अनुवादक

गुरुवार, 18 जून 2020

🙏🏻पितृपक्ष - विशेष- पितृ पक्ष का उपहास करने वाले अवश्य पढ़े,....

एक पंडित जी को नदी में तर्पण करते देख एक फकीर अपनी बाल्टी से पानी गिराकर जाप करने लगे, "मेरी प्यासी गाय को पानी मिले।"

पंडितजी के पूँछने पर बोले जब आपके चढाये जल-भोग आपके पुरखों को मिल जाता है तो मेरी गाय को भी मिल जाएगा।

पंडितजी बहुत लज्जित हुए।

ऐसे ही कबीर दास मरी हुई गाय के आगे हरा चारा रखते है और कहते हैं कि यह चारा मेरी गाय खायेगी ....
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ऐसी कुछ मनगढंत कहानियाँ सुनाकर एक वामपंथी मित्र जोर से ठठाकर हँसने लगे। बोले, "यह सब पाखण्ड है।"

मैने कुछ नहीं कहा, बस सामने मेज पर से कैलकुलेटर उठाकर एक नंबर डायल किया और कान से लगा लिया। बात न हो सकी तो वामपंथी मित्र से शिकायत की।

वो भड़क गए। बोले - "ये क्या मज़ाक है? कैलकुलेटर में मोबाइल का फंक्शन कैसे काम करेगा ?"

मैंने कहा - "स्थूल शरीर छोड़ चुके लोगों के लिए बनी व्यवस्था जीवित प्राणियों पर कैसे काम करेगी ?"

साहब झेंप मिटाते हुए कहने लगे - "यह सब पाखण्ड है, अगर सच है तो सिद्ध करके दिखाइए।"

मैने कहा यह सब छोड़िए, यह बताइए न्यूक्लियर पर न्यूट्रॉन के बम्बारमेण्ट करने से क्या ऊर्जा निकलती है?

वो बोले - "बिल्कुल! इट्स कॉल्ड एटॉमिक एनर्जी।"

मैने उन्हें एक चॉक और पेपरवेट देकर कहा, अब आपके हाथ में बहुत सारे न्युक्लीयर्स भी हैं और न्यूट्रॉन्स भी। एनर्जी निकाल के दिखाइए।

साहब समझ गए और किसी काम का बहाना बनाकर वहाँ से निकाल लिए।

मित्रों, यदि हम किसी विषय/तथ्य को प्रत्यक्षतः सिद्ध नहीं कर सकते तो इसका अर्थ यह है कि हमारे पास उस विषय का समुचित ज्ञान, संसाधन वा अनुकूल परिस्थितियाँ नहीं है, यह नहीं कि वह तथ्य ही गलत है।

श्राद्ध किस लिए करना है?
क्या हमारे ऋषि मुनि पागल थे?
जो कौवौ के लिए खीर बनाने को कहते थे?
और कहते थे कि कौओं को खिलाएंगे तो हमारे पूर्वजों को मिल जाएगा?

नहीं, हमारे ऋषि मुनि क्रांतिकारी विचारों के थे।
यह है सही कारण।

तुमने किसी भी दिन पीपल और बड़ के पौधे लगाए हैं?
या किसी को लगाते हुए देखा है?
क्या पीपल या बड़ के बीज मिलते हैं?
इसका जवाब है ना.. नहीं....
बड़ या पीपल की कलम जितनी चाहे उतनी रोपने की कोशिश करो परंतु नहीं लगेगी।
कारण प्रकृति/कुदरत ने यह दोनों उपयोगी वृक्षों को लगाने के लिए अलग ही व्यवस्था कर रखी है।

यह दोनों वृक्षों के टेटे कौवे खाते हैं और उनके पेट में ही बीज की प्रोसेसिंग होती है और तब जाकर बीज उगने लायक तैयार होते हैं। उसके पश्चात कौवे जहां-जहां बीट करते हैं, वहाँ - वहाँ पर यह दोनों वृक्ष उगते हैं। पीपल जगत का एकमात्र ऐसा वृक्ष है जो Round-The-Clock ऑक्सीजन O2  छोड़ता है।

वट के औषधि गुण अपरंपार है।
देखो अगर यह दोनों वृक्षों को उगाना है तो बिना कौवे की मदद से संभव नहीं है इसलिए कौवे को बचाना पड़ेगा।

और यह होगा कैसे?
मादा कौआ भादों महीने में अंडा देती है और नवजात बच्चा पैदा होता है।
तो इस नयी पीढ़ी के उपयोगी  पक्षियों को पौष्टिक और भरपूर आहार मिलना जरूरी है इसलिए ऋषि मुनियों ने कौओं के नवजात बच्चों के लिए हर छत पर श्राद्ध के रूप मे पौष्टिक आहार की व्यवस्था कर दी।
जिससे कि कौवौ की नई पीढ़ी का पालन पोषण हो जायें.......

कॉस्मिक विकिरण के सात तलों को आधुनिक विज्ञान भी मानता है, शास्त्रों में यही भू, भुव:, स्व:, मह, तप, जन, सत नाम से लिखे गये हैं।

पितृलोक को जिस विकिरण वाला माना जाता है उस विकिरण को पहचानने की शक्ति कौओं में होती है।
देवता सूर्यलोक तक गति करते हैं, दानव चंद्रलोक तक और मनुष्य पितृलोक तक ।
यह  स्व: ही पितृलोक है, जो कहीं बीच में स्थित होता है।
तपलोक सूर्य का स्थान है सतलोक को बैकुण्ठ कहते हैं।
आत्मा की औरा (ऊर्जा) विभिन्न लोकों में होती है। जिस ऊर्जा की आवृत्ति जिस तल से समान होती है वह ऊर्जा वही स्थिर हो जाती है।
कपाल क्रिया के बाद आत्मा की ऊर्जा का विलय सतलोक में होना उसका अंतिम लक्ष्य है इसी को मोक्ष कहा जाता है।
इसीलिए पितृलोक की ऊर्जा को बढ़ाने का काम श्राद्ध से किया जाता है।

गाय व कुत्ते की उपयोगिता से भी हम सब परिचित है।
इसलिए दिमाग को दौड़ाइये बिना श्राद्ध करना पूर्वजों के लिये, प्रकृति के रक्षण के लिए और ध्यान  रखना जब भी बड़ और पीपल के पेड़ को देखो तो अपने पूर्वज तो याद आयेगे ही क्योंकि उन्होंने श्राद्ध दिया था इसीलिए यह दोनों उपयोगी पेड़ हम देख रहे हैं।
औरंगजेब ने अपने पिता शाहजहां को 7 वर्ष कारागार में रखा। पीने के लिए नपा-तुला पानी एक फूटी हुई मटकी में भेजता था।शाहजहाँ ने उसे पत्र लिखा जिसकी पंक्तियां थीं-

"ऐ पिसर तू अजब मुसलमानी,ब पिदरे जिंदा आब तरसानी,आफरीन बाद हिंदवान सद बार,मैं देहदं पिदरे मुर्दारावा दायम आब।

हे पुत्र ! तू भी विचित्र मुसलमान है जो अपने जीवित पिता को पानी के लिए भी तरसा रहा है। शत शत बार प्रशंसनीय हैं वे 'हिन्दू' जो अपने मृत पूर्वजो को भी पानी देते है।

बकिंघम पैलेस में कौओं को खिलाने की सनातन परम्परा का आज भी पालन होता है।

वामपंथियों के कुतर्को मे फँसकर अपने धर्म व संस्कार के प्रति कुण्ठा न पालें 
पितृदेवताभ्यो नमः ।।
हर हर महादेव ।।

धर्मस्य मूलम् ज्ञानम्
(साभार)

                          @ॐ_नमः_वार्ताः!

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