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सोमवार, 24 मई 2021

#सनातनीक्षत्रीय #RajputyoddhaAalhaUdal

 #विप्र 👉 आल्हखण्ड की ये पंक्तियाँ तो आज भी  जोश भर देती हैं: "बारह बरस लौ कूकर जीवै, अरु सोरह लौ जियै सियार। बरस अठारह क्षत्री जीवै, आगे जीवै को धिक्कार॥"

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#विप्र 👉आल्हा और ऊदल बहादुर योद्धा दक्षराज के बेटे थे जो कि बनाफर वंश के क्षत्रिय बताए गए है किंतू हमारे विचार से वो परमार वंश के क्षत्रिय थे दूसरी ओर चंदेल परमाल उनके मौसा थे।

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#विप्र 👉आल्हा सुनकर जोश में भर अनेकों साहस के काम कर डालते हैं। यूरोपीय महायुद्ध में सैनिकों को रणमत्त करने के लिये ब्रिटिश गवर्नमेण्ट को भी इस (आल्हखण्ड) का सहारा लेना पड़ा था।"

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#विप्र 👉मातृभूमि के लिए सर्वस्व न्यौछावर करने वाले वीर आल्हा का जन्म 25 मई 1140 ई. को महोबा के ग्राम दिसरापुर में हुआ था। आल्हा ने वर्तमान मांडू -मालवा से युद्ध विजयी हुआ।

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#विप्र 👉मध्यप्रदेश के सतना जिले में मैहर तहसील के पास त्रिकूट पर्वत पर स्थित माता के इस मंदिर को मैहर देवी का शक्तिपीठ कहा जाता है।मां ने आल्हा को उनकी भक्ति और वीरता से प्रसन्न होकर अमर होने का वरदान दिया था

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#विप्र 👉आदिगुरु शंकराचार्य ने 9वीं-10वीं शताब्दी में पूजा-अर्चना की थी किन्तु 11 वीं शताब्दी में दोनों भाइयों ने ही सबसे पहले जंगलों के बीच शारदादेवी के इस मंदिर की खोज की थी। आल्हा ने यहां 12 वर्षों तक माता की तपस्या की थी।

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#विप्र 👉आज भी जब सुबह मंदिर को पुन: खोला जाता है तो मंदिर में मां की आरती और पूजा किए जाने के साक्ष्य मिलते हैं।यह मान्यता है कि माता शारदा के दर्शन हर दिन सबसे पहले आल्हा और ऊदल ही करते हैं। 

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#विप्र 👉मां शारदा के आदेशानुसार आल्हा ने अपनी साग (हथियार) शारदा मंदिर पर चढ़ाकर नोक टेढ़ी कर दी थी जिसे आज तक कोई सीधा नहीं कर पाया है।

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#विप्र 👉आल्हा और ऊदल ने अपना सर्वस्व मातृभूमि को अर्पित कर दिया. उनका प्रण था की दुश्मन के हाथ देश की एक अंगुल धरती नहीं जाने देंगे-

"एक अंगुली धरती न देहब, चाहे प्राण रहे चली जाये "

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#विप्र 👉राजा परमार के दरबार में जगनिक नाम के एक कवि ने आल्हा खण्ड नामक एक काव्य रचा था उसमें इन वीरों की गाथा वर्णित है। इस ग्रंथ में दों वीरों की 52 लड़ाइयों का रोमांचकारी वर्णन है। आखरी लड़ाई उन्होंने पृथ्वीराज चौहान के साथ लड़ी थी।

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#विप्र 👉आल्हाखंड में आल्हा-ऊदल के प्रसिद्ध 23 मैदानो में बावन लड़ाइयों को लिखा गया है जिनमें से नैनागढ़ की लड़ाई सबसे रोचक व लोकप्रिय मानी जाती है.

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#विप्र 👉युद्ध के बाद आल्हा आल्हा ऐसी स्थिति देखकर वैरागी हो गए और सब कुछ छोड़कर कहीं चला गया था। लेकिन वह कहां गया इसके बार में किसी को नहीं मालूम।

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#विप्र 👉महोबा से निष्काषन पर आल्हा की मां ने गले लगाकर कहा- बेटा ,तुमने वही किया जो राजपूतों का धर्म था। मैं बड़ी भाग्यशालिन हूँ कि तुम जैसे दो बात की लाज रखने वाले बेटे पाये हैं ।

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#विप्र 👉जयचन्द ने आल्हा ऊदल को अपना सेनापति बना दिया।आल्हा और ऊदल के चले जाने के बाद महोबे में तरह-तरह के अंधेर शुरु हुए।कोई ऐसा नहीं था कि वहां के शासन व्यवस्था को चला सके।

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#विप्र 👉महाराज पृथ्वीराज की सेना युद्ध से जीत कर वापस आते समय महोबे में पड़ाव किया। जहा अनावश्यक  महोबा व पृथ्वीराज सेना में विवाद हो गया जिसमें दोष किसके सैनिकों का था ज्ञात नहीं।

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#विप्र 👉किन्तु परिणाम यह हुआ कि चन्देलों और चौहानों में लड़ाई छिड़ गई। पृथ्वीराज को यह दिल तोड़ने वाली खबर मिली तो उसके गुस्से की कोई हद न रही। ऑंधी की तरह महोबे पर चढ़ दौड़ा चला आया।

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#विप्र 👉युद्ध के लिए चंदेल राज ने पृथ्वीराज से एक महीने की सन्धि की प्रार्थना की। चौहान राजा युद्ध के नियमों का पालन करते थे। उसकी वीरता उसे कमजोर, बेखबर और नामुस्तैद शत्रु पर वार करने की अनुमति नही देती थी।

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#विप्र 👉महाराज  पृथ्वीराज इस मामले में अगर वह इन नियमों को इतनी सख्ती से पाबन्द न होता तो गौरी के हाथों उसे वह बुरा दिन न देखना पड़ता। उसकी बहादुरी ही उसकी जान की गाहक हुई। 

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#विप्र 👉महाराज पृथ्वीराज व चंदेलों आल्हा उदन से युद्ध में तीन लाख सैनिकों में सिर्फ तीन आदमी जिन्दा बचे-एक पृथ्वीराज, दूसरा चन्दा भाट तीसरा आल्हा। प्रथ्वीराज के शब्द भेदी बाण से उदल की मौत हुई ।

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#विप्र 👉 रक्षाबंधन के दिन युद्ध समाप्त होने पर महोबा में बहनों ने भाइयों को राखी बांधी थी। शताब्दी हो गई किंतु आज भी महोबा में रक्षाबंधन श्रावणी पूर्णिमा के दिन न मनाकर एक दिन बाद परेवा को मनाया जाता है।

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#विप्र 👉गुरु गोरखनाथ बाबा के आदेश से आल्हा ने पृथ्वीराज को जीवनदान दे दिया । पृथ्वीराज चौहान के साथ उनकी यह अंतिम लड़ाई थी।

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#विप्र 👉इस युद्ध में आल्हा का भाई ऊदल वीरगति को प्राप्त हो गया थाइस युद्ध में उनका भाई वीरगति को प्राप्त हो गया थाइसके पश्चात आल्हा के मन में वैराग्य आ गया और उन्होंने संन्यास ले लिया था।

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#विप्र 👉अपने ही लोगों को मारना उन्हें भाया नहीं। आल्हा सभी राजाओं को संदेश देने लगे कि जब भी कोई विदेशी आक्रमण करे अपने सभी आपसी मतभेद भुलाकर साथ आकर लड़ाई लड़नी चाहिए। 

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#विप्र 👉किंतु आल्हा की यह सलाह पृथ्वीराज चौहान और राजा जयचंद ने नहीं मानी, भविष्य में दोनों ने विदेशी आक्रमण अलग अलग किया।

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#विप्र 👉आल्हा ने कहा राजा का पाला हुआ और कृतघ्न हूँ। मुझे अपने शरीर पर अधिकार है। उसे मैं राजा पर न्यौछावर कर सकता हूँ। मगर राजपूती धर्म पर मेरा कोई अधिकार नहीं है, उसे मैं नहीं तोड़ सकता।

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#विप्र 👉आल्हा ने परमाल से कहा कि जिन लोगों ने धर्म के कच्चे धागे को लोहे की दीवार समझा है, उन्हीं से राजपूतों का नाम चमक रहा है। क्या मैं हमेशा के लिए अपने ऊपर दाग लगाऊँ?

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#विप्र 👉महाराज, आपने मेरे ऊपर जो उपकार किए, उनका मैं हमेशा कृतज्ञ रहूँगा। क्षत्रिय कभी उपकार नहीं भूलता। मगर आपने मेरे ऊपर उपकार किए हैं तो

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#विप्र 👉तो मैंने भी जो तोड़कर आपकी सेवा की है। सिर्फ नौकरी और नमक का हक अदा करने का भाव मुझमें वह निष्ठा और गर्मी नहीं पैदा कर सकता जिसका मैं बार-बार परिचय दे चुका हूँ। 

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#विप्र 👉आल्हा एकपत्नी व्रती रहे।सोनवॉ के छिप के विवाह करने के प्रस्ताव को आल्हा ने अस्वीकार कर दिया और एक कुमारी कन्या के हाथ से भोजन ग्रहण करना भी अनुचित समझा। 

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#विप्र 👉यद्यपि यही सोनवॉ कालांतर में आल्हा की पत्नी बनीं और उनका एक नाम मछला भी प्रचलन में आया, क्योंकि वो रोज मछलियों को दाना खिलाती थीं।

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ऊदल चौक पर कोई भी घोड़े पर बैठकर नहीं जा सकताहै।

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#विप्र 👉जनता में अब तक यही विश्वास है कि वह जिन्दा है। लोग कहते हैं कि वह अमर हो गया। यह बिल्कुल ठीक है क्योंकि आल्हा सचमुच अमर है अमर है और वह कभी मिट नहीं सकता, उसका नाम हमेशा कायम रहेगा।

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