महान्यायवादी (Attorney General)
संविधान के अनुच्छेद 76 में भारत के महान्यायवादी पद की व्यवस्था की गई है। वह देश का सर्वोच्च कानून अधिकारी होता है हालांकि वो केंद्रीय कैबिनेट या मंत्रिमंडल का सदस्य नहीं होता है।
वर्तमान में भारत के न्याय वादी के के वेणुगोपाल हैं जिनकी नियुक्ति तत्कालीन राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी ने 30 जून, 2017 को की थी। श्री वेणुगोपाल भारत के 15 वें महान्यायवादी हैं।
श्री एम.सी. सीतलवाड भारत के प्रथम महान्यायवादी थे। इनका कार्यकाल सबसे लंबा था। श्री सोली सोराबजी जो कि 7 वें महान्यायवादी थे, इनका कार्यकाल सबसे छोटा था।
नियुक्ति - महान्यायवादी की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।
योग्यताएं - महान्यायवादी की नियुक्ति के लिए वही योग्यताएं होनी चाहिए जो उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश की नियुक्ति के लिए होती है।यथा -
1. वह भारत का नागरिक हो।
2. उसे उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में काम करने का 5 वर्षों का अनुभव हो
या
3. किसी उच्च न्यायालय में वकालत का 10 वर्षों का अनुभव हो।
या
4. राष्ट्रपति के मतानुसार वह न्यायिक मामलों का योग्य व्यक्ति हो।
कार्यकाल - महान्यायवादी के कार्यकाल को संविधान द्वारा निश्चित नहीं किया गया है। इसके अलावा संविधान में उसको हटाने को लेकर भी कोई मूल व्यवस्था नहीं दी गई है। वह अपने पद पर राष्ट्रपति के प्रसाद पर्यंत तक बने रह सकता है। उसे राष्ट्रपति द्वारा किसी भी समय हटाया जा सकता है। वह राष्ट्रपति को कभी भी अपना त्यागपत्र सौंपकर पद मुक्त हो सकता है। परंपरा यह है कि जब सरकार त्यागपत्र दे देे या उसे बदल दिया जाए तो उसे त्यागपत्र देना होता है क्योंकि उसकी नियुक्ति सरकार की सिफारिश से ही होती है।
संविधान में महान्यायवादी का पारिश्रमिक तय नहीं किया गया है उसे राष्ट्रपति द्वारा निर्धारित पारिश्रमिक मिलता है।
कार्य एवं शक्तियां -
1. भारत सरकार को विधि संबंधी ऐसे विषयों पर सलाह दे जो राष्ट्रपति द्वारा सौंपे गए हो।
2. विधिक स्वरूप से ऐसे अन्य कर्तव्यों का पालन करें जो राष्ट्रपति के द्वारा सौंपे गए हो।
3. संविधान या किसी अन्य विधि द्वारा प्रदान किए गए कृत्यों का निर्वहन करना।
राष्ट्रपति महान्यायवादी को निम्नलिखित कार्य सौंपता है -
1. भारत सरकार से संबंधित मामलों को लेकर उच्चतम न्यायालय में भारत सरकार की ओर से पेश होना।
2. संविधान के अनुच्छेद 143 के तहत राष्ट्रपति के द्वारा उच्चतम न्यायालय में भारत सरकार का प्रतिनिधित्व करना।
3. सरकार से संबंधित किसी मामले में उच्च न्यायालय में सुनवाई का अधिकार।
पंडित जवाहरलाल नेहरू के प्रधानमंत्रित्व काल के दौरान केंद्र सरकार द्वारा एक प्रस्ताव रखा गया जिसमें कहा गया कि महान्यायवादी के पद को विधि मंत्री में मिला दिया जाए, इसे स्वीकार नहीं किया गया।
अधिकार -
1. भारत के किसी भी क्षेत्र में किसी भी अदालत में महान्यायवादी को सुनवाई का अधिकार है।
2. उसको संसद के दोनों सदनों में बोलने या कार्यवाही में भाग लेने या दोनों सदनों की संयुक्त बैठक में भाग लेने का अधिकार है लेकिन उसे मताधिकार प्राप्त नहीं है।
3. एक संसद सदस्य की तरह उसे सभी भत्ते एवं विशेषाधिकार मिलते हैं।
मर्यादाएं -
1. वह भारत सरकार के खिलाफ कोई सलाह या विश्लेषण नहीं कर सकता।
2. जिस मामले में उसे भारत सरकार की ओर से पेश होना है उस पर वह कोई टिप्पणी नहीं कर सकता है।
3. बिना भारत सरकार की अनुमति के वह किसी आपराधिक मामले में व्यक्ति का बचाव नहीं कर सकता।
4. बिना भारत सरकार की अनुमति के वह किसी परिषद या कंपनी के निदेशक का पद ग्रहण नहीं कर सकता।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें