल्य कम नही होगा, जब कागज की लक्ष्मी का इतना मान सम्मान करते हो तो आज से तुम्हारे साथ खड़ी, कंधे से कंधा मिलाकर, पूरी जिंदगी दुख सुख में साथ देने के लिए तैयार इस अमूल्य दुल्हन रूपी गृहलक्ष्मी को कितना मान सम्मान देना है, वो तुम स्वयं तय कर लेना" क्योंकी ये अपने मॉं-बाप की सबसे अनमोल मोती हैं ?

सफलग्रहणी की गृहविज्ञान


मेरी एक सहेली थी उसका नाम कंचन था। मैं अक्सर उसके घर जाया करती थी। मैं देखती की उसकी भाभी के चेहरे पर एक सौम्य मुस्कान लिए बस अपने काम में लगी रहती अगर कभी समय मिला  तो अपने कमरे में जाकर अकेली बैठी रहती।

उन्हें घर का कोई सदस्य पसंद नहीं करता था क्योंकि उनका रंग साँवला था और गृह विज्ञान में स्नातक थी जबकि कंचन के घर में सब 
डॉक्टर या इंजीनियर थे।

भाभी को कंचन के पिताजी ने सबके विरोध के बावजूद उनके गुणों और संस्कारों को देखकर पसंद किया था। पिताजी को भाभी पर पूर्ण विश्वास तथा स्नेह था।

एक दिन की बात है उनके घर कुछ मेहमान आए उनके साथ आए। एक छोटे बच्चे से कांच की गिलास गिरकर टूट गई। उसके बारीक टुकडे पूरे फर्श पर फेैल गए।

सब लोग शोर करने लगे की देखो बच्चों चलना नहीं। सब सोचने लगे कि बारीक टुकड़े उठाएँ कैसे।

इतने में भाभी रसोई से हाथ में आटे का गोला लेकर आई और बड़ी सफाई से बिना किसी नुकसान के हर एक कांच के टुकड़े उठा लिए सब देखते रह गए थे। ये था गृहविज्ञान का स्मार्ट तरीका। उस दिन भाभी की जमकर तारीफ हो रही थी और कंचन के पापा अपनी पसंद पर फूले नहीं समा रहे थे।

गृहिणियों की कुशलता समायोजन व संतुलन की धुरी पर टिकी होती है।किसी परिस्थिति में कब, कहाँ और कितना समायोजित होना है, यह बात एक कुशल गृहिणी अच्छे से जानती है। गृहस्थी की गाड़ी सरलता से चलती रहे इसके लिए नारी की सुघड़ता ( जीवन शैली जिसे अपनाकर सहज ही कार्य संपन्न हो जाये तथा व्यर्थ में किसी के मन में कोई आमना भी ना आए ) ही उपयोगी है। श्रेष्ठ गृहिणी बनने के लिए आवश्यक है कि अपने सुनने की क्षमता को बढ़ा लिया जाए तथा उचित शब्दों के तालमेल से व्यवहार निभाया जाए। भारतीय नारियों की कार्य-कुशलता, संस्कार व शील की कोई उपमा नही दी जा सकती क्योंकि भारतीय नारियों को व्यवहार निभाने के ये सारे गुण विरासत में अपनी दादी-नानी से प्राप्त हो जाते है यदि कोई आदर्श ग्रहणी स्नेह , समर्पण, त्याग,ममता और परिवार को प्राथमिकता दे तो वह किसी भी शैक्षणिक डिग्री से कहीं अधिक श्रेष्ठ है।


जय श्री राम
सदैव प्रसन्न रहिये

प्रेषक-
दिनेश बरेजा

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